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इटानगर, 16 अक्टूबर(हि.स.)। अरुणाचल प्रदेश अनुसूचित जनजाति संरक्षण
मंच ने राज्य सरकार से भारत के संविधान के अनुच्छेद 342 (1) (2) के अनुसार राज्य में योबिन (लिसु) समुदाय की स्थिति पर स्पष्टीकरण की मांग की।
मंच ने ज़ोर देकर कहा कि योबिन समुदाय अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल नहीं है।
अरुणाचल प्रेस क्लब में मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुए जनजाति संरक्षण मंच के अध्यक्ष ताई सकटर ने कहा कि समुदाय की संवैधानिक स्थिति को मुख्यमंत्री
कार्यालय से स्पष्ट करने की आवश्यकता है, क्योंकि सामाजिक
न्याय एवं अधिकारिता, जनजातीय मामलों का विभाग पारदर्शिता बनाए रखने में लगातार विफल रहा है।
यह बताते हुए कि अनुच्छेद 342 के प्रावधान के तहत, अनुसूचित जनजाति
की सूची केवल भारत के राष्ट्रपति द्वारा एक सार्वजनिक अधिसूचना के माध्यम से
अधिसूचित की जाती है और इसे केवल संसद के अधिनियम द्वारा ही बदला या संशोधित किया
जा सकता है, मंच ने कहा कि किसी भी राज्य सरकार या विभाग को संसद की
मंज़ूरी के बिना किसी भी समुदाय को अनुसूचित जनजाति के रूप में शामिल करने या
मान्यता देने का अधिकार नहीं है।
यह कहते हुए कि, जब तक राज्य सरकार से मामला स्पष्ट नहीं हो जाता, योबिन समुदाय को राज्य की चुनावी प्रणाली में भाग लेने से प्रतिबंधित किया
जाना चाहिए, फोरम ने बाटेम पर्टिन द्वारा लिखित पुस्तक ‘एथनिक कम्युनिटीज ऑफ अरुणाचल प्रदेश’ के प्रकाशन पर
प्रतिबंध लगाने और उसे वापस लेने तथा राज्य संग्रहालय से योबिन समुदाय की मूर्ति
या प्रदर्शन को हटाने की भी मांग की।
फोरम ने दावा किया कि संवैधानिक अभिलेखों का उल्लंघन करके योबिन समुदाय को
राज्य के एसटी के रूप में गलत तरीके से उल्लेखित किया गया है और राज्य संग्रहालय
के अंदर योबिन की मूर्ति को प्रदर्शित किया गया है जिसको हटाने की मांग की, क्योंकि
उनका समावेश अनुच्छेद 342 के तहत अनधिकृत है और राज्य की आधिकारिक रूप से मान्यता
प्राप्त जनजातियों को गलत तरीके से प्रस्तुत करता है।
हिन्दुस्थान समाचार