Enter your Email Address to subscribe to our newsletters
रतलाम, 10 अक्टूबर (हि.स.)। रतलाम जिले के पिपलौदातहसील अंतर्गत ग्राम पुण्याखेड़ी नवाबगंज में नौ दुर्गा का एक विख्यात मंदिर है। यहां पर एक ही गर्भगृह में माता की नौ दुर्गाओं की प्रतिमाएं स्थापित है। माना जाता है कि यहां जो अपनी मनोकामना लेकर दर्शन करता है उसकी इच्छा तीस दिन में पूरी हो जाती है। इतना ही नहीं, मंदिर के करीब बने हुए प्राचीन कुआ में स्नान से कई प्रकार के रोग भी ठीक होने के बात कही जाती है। मंदिर निर्माण के पूर्व प्रतिमाओं के बारे में एक किसान को सपना आया था, इसके बाद जमीन में से प्रतिमाओं को निकाला गया। करीब 600 वर्ष से अधिक पूर्व का मंदिर का इतिहास है।
1 माह में पूरी होती है भक्तों की मनोकामना
मंदिर के बारे में पुजारी राजेंद्र शर्मा ने बताया कि मंदिर तड़के 4 बजे खुलता है व रात 10 बजे तक दर्शन की व्यवस्था रहती है। मंदिर में आने वाले भक्त ही यह दावा करते है कि वे जो मनोकामना लेकर आए वो मात्र एक माह में पूरी हो गई। इतना ही नहीं, कई प्रकार के रोग लेकर आने वाले मरीज भी मंदिर के करीब बने हुए कुआ में स्नान करके रोग मुक्त होने की बात कहते है।
कृषक को स्वप्न में हुए थे माता के दर्शन
मंदिर बनने से पूर्व यहां के एक कृषक परिवार के सदस्य को स्वप्न में दर्शन हुए थे कि माता की प्रतिमाएं भूमि में है व इनको बाहर निकालना जरूरी है। शुरू में किसान ने जब सपने को गंभीरता से नहीं लिया तो प्रतिदिन यह सपना आने लगा। इसके बाद रामलाल नाम के कृषक ने अपने परिवार को इसके बारे में बताया व खुदाई शुरू की गई तो करीब 50 फीट नीचे खुदाई के बाद प्रतिमाएं बाहर आई।
आस्था का केंद्र है मंदिर, दूरदराज से आते है भक्त
इस मंदिर में नियमित दर्शन करने आने वाले भक्त बताते है कि उनकी आस्था का प्रमुख कारण यह है कि यहां जो भी मांगो, सकारात्मक हो तो मनोकामना जरूर पूरी होती है। इतना ही नहीं, अगर किसी के प्रति खराब विचार रखकर मंदिर में कुछ मांगते है तो दर्शन में ही संकेत आ जाता है कि पाप के मार्ग पर मत चलो। यहां पर सुबह व शाम को आरती व रात में भजन व गरबा का आयोजन होता है।
भगवान कृष्ण के काल मे भी यह मंदिर मौजूद रहा
600 वर्ष पुराना नवदुर्गा का यह मंदिर अति चमत्कारी मंदिर होकर विक्रम काल से भी पहले का पाषण कालीन मंदिर कहा जाता है यहाँ भगवान कृष्ण के काल मे भी यह मंदिर मौजूद रहा बताया जाता है श्री कृष्ण के महापरणाय के बाद मंदिर की सारी मुर्तिया जमीन मे समाई गई और पाषण कालीन के अवशेष रह गए ग्रामीणों ने फिर खुदाई की तो जमीन के अंदर से प्रतिमाए बहार आई कहा जाता है की नो दुर्गा पुरे विश्व मे एक साथ कही विराजित नहीं है के यहां की खास बात यह है की यहाँ हर साल दोनों नवरात्रि मे भक्तों का ताता रहता है गांव के ही शंकर चरपोटा, बाबूलाल, का कहना है की माँ के दरबार मे जो भी भक्त आता है कभी खाली नहीं जाता कष्टों के निवारण के साथ ही जिन लोगो को लखमा हो जाता विशेष तोर पर नवरात्रि मे भक्त वहा रहकर सुबह शाम परिक्रमा कर अपने दुखो का निवारण होता है। यहाँ की मान्यता है की बावड़ी के पानी से स्नान करने से सारे दुख दूर हो हो जाते है यहाँ कल्पवृष का पेड़ भी है ऐसी मान्यता है की इस पेड़ मे ऐसी आकृति चित्र है जो मन की कल्पना पूरी करते है पेड़ की परिक्रमा लेने से सारे दुख दूर हो जाते है मनोकामना पूरी होती है
क्या कहते है भक्त
डूंगरपुर के कमलेश, शांतिलाल ने बताया की हर नवरात्रि मे आते है उनको आते आते 10 साल हो गए मंदसौर के कपिल ने बताया की दोनों पति पत्नी 20 साल से आते है अष्टमी और नवमी की रात मंदिर मे ही रुक कर माता की आस्था मे लीन होते है
पूरे विश्व मे प्रशिद्ध है माँ नव दुर्गा का यह मन्दिर
मन्दिर समिति के राजकुमारसिंह राठौर राधेश्याम बैरागी ने बताया कि पूरे भारत में मात्र यही एक ऐसा मन्दिर है जहां पर माता जी के 9 रूप की प्रतिमा विराजित है।इस मंदिर परिषर में एक ऐसी कुइया है जिसका पानी पीने से कई लखमे से ग्रषित मरीज स्वस्थ्य होकर अपने पैरों पर चलकर घर गए है। क्षेत्र के रहवासियो की माने तो इस मंदिर पर लखमे से ग्रषित ऐसे मरीज भी ठीक होकर अपने पैरों पर चलकर घर गए जिनको परिजन अन्य साधनों में लेटाकर यहां लाये थे। इसके अलावा मन्दिर परिषर में कल्पव्रक्ष जैसा एक पेड़ भी है जिसकी परिक्रमा लेने से कोढ़ रोग से ग्रषित कई रोगी भी ठीक हो चुके। अन्य रोगों से ग्रषित मरीजो के जीवन में हुई चमत्कार के लिए आज भी यह मंदिर पूरे भारत मे प्रशिद्ध है।
निःसन्तान के घर भी गूंजी बच्चे की किलगारी
माँ नवदुर्गा के इस दरबार मे ऐसे लोगो की भी मनोकामना पूरी हुई जो वर्षो से अपने घर में बच्चे की किलगारी के लिए दर दर भटक रहे थे। माँ नवदुर्गा के दरबार मन्नत मांगने से ऐसे कई निःसन्तान लोगो के घर बच्चे की किलगारी गूंजी जो वर्षो से सन्तान की खुशी में दर दर भटक रहे थे।
---------------
हिन्दुस्थान समाचार / शरद जोशी