मिट्टी के उत्पादों को  मिले   बाजार  तो कुम्हारी कला को मिले रफ्तार
मिट्टी के उत्पादों को  मिले   बाजार  तो कुम्हारी कला को मिले रफ्तार
मिट्टी के उत्पादों को  मिले   बाजार  तो कुम्हारी कला को मिले रफ्तार


मिट्टी के उत्पादों को  मिले   बाजार  तो कुम्हारी कला को मिले रफ्तार


मिट्टी के उत्पादों को  मिले   बाजार  तो कुम्हारी कला को मिले रफ्तार


मिट्टी के उत्पादों को  मिले   बाजार  तो कुम्हारी कला को मिले रफ्तार


सुल्तानपुर, 25 अक्टूबर (हि.स.)।

पूरे देश में दिवाली से लेकर अन्य पर्व पर मिट्टी के बर्तनों , दीपों की मांग होती है , केवल चाय के लिए कुल्हड़ जैसे प्रमुख उत्पाद की वर्ष भर मांग रहती है । ज्यादातर कुम्हार पुश्तैनी कार्य में लगे हैं। इनकी रोजी-रोटी व घर-परिवार इसी से चलता है। मिट्टी के उत्पादों की बिक्री के लिए बाजार न मिलने से कारोबार को रफ्तार नहीं मिल पा रही है। ऐसे में त्योहारों व सहालग में इनका काम चलता है, अन्य दिनों मे खाली रहना पड़ता है। अब दिवाली पर घर-घर चाक डोल रहे हैं। मिट्टी के खिलौने, दीये व गणेश-लक्ष्मी के साथ अन्य प्रतिमाओं को बनाने व रंग-रोगन का भी काम तेज हो गया है। इनको बेचने के लिए शहर से लेकर गांव तक के बाजार में इन्हें कोई स्थान नहीं मिलता। यदि प्रशासन इसकी व्यवस्था करा दे तो काफी मदद मिल सकती है।

जिले में लगभग एक लाख कुम्हार परिवार है। इनमें से लगभग 70 प्रतिशत कुम्हार का परिवार मिट्टी से तरह-तरह के उत्पाद तैयार करता है। इनमें अधिकतर वर्ष भर कुल्हड़ व अन्य मिट्टी के बर्तन बनाकर जीवन यापन करते हैं। सरकार इनके व्यवसाय का आधुनिकीकरण करने के लिए हाथ के बजाय बिजली से चलने वाले चाक मुहैया करा रही है। उत्पादों को बेचने के लिए इनको दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती हैं। चौक व अन्य जगहों पर ये अपना उत्पाद बेचते हैं तो भवन मालिकों को दुकान लगाने के लिए पैसे देने पड़ते हैं। इससे इनके उत्पाद में मेहनत व लागत बराबर हो जाती है। मुनाफे के नाम पर कुछ नहीं बचता। यही कारण है कि इनके उत्पाद पर बाजारीकरण हावी होता जा रहा है। बाजार में आर्टिफिशियल दीये भी आने लगे हैं। मिट्टी के दीये पूजन में शगुन तक सीमित हो जा रहे हैं। गभड़िया के विजय कुमार बताते हैं कि त्योहार आने से महीने भर पहले पूरा परिवार इस काम में रात-दिन जुटकर प्रतिमाएं व दीया आदि बनाया जाता है। बिक्री के लिए बाजार में बैठने की जगह नहीं मिलती तो औने-पाैने दाम में उत्पाद बेचना पड़ता है। लागत व पूरे परिवार की मेहनत जोड़ दी जाए तो कुछ बचता नहीं है, लेकिन पुश्तैनी व्यवसाय है जिसे मजबूरी में करना पड़ता है। गभड़िया की सरिता ने बताया कि मिट्टी के खिलौने व प्रतिमाओं को तैयार करने के बाद इसे बाजार में बेचने का संकट रहता है। प्रशासन द्वारा त्योहार पर किसी जगह बाजार निर्धारित कर दिया जाए तो मदद मिलेगी। गभड़िया की सुनीता ने बताया कि सब्जीमंडी, गल्लामंडी, किराना मंडी आदि बाजार चिन्हित है। हमारा भी पुश्तैनी कारोबार है। इसके लिए भी प्रशासन को त्योहार पर कहीं जगह चिन्हित कर देनी चाहिए।

उत्तर प्रदेश माटी कला बोर्ड के सदस्य मंगरू प्रजापति ने बताया कि जिले में मिट्टी से बने उत्पादों की बिक्री के लिए बाजार उपलब्ध कराने के लिए अध्यक्ष के माध्यम से मांग करेंगे। इस बार त्योहार पर जिलाधिकारी के माध्यम से शहर में स्थान दिलवाए जाने की मांग की गई है। राष्ट्रीय प्रजापति महासभा के जिलाध्यक्ष माता प्रसाद प्रजापति ने बताया कि पूरे जिले में 60 से 70 हजार परिवार के जीविकोपार्जन का यह मुख्य साधन है। प्रमुख बाजारों में इस कारोबार के लिए जगह चिन्हित करने को लेकर शासन-प्रशासन से मांग करेंगे।

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हिन्दुस्थान समाचार / दयाशंकर गुप्ता