लोस चुनाव : उप्र तीसरे चरण में आरक्षित सीटों की सरताज भाजपा
लखनऊ, 26 अप्रैल (हि.स.)। उत्तर प्रदेश में तीसरे चरण में जिन दस सीटों पर चुनाव होने हैं, उनमें आठ सी
लोस चुनाव : उप्र तीसरे चरण में आरक्षित सीटों की सरताज भाजपा


लखनऊ, 26 अप्रैल (हि.स.)। उत्तर प्रदेश में तीसरे चरण में जिन दस सीटों पर चुनाव होने हैं, उनमें आठ सीटें सामान्य और दो सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। आरक्षित सीटों के संसदीय इतिहास की बात करें तो इन सीटों पर 1991 आम चुनाव के बाद से लगातार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दबदबा है। लेकिन हैरत की बात है कि दलित बाहुल्य वाली इन सीटों पर अब तक बसपा का खाता नहीं खुला है।

भाजपा का मजबूत किला हाथरस

ब्रज क्षेत्र की इस चर्चित संसदीय सीट पर 1962 में अस्तित्व में आई थी। आंकड़े बताते हैं कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) को अब तक हुए लोकसभा चुनाव में एक भी बार सफलता नहीं मिल सकी है। सफलता तो छोड़िए सपा भाजपा का मुकाबला तक करने में पिछड़ गई। हर बार भाजपा से मुकाबले में बसपा ही रही। कांग्रेस शासन काल में चार बार कांग्रेस ने हाथरस से जीत का परचम लहराया था। एक बार जनता दल ने फतह हासिल की। जबकि रिकॉर्ड गवाह है कि जिले से सबसे अधिक अगर किसी दल का डंका रहा तो वह इकलौती भाजपा है। बसपा और सपा को खाता खोलने की अब बेताबी है। भाजपा 2024 के चुनाव में इस सीट पर जीत की हैट्रिक लगाने की तैयारी में है।

पिछले दो चुनाव का हाल

2019 के आम चुनाव में भाजपा प्रत्याशी राजवीर सिंह दिलेर ने यहां जीत दर्ज की। राजवीर सिंह को 684,299 (59.43 फीसदी) वोट मिले। सपा-बसपा-रालोद गठबंधन के प्रत्याशी रामजी लाल सुमन को 424,091 (36.83 फीसदी) वोट पाकर दूसरे स्थान पर रहे। भाजपा ने यह चुनाव 260,208 मतों के अंतर से जीता था। 2014 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी राजेश कुमार दिवाकर ने कुल 544,277 (51.87 फीसदी) वोट पाकर जीते। बसपा प्रत्याशी मनोज कुमार सोनी 217,891 (20.77 फीसदी) वोट पाकर रनर रहे। सपा तीसरे नंबर पर लुढ़क गई। जीत का अंतर 03 लाख से ज्यादा वोटों का था।

हाथरस में बसपा और सपा का खाता नहीं खुला

भाजपा ने मौजूदा सांसद राजवीर दिलेर का टिकट काटकर अलीगढ़ की खैर विधानसभा से भाजपा विधायक और राजस्व मंत्री अनूप बाल्मीकि पर विश्वास जताया है। सपा और कांग्रेस के गठबंधन ने हाथरस लोकसभा पर जसवीर वाल्मीकि को प्रत्याशी बनाया है। इंडिया गठबंधन में ये सीट सपा के खाते में है। बसपा ने हेमबाबू धनगर पर दांव लगाया है। 2014 और 2019 के चुनाव में भाजपा ने ये सीट बड़े वोटों के अंतर से जीता। 2014 में बसपा रनर रही। 2019 के चुनाव में बसपा-सपा-रालोद का गठबंधन था। ये सीट सपा के खातें में थी। इस चुनाव में सपा दूसरे नंबर पर रही।

याद कीजिए वर्ष 1991 से भाजपा का दौर शुरू हुआ। भाजपा ने डा. लाल बहादुर रावल मैदान में उतरे और सांसद बने। तभी अयोध्या में रामलला हम आएंगे का नारा गूंज रहा था। तब लगातार भाजपा लोकसभा का चुनाव जीतती रही है। मगर क्या भाजपा की किलेबंदी को भेदने में सपा या बसपा सफल हो पाएंगे? इसका जवाब भी सात मई को होने वाले मतदान के बाद मिल जाएगा।

दलितों की राजधानी आगरा का बसपा का खाता नहीं खुला

परिसीमन के बाद 2009 में आगरा लोकसभा सीट को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया। 19 लाख से अधिक मतदाताओं वाले आगरा लोकसभा क्षेत्र को दलितों की राजधानी कहा जाता है। आगरा लोकसभा सीट पर दलित वोट निर्णायक भूमिका में हैं। इसके बाद भी बहुजन समाज पार्टी इस सीट से कभी चुनाव नहीं जीत पाई है। साल 1952 से लेकर 1971 तक इस सीट पर कांग्रेस ही जीतती रही। राम मंदिर लहर में पहली बार 1991 में भाजपा का खाता खुला और 1996, 1998 तक लगातार तीन बार कमल खिला। इसके बाद फिर हवा का रुख बदला और 1999 और 2004 के चुनाव में सपा यहां से जीती। आगरा सीट 2009 से भाजपा के कब्जे में है। भाजपा इस सीट पर हुए कुल 17 चुनाव में 6 चुनाव जीतने का रिकार्ड बना चुकी है। भाजपा 2024 के चुनाव में इस सीट पर लगातार चौथी जीत की तैयारी में है।

पिछले दो चुनावों का हाल

साल 2019 के लोकसभा चुनावों की बात करें तो भाजपा प्रत्याशी एसपी बघेल ने बसपा के उम्मीदवार मनोज कुमार सोनी को मात दी थी। बघेल को 646,875 (56.46%) और मनोज कुमार सोनी को 435,329 (38%) वोट मिले थे। कांग्रेस प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहा। अब बात करें साल 2014 लोकसभा चुनावों की तो इस चुनाव में भी भाजपा के राम शंकर कठेरिया ने बसपा के नारायण सिंह सुमन को मात दी थी। भाजपा के खाते में 583,716 (54.53%) और बसपा को 283,453 (26.48%) वोट आए थे। सपा तीसरे नंबर पर रही।

आगरा में कामयाब क्यों नहीं होती है बसपा

बसपा ने 2009, 2014 और 2019 के चुनाव में भाजपा को जबरदस्त टक्कर दी। बसपा तो 2009 का चुनाव करीब 10 हजार वोट से हार गई थी। लेकिन बाद के चुनाव में हार का फासला बढ़ता चला गया। इस साल भी भाजपा ने एसपी सिंह बघेल पर ही भरोसा जताया है। इंडिया गठबंधन में यह सीट सपा के खाते में आई है। सपा ने स्थानीय जूता कारोबारी सुरेश चंद कर्दम को टिकट दिया है। कर्दम साल 2000 में यहां से मेयर का चुनाव लड़ चुके हैं। उन्हें दूसरा स्थान मिला था। वहीं बसपा ने पूजा अमरोही को मैदान में उतारा है। पूजा एक कांग्रेस नेता की बेटी हैं और सामाजिक कार्यों के रास्ते राजनीति में दाखिल हुई हैं।

आगरा लोकसभा सीट पर जाटव वोट बैंक निर्णायक भूमिका में रहता है। कांग्रेस इन्हीं वोटों के सहारे यहां से जीतती रही। लेकिन 1980 के दशक में अपने गठन के बाद से बसपा ने कांग्रेस का दबदबा खत्म कर दिया। बसपा कांग्रेस का दबदबा खत्म करने में कामयाब तो रही, लेकिन खुद इस सीट पर कभी जीत नहीं पाई। हालांकि विधानसभा चुनाव में बसपा का आगरा जिले में प्रदर्शन शानदार रहा है।

हिन्दुस्थान समाचार/ डॉ. आशीष वशिष्ठ/मोहित