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जयपुर, 24 अक्टूबर (हि.स.)। राजस्थान में नगरीय निकाय चुनावों को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है। राज्य के 309 नगर निकायों (नगर पालिका, नगर परिषद और नगर निगम) में अगले साल चुनाव होने की संभावना है। इस बीच सबसे बड़ी चर्चा इस बात को लेकर थी कि क्या इस बार निकाय प्रमुखों अध्यक्ष, सभापति और मेयर का चुनाव सीधे जनता द्वारा (प्रत्यक्ष चुनाव) कराया जाएगा या फिर पार्षदों द्वारा (अप्रत्यक्ष चुनाव) की पुरानी प्रक्रिया ही लागू रहेगी।
इस पर अब शहरी विकास एवं आवासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने स्थिति लगभग स्पष्ट कर दी है। उन्होंने संकेत दिए हैं कि इस बार भी निकाय प्रमुखों का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से ही कराया जाएगा।
मंत्री खर्रा ने मीडिया से बातचीत में कहा कि हमारे पास दो तरह के सुझाव आए थे। एक समय हमने सीधे चुनाव करवाने का निर्णय लेते हुए प्रत्यक्ष चुनाव भी करवाए थे, लेकिन उसमें बड़ी दिक्कतें सामने आईं। कई बार मेयर एक विचारधारा से चुने गए, जबकि बोर्ड दूसरी विचारधारा वाला निर्वाचित हो गया। इससे पांच साल तक खींचतान चलती रही।
उन्होंने बताया कि यदि भविष्य में इस खींचतान का कोई व्यवहारिक समाधान निकलता है तो सरकार उस पर विचार करेगी, अन्यथा वर्तमान प्रक्रिया को ही जारी रखा जाएगा।
गहलोत सरकार के दूसरे कार्यकाल (2008–2013) के दौरान साल 2009 में पहली बार निकाय प्रमुखों के प्रत्यक्ष चुनाव करवाए गए थे। उस समय जयपुर नगर निगम में बोर्ड तो भाजपा का था, लेकिन मेयर कांग्रेस का जीत गया था। परिणामस्वरूप निगम में पांच साल तक राजनीतिक टकराव चलता रहा और कई बार संचालन समितियां तक नहीं बन पाईं। राज्य में वर्तमान में अधिकांश निकायों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है और वहां प्रशासक नियुक्त किए गए हैं। वहीं अगले साल फरवरी 2026 तक 141 नगरीय निकायों का कार्यकाल भी पूरा हो जाएगा। ऐसे में संभावना है कि अगले साल के मध्य तक सभी 309 निकायों के चुनाव एक साथ कराए जाएं।
हिन्दुस्थान समाचार / रोहित