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महाकुम्भ नगर,10 जनवरी (हि.स.)। मनुष्य धन से नहीं, अपितु विचारों से बड़ा बनता है। जीवन अलभ्य अवसर है, मनुष्य जीवन अंतहीन संभावनाओं से परिपूर्ण है। मनुष्य इस धरा की सर्वोत्तम कृति है। यह बात शुक्रवार को महाकुम्भ क्षेत्र के सेक्टर 18 में अन्नपूर्णा मार्ग झूंसी में प्रभु प्रेमी संघ कुम्भ शिविर में कथा के पांचवे दिन भक्तों को सम्बोधित करते हुए जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि ने कही।
उन्होंने कहा कि साधकों को निरन्तर सत्कर्म परायण रहना चाहिए। मनुष्य के पास स्मृतियों का अपार कोश है, किन्तु इन अंतहीन स्मृतियों में प्रायः हमारे अनुभव जगत के ही हैं। सांसारिक भोग के अनुभव हमें क्षणिक सुख तो देते हैं, किन्तु शाश्वत आह्लाद और माधुर्य की संप्राप्ति भगवान की स्मृति से ही होती है। ईश्वर का अनुभव आनन्द का अनुभव है और यह हमें निर्द्वंद और निर्भरता प्रदान करता है।
उन्होंने कहा कि हमारी विचार शक्ति ही तो हमें अन्य प्राणियों से पृथक और श्रेष्ठ बनाती हैं इसलिए अच्छे विचारों के साथ रहें। और, अच्छे विचार हमें सत्संग तथा स्वाध्याय से प्राप्त होंगे। दुर्बलता के अनेक रूप हैं, किन्तु उनमें सबसे बड़ी दुर्बलता है - वैचारिक दुर्बलता। जो विवेक, विचार और ज्ञान से हीन है, वही सबसे कमजोर है।
भगवान वामन और राजा बलि की कथा प्रसंग में पूज्य प्रभु श्री ने गुरु के रूप में शुक्राचार्य जी द्वारा दैत्यों के उत्थान हेतु अनेक प्रयत्नों का उदाहरण देते हुए कहा कि गुरु हमेशा शिष्य की यश, कीर्ति और उन्नयन के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। इतने बड़े पराभव के बाद भी शुक्राचार्य जी ने अपनी विद्या से दैत्यों को न केवल पुनः जीवित किया, अपितु उन्हें स्वर्ग के अधिकार दिलाने हेतु यज्ञ आरम्भ करवाया। लोक-कल्याण के लिए भगवान उपेन्द्र 'वामन' बनकर आए और उन्होंने तीन पग में बलि के समस्त पुण्य समेट लिए। पूज्य गुरुदेव कहते हैं कि सत्कर्म में कर्तापन का अभिमान ना रहें। यदि दान कर रहे हों तो दान के साथ-साथ दान देने की अहंकार का दान करना अच्छा होता है।
नवम स्कंध में इक्ष्वाकु वंश के प्रतापी राजाओं की कथा सुनाते हुए पूज्य गुरुदेव कहते हैं कि इनके पुण्य, यश और गौरव की गाथाएँ तो सौ वर्षों में भी नहीं सुनाई जा सकती है। इक्ष्वाकु वंश के राजा भगीरथ के सत्प्रयासों से पतित पावनी माँ गंगा के अवतरण की कथा और माँ गंगा की महिमा सुनाते हुए पूज्य गुरुदेव जी कहते हैं कि गंगा जल का एक कण भी हमें तारने की सामर्थ्य रखता है, क्योंकि यह भगवान का चरणोदक है। प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते ..। भगवान के प्रसाद में मात्रा, न्यूनाधिक नहीं देखी जाती। प्रसाद का एक कण भी महाप्रसाद है।
इस अवसर पर परम पूज्य श्रीचरण कार्ष्णि पीठाधीश्वर गुरुशरणानन्द महाराज, प्रभु प्रेमी संघ की अध्यक्षा पूजनीया महामण्डलेश्वर नैसर्गिका गिरि, कथा के मुख्य यजमान किशोर काया तथा उनकी सहधर्मिणी मधु काया, सम्पत, महामण्डलेश्वर अपूर्वानन्द गिरि महाराज, काशी से पधारे दयानन्द महाराज,स्वामी कैलाशानन्द गिरि,कल्याणानन्द महाराज, स्वामी ज्ञानानन्द महाराज सहित अनेक पूज्य सन्तों प्रभु प्रेमी संघ के प्रमुख न्यासी विवेक ठाकुर, महेन्द्र लाहौरिया ,किशोर,प्रवीण नरुला,रोहित माथुर, विनोद बुट्टन, सुरेन्द्र सर्राफ, मालिनी दोषी, सांवरमल तुलस्यान सहित बड़ी संख्या में प्रभु प्रेमी उपस्थित रहे।
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हिन्दुस्थान समाचार / रामबहादुर पाल