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रायबरेली,06जनवरी(हि. स.)। 13अप्रैल 1919 को अमृतसर में ब्रिटिश सरकार ने जलियांवाला बाग के रूप में अपने वहशीपन और निर्दयता का जो तांडव किया था। दो साल के भीतर ही उसकी पुनरावृत्ति 7 जनवरी को रायबरेली के मुंशीगंज में हो गई थी। जिसे देश दूसरा जालियांवाला बाग के नाम से जानता है। निहत्थे, निर्दोष और हक के लिए आवाज उठा रहे किसानों पर अंग्रेजी हुकूमत ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। 750 किसानों की मौत हो गई। हजार से अधिक घायल हुए। इतिहास के पन्नों में अंग्रेजी हुकूमत का यह काला अध्याय मुंशीगंज हत्याकांड के नाम से भी जाना जाता है।
महात्मा गांधी ने रोलेट एक्ट विरोध और जालियावाला बाग कांड के बाद वर्ष 1920 में असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। 1 अगस्त 1920 को असहयोग आंदोलन की औपचारिक शुरुआत हुई। इस आंदोलन को किसानों और मजदूरों का भी साथ मिला। पूरे अवध प्रांत में रायबरेली में इसकी चिंगारी ज्यादा तेज़ थी। अमोल शर्मा और बाबा जानकी दास के नेतृत्व में 5 जनवरी 1921 को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जनसभा हुई, जिसमें आंदोलन का बिगुल फूंका गया। ब्रिटिश सरकार में हड़कंप मच गया था और सरकार किसी भी क़ीमत पर किसानों की जनसभा को सफल नहीं होने देने के लिए परेशान थी। अंततः नेतृत्व कर रहे दोनों किसान नेताओं को गिरफ्तार कर लखनऊ जेल भेज दिया गया।
रायबरेली के तालुकेदार तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर एजी शेरिफ ने दोनों नेताओं की गिरफ्तारी के आदेश दिए थे। गिरफ्तारी के अगले दिन रायबरेली के लोगों के बीच एक अफवाह फैली कि जेल प्रशासन ने दोनों नेताओं की हत्या करवा दी है। किसानों का आक्रोश बढ़ने लगा। 7 जनवरी 1921 को रायबरेली के मुंशीगंज नदी के एक छोर पर अपने नेताओं के समर्थन में विशाल जनसभा के आयोजन की घोषणा हुई।
किसानों के भारी विरोध को देखते हुए नदी के किनारे पुलिस बल तैनात कर दिया गया था। किसानों से मिलने पंडित जवाहरलाल नेहरु रायबरेली जा रहे थे। लेकिन अंग्रेजी सरकार की ओर से पहले ही पंडित नेहरू को नजरबंद कर दिया गया। इससे आक्रोशित भारी भीड़ सई पुल के पास आ गई।
किसानों की भारी भीड़ देखकर अंग्रेज सरकार के अफसर डर गए। घबराए अधिकारियों ने किसानों पर फायरिंग के आदेश दे दिए। 10 हजार से अधिक राउंड गोलियां चली। करीब 750 किसान मारे गए और एक हजार से ज्यादा किसान घायल हुए थे। ब्रिटिश सरकार के जवान किसानों पर अंधाधुंध फायरिंग कर रहे थे। किसानों की लाशें सई नदी में गिर रही थीं। इसके बावजूद फायरिंग नहीं रुकी। किसानों के खून से सई नदी का पानी लाल हो गया था। प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी ने इसे दूसरा जालियांवाला बाग कहा था।
सर्वोदयी नेता और विनोबा भावे के शिष्य रवींद्र सिंह चौहान कहते हैं' किसानों ने जीवन का बलिदान देकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई में अहम योगदान दिया था। मुंशीगंज गोली कांड आजादी की ऐसी कहानी है जो ब्रिटिश सरकार के काले दौर को आज भी याद दिलाती है।
हिन्दुस्थान समाचार / रजनीश पांडे