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रमेश शर्मा
सरबजीत सिंह वो निर्दोष भारतीय नागरिक था, जो नशे की हालत में धोखे से पाकिस्तान की सीमा में चला गया। वहां जेल में कठोर यातनायें देकर कैदियों ने उसकी हत्या कर दी। ...और शव भारत आया तो उसके शरीर के सभी आंतरिक अंग गायब थे। किसी भी सरकार की विदेश नीति और नेतृत्व कैसा होना चाहिए। कहां मानवीय पक्ष को प्राथमिकता हो कहां सख्त तेवर दिखाये जाएं ये दोनों उदाहरण भारत की विभिन्न सरकारों की कार्यशैली में देखने को मिलते हैं। एक उदाहरण निर्दोष नागरिक सरबजीत सिंह का है जो धोखे से पाकिस्तान चला गया। उसे बंदी बनाकर जेल भेज दिया गया जहां तेईस वर्षों तक जेल में कठोर यातनाएं देकर कैदियों ने मार डाला और भारत सरकार केवल विरोध पत्र लिखने के अतिरिक्त कुछ न कर सकी ।
भारत का ही दूसरा उदाहरण विंग कमांडर अभिनंदन का है, जो एयर स्ट्राइक के लिए विमान लेकर पाकिस्तान सीमा में गए थे। बंदी बनाए गए लेकिन यह भारतीय नेतृत्व का दबाव था कि केवल 60 घंटों में ही पाकिस्तान ने अभिनंदन को ससम्मान भारत वापस भेज दिया । जिन दिनों सरबजीत पाकिस्तान की जेल में था तब भारत में हर दल की सरकार रही । सबसे लंबी दो सरकारें कांग्रेस की रहीं। पहले प्रधानमंत्री नरसिंहराव की और फिर दस वर्ष मनमोहन सिंह की सरकार रही। ...पर सरबजीत की भाग्य न बदला । पाकिस्तानी जेल में उसे सतत यातनाएं मिलीं । सरबजीत सिंह का जन्म पंजाब के तरनतारन जिला अंतर्गत गांव भीखीविंद में हुआ था । यह एक किसान परिवार था लेकिन पिता सुलक्षण सिंह ढिल्लो अपने गांव से दूर उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग में नौकरी करने लगे । मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण कर सरबजीत गांव लौट आए और खेती करने लगे । अपनी आय बढ़ाने के लिए एक ट्रैक्टर खरीदकर भाड़े पर दूसरे गांवों में भी खेती करने लगे। 1984 में विवाह हुआ और दो बेटियों के पिता बने । जीवन खुशी से बीतने लगा । समय के साथ उन्हें शराब पीने की आदत लग गई और यही आदत पूरे घर का सुख चैन और उनकी जान ले बैठी ।
वो 28 अगस्त 1990 का दिन था। वे पाकिस्तान सीमा से लगे गांव में भाड़े पर ट्रैक्टर चला रहे थे । शाम को काम समाप्त कर शराब पी, भोजन किया शाम को लौटने लगे । तब सीमा पर तार की बाड़ नहीं लगी थी । सरबजीत नशे में रास्ता भटक गए और पाकिस्तान सीमा में घुस गए । पाकिस्तानी सेना ने पकड़ लिया । उनपर जासूसी का आरोप लगाकर सात दिन प्रताड़ना दी गई। उनपर आरोप लगाया गया कि वे सरबजीत सिंह नहीं मंजीत सिंह हैं। पाकिस्तान में इस नाम से एक एफआईआर थी। सेना ने इसी नाम से अदालत में पेश किया और आरोप लगाया कि आरोपी सही नाम नहीं बता रहा। अदालत में उन्हें भारतीय गुप्तचर संस्था रॉ का एजेंट बताकर लाहौर, मुल्तान और फैसलाबाद बम धमाकों का आरोपी भी बनाया गया। इन आरोपों पर अदालत ने अक्टूबर 1991 में उन्हें फांसी की सजा सुना दी ।
सरबजीत सिंह के परिवार ने भारत सरकार से भी संपर्क किया और मानवाधिकार संगठनों से भी । प्रमाण के साथ बताया गया कि वे मंजीत सिंह नहीं सरबजीत सिंह हैं। लिखा-पढ़ी आरंभ हुई । भारत सरकार और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने पत्र भी लिखे । इससे फांसी की सजा टलती रही पर सरबजीत रिहा न हो सके । 1990 से 2013 तक यद्यपि भारत में विभिन्न राजनीतिक दलों की सरकारें रहीं। कांग्रेस के नेतृत्व में नरसिंहराव सरकार, मनमोहन सिंह सरकार और भाजपा नेतृत्व में अटलजी की सरकार । लेकिन ये सभी सरकारें राजनीतिक अस्थिरता के दौर में रहीं और पाकिस्तान सरकार पर कोई दबाव नहीं बना सकीं। इसका पूरा लाभ पाकिस्तान ने उठाया ।
1990 से लेकर 2013 तक भारत में न केवल निर्दोष सरबजीत सिंह पर क्रूरता हुई अपितु पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी घटनाएं भी बढ़ीं । पाकिस्तान ने अनेक झूठ रचे । फर्जी दस्तावेज तैयार किए। ऐसे गवाह भी खड़े किए कि सरबजीत सिंह ही असली मंजीत सिंह है । और वह खुशी मोहम्मद के नाम से पाकिस्तान में आया था । 2005 में एक दावा तो यह भी किया कि सरबजीत सिंह उर्फ मंजीत सिंह ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है । इस खींचतान और लिखा-पढ़ी के बीच फांसी की सजा तो टली पर सरबजीत सिंह को रिहाई न मिली । रिहाई की उम्मीद और फांसी की आशंका के बीच सरबजीत सिंह लाहौर सेन्ट्रल जेल में यातना सहते रहे ।26 अप्रैल 2013 को लाहौर जेल के कुछ कैदियों ने सरबजीत सिंह पर हमला बोल दिया। रीढ़ की हड्डी सहित उनके शरीर की कई हड्डियां टूट गईं। बहुत गंभीर स्थिति में अस्पताल लाया गया । वे कोमा में थे। हॉस्पिटल में उन्हें वेंटीलेटर पर रखा । 29 अप्रैल 2013 को भारत सरकार ने एक बार फिर पकिस्तान से रिहा करने की अपील की, जिसे पकिस्तान सरकार ने खारिज कर दिया ।
एक मई 2013 को जिन्ना अस्पताल के डॉक्टरों ने सरबजीत सिंह को ब्रेनडेड और 2 मई 2013 को मृत घोषित कर दिया । उनका शव भारत आया । भारत में शव का पोस्टमार्टम हुआ । भारतीय डॉक्टर यह देखकर आश्चर्य चकित रह गए कि उनके शरीर के अधिकांश मुख्य अंग निकाल लिए गए थे। क्यों निकाले इसका उत्तर कभी न मिला और न पाकिस्तान ने स्वीकार किया। सरबजीत सिंह के परिवार को पंजाब और केंद्र सरकार ने आर्थिक सहायता दी और पंजाब में तीन दिन का शोक भी घोषित हुआ पर सरबजीत सिंह के प्राण के साथ भारत की प्रतिष्ठा भी न बच सकी ।
इस संदर्भ में वर्ष 2019 की उस घटना उल्लेख संभवतः उचित होगा जब एयर स्ट्राइक के दौरान विंग कमांडर अभिनंदन पाकिस्तान में गिरफ्तार हो गए तब भारत सरकार का यह दबाव ही था पाकिस्तान ने केवल साठ घंटे के भीतर सम्मान वापस किया । बाद में अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट में कहा गया कि यदि पाकिस्तान विंग कमांडर अभिनंदन को रिहा न करता तो भारत ने पाकिस्तान पर आक्रमण की तैयारी कर ली थी । पाकिस्तान की जेल में जब सरबजीत सिंह की क्रूरता पूर्वक हत्या हुआ तब भारत में मनमोहन सिंह की सरकार थी और जब विंग कमांडर अभिनंदन भारत लौटे तब प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी की सरकार थी। आज यह फर्क समझने की जरूरत है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
हिन्दुस्थान समाचार/मुकुंद