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हृदयनारायण दीक्षित
सर्वोच्च न्यायालय ने पेड़ों की अवैध कटान पर तीखी टिप्पणी की है। मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने कहा कि, ”प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि पेड़ों की अवैध कटान हुई है।” कोर्ट ने केन्द्र, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब राज्यों से तीन हफ्तों में जवाब मांगा है। मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा है कि, ”पहाड़ी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अवैध कटाई दिखाई पड़ती है।” कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि, ”वह इसकी जांच करें। इसके लिए जो कुछ भी जरूरी हो, किया जाना चाहिए।”
पेड़ कटानों का परिणाम देश के लिए घातक होता है। वृक्षों से वर्षा होती है। कटान से ऋतु चक्र गड़बड़ाता है। विश्व बैंक की ‘दक्षिण एशियाई हॉटस्पॉट-तापमान के प्रभाव और जीवन स्तर का परिवर्तन‘ शीर्षक से रिपोर्ट आई थी। रिपोर्ट में अनुमान किया गया था कि सन् 2050 तक भारत की जीडीपी 28 प्रतिशत तक घट सकती है। अन्य तमाम संस्थाओं ने भी जलवायु परिवर्तन से भारत को खतरा बताया है।
भारतीय ज्ञान परंपरा में वृक्ष और वनस्पतियां पृथ्वी परिवार के अंग हैं। हम उन पर आश्रित हैं। पेड़ पौधों में भी जीवन होता है। हमारे और वृक्ष वनस्पतियों के बीच परस्परावलंबन है। वे सभी ऋतु चक्र को प्रभावित करते हैं। पृथ्वी के प्राकृतिक घटक अव्यवस्थित हो गए हैं। इसी अव्यवस्था के चलते उत्तराखण्ड सहित देश के अन्य राज्यों में भूस्खलन, बादल फटने की घटनाएं भी चिन्ता का विषय हैं। तूफान और बाढ़ आती है। भारत की अधिकांश नदियां जलहीन हो रही हैं। ऋतु परिवर्तन का चक्र गड़बड़ा गया है। इसका असर पशु पक्षियों पर भी पड़ा है।
सन् 2000 में पेरिस में ‘अर्थ कमीशन‘ ने पृथ्वी और पर्यावरण संरक्षण के 22 सूत्र निकाले थे। ऐसी बैठकें लगातार होती रहीं। 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने टिकाऊ विकास के 17 लक्ष्य निर्धारित किए थे। पर्यावरण इन लक्ष्यों में खासा महत्व रखता है। भारत ने टिकाऊ विकास के लक्ष्यों पर बढ़-चढ़कर काम किया है। पेट्रोल डीजल का उपयोग घटाने के प्रयास हुए हैं। विद्युत चलित वाहन बढ़ रहे हैं। लेकिन अभी ठोस परिणाम नहीं आए हैं।
सभ्यता के विकास में शुरुआत में पेड़-पौधे ही हमारे संरक्षक और विधाता थे। हम उनको प्रणाम करते थे। पानी देते थे। वैदिक काल से ही पेड़ पौधों को प्रेम करने वाली संस्कृति प्रवाहमान है। वैदिक काल के बाद का चरण हड़प्पा सभ्यता है। यह खूबसूरत नगरीय सभ्यता थी। आजादी के बाद में नगरों महानगरों का अराजक विकास हुआ। नगर क्षेत्र विस्तार की नीति पेड़ पौधों को आत्मीय समझने वाली होनी चाहिए।
हम भारत के लोग वनस्पतियों में देवता देखते रहे हैं। लोक मान्यता में प्रत्येक पेड़ का एक देवता होता है। विष्णु पीपल के देवता हैं। बरगद के देवता शिव हैं। सोम के देवता चन्द्रमा हैं। अशोक के देवता इन्द्र और आदित्य हैं। आंवला के देवता विष्णु हैं। महाभारत में कथा है। कृष्ण ने एक बार पृथ्वी की पूजा की थी। वे समाधिष्ट हो गए। पृथ्वी स्त्री वेश में कृष्ण के सामने पहुंचीं। कृष्ण ने पृथ्वी से अभिलाषा की, ”मां आप कैसे प्रसन्न होती हैं?” पृथ्वी ने कहा, ”सभी जीवों को प्यार करो। पेड़ पौधों को संरक्षण दो। प्रतिदिन अपने भोजन का एक हिस्सा अलग रख लिया करो। जीव आएंगे और प्रसन्न होंगे।”
वृक्षों और वनस्पतियों को भी प्रेम की प्यास रहती है। पृथ्वी पर पेड़ पौधों की उपस्थिति एक असाधारण संरचना है। लाखों जीव और वनस्पतियां पृथ्वी में हैं। मैकडनल ने वैदिक माइथॉलजी में खूबसूरत टिप्पणी की है। ऋग्वेद के अनुसार वह वन वृक्षों का आधार हैं। वही वर्षा कराती हैं। अथर्ववेद में पृथ्वी सूक्त है। इस सूक्त में कहा गया है कि, ”यह वनस्पतियों का आधार है। पृथ्वी का गुण गंध है। यह गंध वनस्पतियों में है।” पृथ्वी संसार की धारक है। पेड़ों की कटान के विरुद्ध अधिनियम हैं। लेकिन इस कटान में स्थानीय पुलिस की भागीदारी रहती है।
पूर्वजों का ध्यान वनस्पतियों पर था। ऋग्वेद में वनस्पतियों को देवता कहा गया है। अथर्ववेद के एक सूक्त (1.34) में ऋषियों के वनस्पति प्रेम की झांकी है। अथर्वा के सामने एक लता है। लता से कहते हैं, ”आप मधुरता के साथ पैदा हुई हैं।” फिर कहते हैं, ”हे लता आप मधुर हैं। हमें भी मधुर बनाएं।” समूचे वैदिक वांग्मय में वनस्पतियां छाई हुई हैं। ऋषियों ने सोम को देवता बताया है। सोम को वनस्पतियों का राजा भी कहा गया है। (ऋग्वेद 9.114.2) सोम एक वनस्पति थी। इससे रस निकाला जाता था। ऋग्वेद के अनुसार सोम देवताओं को प्रिय थी। उनकी मान्यता थी कि सोम का रस पीने से अमृत्व मिल जाता है। वनस्पतियां कई तरह की हैं।
पेड़ों की कटान की तरफ सर्वोच्च न्यायालय ने देश का ध्यानाकर्षण किया है। यह बहुत उचित है। यह भारतीय जन गण मन का ध्यान खींचने वाला है। विकास की अंधी दौड़ में हमारी अस्मिता समाप्तप्राय हो रही है। प्राचीन संस्कृति के अनेक अवशेष आज भी हम सब का ध्यान परंपरा की ओर आकर्षित करते हैं। कोई व्यक्ति अपने फार्म हाउस में एक छोटा-सा बगीचा बनाता है। उसका नाम पंचवटी रखता है। पंचवटी श्रीराम का विश्राम स्थल थी। वाल्मीकि ने रामायण में बताया है कि, ”श्रीराम अयोध्या से पैदल चलकर प्रयागराज पहुंचे थे। प्रयागराज में त्रिवेणी के तट पर ऋषि भारद्वाज का आश्रम था। उन्होंने श्रीराम को आते देखा। वंदना की। उस समय आश्रम के सारे पेड़ पौधे नाच रहे थे।”
अथर्ववेद के ऋषि ने देवताओं से अपने लिए घर मांगा। लगे हाथ संभावित घर का नक्शा भी बना दिया। ऋषि कहते हैं कि हमें ऐसा घर दो जिसमें गाएं अपने बछड़े के साथ घूम भी सकें और वनस्पतियों औषधियों के पौधे भी घर की शोभा बढ़ाएं।
बीते 30-35 वर्ष में वृक्षारोपण का काम सरकारों द्वारा किया गया है। पेड़ लगाने में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल प्रशंसनीय रही है। मोदी सरकार ने ‘मिशन लाइफ‘, स्वच्छ भारत अभियान, नमामि गंगे परियोजना और राष्ट्रीय वन महोत्सव जैसी योजनाओं से पेड़ लगाने और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा दिया है। पर्यावरणीय नीति ‘कैमपा‘ के माध्यम से राज्यों को हजारों करोड़ रुपये पेड़ लगाने के लिए दिए गए। योगी आदित्यनाथ ने 2017 से रिकॉर्ड वृक्षारोपण महाअभियान चलाया। 2022 में एक ही दिन में लगभग 35 करोड़ पौधे लगाए गए। अब तक उत्तर प्रदेश में लगभग 200 करोड़ पौधे लगाए जा चुके हैं। गंगा हरितिमा अभियान के अंतर्गत गंगा किनारे पेड़ लगाने का विशेष कार्यक्रम चलाया गया।
अग्नि पुराण में श्रीभगवान कहते हैं, ”अब मैं वृक्ष प्रतिष्ठा का वर्णन करता हूं। जो भोग और मोक्ष प्रदान करने वाली है। वृक्षों को सर्वो औषधि जल से लिप्त, सुगंधित चूर्ण से विभूषित तथा माला से अलंकृत करें। प्रत्येक वृक्ष का अधिवासन करें। वृक्ष के अधिवासन के समय ऋग्वेद, यजुर्वेद या सामवेद के मंत्रों से हवन करें।” वृक्ष तथा उद्यान की प्रतिष्ठा से परम सिद्धि की प्राप्ति होती है। पद्म पुराण में वृक्षारोपण का फल बताया गया है। पीपल का पेड़ लगाने से रोग नाश होता है और धन मिलता है। पाकड़ का पेड़ लगाने से यज्ञ का फल मिलता है। नीम का पेड़ लगाने से सूर्य देवता की कृपा हम पर बरसती है। इसी तरह बेल का पेड़ लगाने से शिव प्रसन्न होते हैं। कोई भी पेड़ लगाने से वातायन में सकारात्मक परिवर्तन होता है। पीपल, बरगद तो पूजनीय हैं ही। यजुर्वेद के शांति मंत्र में औषधियों वनस्पतियों के शांत रहने की प्रार्थना है-”पृथ्वी शांत हों, अंतरिक्ष शांत हों, वनस्पतियां औषधियां शांत हों।”
(लेखक, उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूूर्व अध्यक्ष हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / संजीव पाश