बर्दवान से दिलीप घोष की किस्मत दांव पर, इन मुद्दों को लेकर जनता के बीच जा रहे
कोलकाता, 27 अप्रैल (हि.स.)। हर चुनाव में अलग-अलग पार्टी के उम्मीदवार को जिताने के लिए पहचाने जाने वा
बर्दवान से दिलीप घोष की किस्मत दांव पर, इन मुद्दों को लेकर जनता के बीच जा रहे


कोलकाता, 27 अप्रैल (हि.स.)। हर चुनाव में अलग-अलग पार्टी के उम्मीदवार को जिताने के लिए पहचाने जाने वाले बर्दवान-दुर्गापुर लोकसभा क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के धाकड़ उम्मीदवार दिलीप घोष की किस्मत दांव पर है। बर्दवान-दुर्गापुर सीट 2008 में संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के पुनर्गठन के बाद 2009 में बनायी गयी थी और तबसे इसने पिछले तीन चुनावों में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), तृणमूल कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशियों को लोकसभा में भेजा है। भाजपा के एस.एस. अहलूवालिया ने 2019 में तकरीबन तीन हजार मतों के मामूली अंतर से तृणमूल से यह सीट छीन ली थी। भाजपा ने सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखने के लिए यहां से घोष पर विश्वास जताया है, जिन्हें राज्य के सबसे सफल पार्टी अध्यक्षों में से एक माना जाता है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि घोष को मेदिनीपुर सीट से यहां भेजने के साथ ही पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से उन्हें हटाए जाने के कारण बर्दवान-दुर्गापुर का मुकाबला घोष के लिए प्रतिष्ठा और राजनीतिक अस्तित्व दोनों की अहम परीक्षा है। उन्हें अभी अपनी ही पार्टी में दरकिनार कर दिया गया है। एक जीत उनके राजनीतिक करियर को पुनर्जीवित कर देगी, जबकि हार इस पर शंका पैदा कर सकती है। भाजपा की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष के तौर पर दिलीप घोष के कार्यकाल में पार्टी ने 2019 में 18 लोकसभा सीटें जीती थीं। भाजपा नेता चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बावजूद अपनी संभावनाओं को लेकर आशान्वित हैं।

घोष ने कहा कि मैं पार्टी का वफादार सदस्य हूं और मुझे मिलने वाली हर भूमिका को स्वीकार करता हूं। यह एक चुनौती है और मैं इससे पार पाने के लिए तैयार हूं। इस चुनावी मुकाबले में घोष के सामने तृणमूल उम्मीदवार और पूर्व भारतीय क्रिकेटर कीर्ति आजाद के साथ ही वाम-कांग्रेस गठबंधन के उम्मीदवार सुकृति घोषाल की चुनौती है। तृणमूल इस सीट पर फिर से कब्जा जमाने के लिए आतुर है। हालांकि, आजाद को भाजपा द्वारा बाहरी नेता बताया जा रहा है। वहीं आजाद ने इन चिंताओं को खारिज करते हुए कहा कि मैं भारतीय हूं और कोई भी भारतीय देश के किसी भी हिस्से से चुनाव लड़ सकता है। यह चुनाव मुद्दों और राजनीति के बारे में है, न कि व्यक्तियों के बारे में।

इस निर्वाचन क्षेत्र में करीब 20 फीसदी मुस्लिम आबादी है, जबकि अनुसूचित जाति की आबादी 27 फीसदी है। वाम दल-कांग्रेस गठबंधन के मुकाबले में शामिल होने से आगामी चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है।

हिन्दुस्थान समाचार/ओम प्रकाश/गंगा/आकाश