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-डॉ. मयंक चतुर्वेदी
21वीं सदी का वैश्विक परिदृश्य हमें स्पष्ट रूप से यह संदेश दे रहा है कि वर्तमान दुनिया में असली शक्ति तकनीकी श्रेष्ठता में है। सूचना प्रौद्योगिकी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, साइबर सुरक्षा, सेमीकंडक्टर और अंतरिक्ष अनुसंधान ऐसे क्षेत्र हैं जो किसी भी देश की वैश्विक स्थिति और उसकी रणनीतिक स्वतंत्रता का निर्धारण करते हैं। भारत ने हाल ही में विक्रम-3201 चिप के विकास के साथ इस दिशा में ऐतिहासिक कदम उठा लिया है। यह चिप सिर्फ तकनीकी उपलब्धि नहीं, इससे भी आगे की राह में ये आत्मनिर्भर भारत के ‘स्व’ का जीवंत प्रमाण है।
विक्रम-3201, जिसे इसरो की सेमीकंडक्टर लैब ने तैयार किया है, भारत की पहली पूर्ण स्वदेशी 32-बिट प्रोसेसर चिप है। यह किसी साधारण इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के लिए नहीं है, यह भारत के प्रक्षेपण यान यानी लॉन्च व्हीकल्स के लिए डिजाइन की गई है। अंतरिक्ष में जाने वाले यान को ऐसे उपकरणों की आवश्यकता होती है जो 55 डिग्री सेल्सियस से लेकर 125 डिग्री सेल्सियस तक के चरम तापमान में बिना विफल हुए काम कर सकें। विक्रम-3201 ने इस चुनौती को पूरा करके यह संदेश दे दिया है कि भारत अब उस तकनीकी स्तर पर पहुँच चुका है, जहाँ वह स्वयं अपने लिए समाधान खोजने में सक्षम बन रहा है।
इस उपलब्धि का महत्व और भी अधिक इसलिए है क्योंकि यह हमें विदेशी तकनीक पर निर्भरता से मुक्त करेगा। अब तक भारत अपने रॉकेट लॉन्च और अंतरिक्ष मिशनों में पश्चिमी देशों या अन्य तकनीकी महाशक्तियों पर निर्भर था। कई बार राजनीतिक कारणों से इन देशों ने भारत पर तकनीकी प्रतिबंध भी लगाए। उदाहरण के लिए, 1990 के दशक में जब भारत ने रूस से क्रायोजेनिक इंजन तकनीक लेने की कोशिश की तो अमेरिका ने दबाव बनाकर इसे रोक दिया। इसी तरह, स्पेस ग्रेड चिप्स और सेमीकंडक्टर तकनीक तक भारत की पहुँच सीमित रही। आज विक्रम-3201 इन सभी अवरोधों का उत्तर है।
इससे जुड़ा यह भी एक तथ्य है कि सेमीकंडक्टर उद्योग वैश्विक स्तर पर 600 अरब डॉलर का है, जिसके कि 2030 तक यह 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच जाने का अनुमान है। भारत में 2024-25 तक यह बाजार 45 से 50 अरब डॉलर का आँका गया था, जिसके कि 2030 तक 100 से 110 अरब डॉलर तक पहुँचने की संभावना है। ऐसे में भारत का इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना निश्चित ही बहुत बड़ी उपलब्धि है।
यहाँ यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर भारत इतने वर्षों तक सेमीकंडक्टर उद्योग में पिछड़ा क्यों रहा। 1989 में मोहाली स्थित सेमीकंडक्टर लैब में लगी रहस्यमयी आग ने इस दिशा में भारत के शुरुआती प्रयासों को लगभग धराशायी कर दिया था। इसके अलावा, 1960 के दशक में अमेरिकी कंपनी फेयरचाइल्ड भारत में निवेश करना चाहती थी, किंतु सरकारी नीतिगत अस्पष्टता की वजह से वह अवसर हाथ से निकल गया और कंपनी मलेशिया चली गई।
इसके बाद 2021 में इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन (आईएसएस) की शुरुआत हुई। 2023 में गुजरात के साणंद में भारत के पहले सेमीकंडक्टर प्लांट को मंजूरी मिली। आज भारत के छह राज्यों गुजरात, असम, उत्तर प्रदेश, पंजाब, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में 10 सेमीकंडक्टर प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है जिन पर 1.6 लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश हो रहा है। यह निवेश और नीतिगत प्रोत्साहन भारत को वैश्विक सेमीकंडक्टर मानचित्र पर जगह दिलाने की दिशा में निर्णायक है।
दुनिया के परिप्रेक्ष्य में देखें तो ताइवान की टीएसएमसी (ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी) इस क्षेत्र में सबसे बड़ी कंपनी है। दक्षिण कोरिया की सैमसंग मेमोरी चिप्स में अग्रणी है। अमेरिका की इंटेल और एनवीडिया डिजाइन और एआई चिप्स में वैश्विक दिग्गज मानी जाती हैं। जापान और चीन भी इस उद्योग में मजबूत खिलाड़ी हैं। इन सबके बीच भारत का प्रवेश देर से हुआ है, लेकिन यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत जिस तेजी से इस क्षेत्र में कदम बढ़ा रहा है, वह आने वाले वर्षों में वैश्विक समीकरण बदल सकता है।
भारत की शक्ति उसकी विशाल युवा जनसंख्या, मजबूत आईटी सेक्टर, और रिसर्च व इनोवेशन की क्षमता है। जब यह क्षमता मजबूत नीति समर्थन और आत्मनिर्भरता की दृष्टि से जुड़ती है तो नतीजे अभूतपूर्व होते हैं। विक्रम-3201 इसका ताजा उदाहरण है। प्रधानमंत्री मोदी ने इस चिप को डिजिटल डायमंड कहा है। यह उपमा इस तथ्य की स्वीकृति है कि आने वाले समय में चिप्स ही दुनिया की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा का सबसे कीमती संसाधन होंगे।
अत: इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो भारत की यह उपलब्धि केवल अंतरिक्ष क्षेत्र तक सीमित नहीं है। सेमीकंडक्टर चिप्स का इस्तेमाल स्मार्टफोन, कंप्यूटर, ऑटोमोबाइल, हेल्थकेयर उपकरण, रक्षा प्रणाली और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तक हर क्षेत्र में होता है। दुनिया जिस गति से डिजिटलाइजेशन और ऑटोमेशन की ओर बढ़ रही है, वहाँ चिप्स की भूमिका किसी ऑक्सीजन से कम नहीं है। जो देश इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर होगा, वही असली मायनों में महाशक्ति कहलाएगा।
भारत के लिए यह उपलब्धि आज इसलिए भी खास है क्योंकि यह उस ऐतिहासिक कमी को पूरा करती है जिसने हमें कई बार वैश्विक राजनीति में कमजोर बनाया। तकनीकी प्रतिबंधों और सप्लाई चेन में व्यवधान के चलते भारत कई बार रणनीतिक चुनौतियों से गुजरा है, किंतु अब विक्रम-3201 जैसे कदमों से हम यह संदेश दे रहे हैं कि भारत किसी भी तरह के टेक्नोलॉजिकल ब्लैकमेल का शिकार नहीं होगा।
इस नजरिए से यदि आगे की राह को देखें तो भारत की दृष्टि केवल मेड इन इंडिया तक सीमित नहीं होनी चाहिए। हमें डिजाइन इन इंडिया और इनोवेट इन इंडिया की दिशा में भी कदम बढ़ाने होंगे। दुनिया केवल उत्पादन के स्तर पर ही नहीं बल्कि इनोवेशन और पेटेंट के आधार पर ही नेतृत्व तय करती है। यदि भारत विक्रम-3201 जैसी उपलब्धियों को आधार बनाकर लगातार नवाचार करता रहा तो इसमें कोई संदेह नहीं कि हम 2032 तक दुनिया के टॉप-5 सेमीकंडक्टर देशों में शामिल हो जाएंगे। आज की दुनिया में डिजिटल तकनीक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और साइबर सुरक्षा किसी भी देश की सॉफ्ट पावर और हार्ड पावर दोनों का निर्धारण करती हैं। भारत का सपना 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का है। उस सपने को साकार करने के लिए विक्रम-3201 जैसे कदम महत्वपूर्ण पड़ाव साबित होंगे।
अंततः, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि विक्रम-3201 चिप के लॉन्च के साथ भारत ने न केवल तकनीकी स्वराज की नींव रखी है बल्कि वैश्विक महाशक्ति बनने की ओर निर्णायक कदम भी बढ़ा दिया है। जिस तरह ताइवान को चिप फैक्ट्री कहा जाता है, उसी तरह आने वाले समय में भारत को चिप पावरहाउस के रूप में देखे जाने की उम्मीद है। यह यात्रा लंबी है, चुनौतियाँ कठिन हैं, लेकिन आज की यह शुरुआत आने वाले कल की सबसे बड़ी ताकत बनने की दिशा में है।
हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी