Enter your Email Address to subscribe to our newsletters
- डॉ. मयंक चतुर्वेदी
-“अगली बार इंदौर आऊंगा, तो तुमसे ज़रूर मिलूंगा, तुम्हारा सपना अब मेरा भी है”
भोपाल, 18 अक्टूबर (हि.स.)। दीपावली पर्व का आगमन हो रहा था। पूरा प्रदेश रोशनी में डूबने का आतुर था, पर इंदौर के एक घर में अंधेरा पसरा हुआ था। 17 वर्षीय 'संस्कृति वर्मा' अस्पताल के बिस्तर पर बेहोश पड़ी थी, एक भीषण ट्रक हादसे ने उसकी दुनिया बदल दी थी। परिवार की आंखों में सिर्फ एक सवाल था; क्या हमारी बेटी बच पाएगी? भोपाल में जब मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को इस भयानक हादसे की सूचना मिली, तो उन्होंने रातोंरात निर्णय लिया कि “बेटी को तुरंत एयर एम्बुलेंस से मुंबई भेजा जाए, उसके इलाज का पूरा खर्च सरकार उठाएगी।” यह कोई औपचारिक आदेश नहीं था, वास्तव में राज्य के संवेदनशील मुखिया और एक पिता का स्नेह था, जिसने एक बेटी की जान बचाई और एक पूरे प्रदेश का दिल जीत लिया।
इंदौर की बेटी, पूरे प्रदेश की चिंता
उल्लेखनीय है कि 15 सितंबर की शाम। इंदौर के संगम नगर की गलियों में अचानक चीखें गूंज उठीं। एक तेज रफ्तार ट्रक ने 17 वर्षीय संस्कृति वर्मा को टक्कर मार दी। गंभीर रूप से घायल संस्कृति के बाएं हाथ और शरीर के कई हिस्से बुरी तरह जख्मी हो गए। डॉक्टरों ने स्थिति गंभीर बताई। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को जैसे ही यह खबर मिली, उन्होंने तुरंत इंदौर कलेक्टर से कहा, “इस बेटी का जीवन सर्वोच्च प्राथमिकता है। उसे तुरंत एयर लिफ्ट कर मुंबई भेजो।” कुछ ही घंटों में एयर एम्बुलेंस रवाना हो गई और मुंबई के बॉम्बे हॉस्पिटल में ‘संस्कृति’ का इलाज शुरू हुआ। यह निर्णय केवल प्रशासनिक तत्परता नहीं, बल्कि संवेदना से उपजे नेतृत्व का परिचायक था।
मुंबई में डॉक्टरों ने कहा, मामला बेहद जटिल है। ‘संस्कृति’ के हाथ को बचाने के लिए चार सर्जरी करनी होंगी। एक सर्जरी में उसके पैर की नस काटकर हाथ में लगाई गई, ताकि वह फिर से सामान्य जीवन जी सके। मुख्यमंत्री ने हर दिन प्रशासन से उसकी सेहत की जानकारी ली। इलाज पर लगभग 30 लाख रुपये का व्यय हुआ, जिसका पूरा खर्च राज्य सरकार ने उठाया। कुछ हफ्तों के उपचार और फिजियोथैरेपी के बाद, आखिरकार ‘संस्कृति’ शुक्रवार की रात इंदौर लौटी।
“संस्कृति, तुम्हारी मुस्कान से हमारी दीपावली मन गई”
बीती रात करीब 10 बजे संस्कृति इंदौर पहुंची। थोड़ी ही देर में रात 11 बजे; मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उससे और उसके परिजनों से बात की। स्क्रीन पर मुख्यमंत्री को देखकर संस्कृति मुस्कुरा उठी। डॉ. यादव ने स्नेहिल स्वर में कहा- “तुम्हारे चेहरे की मुस्कान से तो हमारी दीपावली आज ही मन गई।” उन्होंने आगे कहा, “अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखो, पढ़ाई जारी रखो, सरकार हर संभव मदद करेगी।”
इस बातचीत के दौरान इंदौर कलेक्टर शिवम वर्मा मौके पर मौजूद थे। पड़ोसी और रिश्तेदार भी इस पल के साक्षी बने, जब उन्होंने देखा कि मुख्यमंत्री किसी अधिकारी की तरह नहीं, बल्कि एक परिवार के सदस्य की तरह बात कर रहे थे।
एक बेटी का सपना, मुख्यमंत्री का वादा
संस्कृति ने बातचीत के दौरान बताया कि वह सीए (चार्टर्ड अकाउंटेंट) बनना चाहती है और कॉमर्स के साथ एप्लाइड मैथ्स की पढ़ाई कर रही है। मुख्यमंत्री ने मुस्कुराते हुए कहा- “अगली बार इंदौर आऊंगा, तो तुमसे ज़रूर मिलूंगा। तुम्हारा सपना अब मेरा भी है।” इस आत्मीय संवाद ने न केवल एक घायल बेटी के दिल में उत्साह भरा, बल्कि यह भी दिखाया कि राजनीति जब संवेदना से जुड़ती है, तब शासन परिवार बन जाता है।
संवेदना ही असली शासन है
मुंबई से लौटने के बाद संस्कृति अब फिजियोथैरेपी ले रही है। धीरे-धीरे वह ठीक हो रही है, लेकिन उसके परिवार की जुबान पर एक ही वाक्य है, “अगर मुख्यमंत्री मोहन यादव जी ने तत्परता नहीं दिखाई होती, तो शायद आज हमारी बेटी हमारे बीच न होती।” वस्तुत: आज यह वाक्य मध्य प्रदेश के हर नागरिक के विश्वास का प्रतीक है, सरकार केवल व्यवस्था नहीं, सहारा भी है।
जनसेवा की परंपरा और ‘मोहन’ का लोकभाव
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का राजनीतिक सफर हमेशा जनसेवा से ही प्रेरित रहा है। उज्जैन की पावन धरती से राजनीति की शुरुआत करते हुए उन्होंने हमेशा कहा है कि “जनसेवा ही ईश्वर सेवा है।” उनकी नीतियाँ और कार्य निश्चित ही इस सोच को सजीव करते हैं। ‘संस्कृति वर्मा’ की सहायता केवल एक घटना नहीं है, यह तो उस विचारधारा का प्रमाण कही जा सकती है, जहाँ प्रशासन का अर्थ मानवता से जुड़ा निर्णय लेते रहना भी है।
देखा जाए तो इस घटना से अब यह स्पष्ट हो गया है कि डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में शासन केवल आदेशों का नहीं, बल्कि मनुष्यता का माध्यम है। उनका हर निर्णय यह संदेश देता है कि “राज्य का हर नागरिक मेरे परिवार का हिस्सा है।” ‘संस्कृति’ अब धीरे-धीरे सामान्य जीवन में लौट रही है, और उसके चेहरे पर वही उजाला है जिसे मुख्यमंत्री ने दीपावली का प्रतीक कहा था।
वीडियो कॉल के अंत में मुख्यमंत्री ने कहा ही है कि “समय खराब था, पर संकट अब पूरी तरह टल गया है।” यह सिर्फ़ एक वाक्य से अधिक आज उस विश्वास की घोषणा है जो पूरे मध्यप्रदेश में आज महसूस की जा रही है। वास्तव में जब शासन संवेदनशील होता है, तब हर अंधकार मिट जाता है।
आज जब लोग मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की चर्चा करते हैं, तो वे उन्हें केवल एक प्रशासक नहीं, बल्कि “जनमन का मोहन” कहते हैं। उनकी राजनीति में शोर नहीं, संवेदना की आवाज है; उनके निर्णयों में दिखावा नहीं, मानवीय गर्माहट है। वास्तव में ‘संस्कृति’ की मुस्कान ने यह साबित किया कि जब शासन में मन होता है, तो आशा लौट आती है।
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी