समाज के प्रकाश स्तम्भ होते हैं शिक्षक
शिक्षक दिवस (5 सितम्बर) पर विशेष रमेश सर्राफ धमोरा हमारे देश में शिक्षकों को भगवान से भी ऊपर का दर्जा दिया गया है। इसीलिए प्रतिवर्ष शिक्षक को सम्मान देने के लिए 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के लिए रूप में मनाया जाता है। हर देश में शिक्षक दिवस को मनाने क
रमेश सर्राफ धमोरा


शिक्षक दिवस (5 सितम्बर) पर विशेष

रमेश सर्राफ धमोरा

हमारे देश में शिक्षकों को भगवान से भी ऊपर का दर्जा दिया गया है। इसीलिए प्रतिवर्ष शिक्षक को सम्मान देने के लिए 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के लिए रूप में मनाया जाता है। हर देश में शिक्षक दिवस को मनाने की तारीख अलग-अलग है। चीन में 10 सितम्बर तो अमेरिका में 6 मई, ऑस्ट्रेलिया में अक्तूबर का अंतिम शुक्रवार, ब्राजील में 15 अक्तूबर और पाकिस्तान में 5 अक्तूबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। इसके अलावा ओमान, सीरिया, मिस्र, लीबिया, संयुक्त अरब अमीरात, यमन, सऊदी अरब, अल्जीरिया, मोरक्को और कई इस्लामी देशों में 28 फरवरी को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। लेकिन भारत में शिक्षक दिवस को दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जयंती के उपलक्ष्य में 5 सितंबर को मनाया जाता है।

शिक्षक हमें जीवन में सफलता के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल देते हैं। शिक्षक हमारे व्यक्तित्व को तैयार करते हैं। चरित्र को ढालने और मूल्यों को स्थापित करने में मदद करते हैं। हमें एक अच्छा नागरिक भी मनाने में मदद करते हैं। शिक्षक ही है जो छात्रों को जीवन का नया अर्थ सिखाता है। वे हमें सही रास्ता दिखाते हैं और कुछ भी गलत करने से रोकते हैं। वे बाहर से देख सकते हैं। वे प्रत्येक छात्र की देखभाल करते हैं और उनके विकास की कामना करते हैं। शिक्षक छात्र के व्यक्तित्व को ढालते हैं। वे एकमात्र निःस्वार्थ व्यक्ति हैं जो खुशी-खुशी बच्चों को अपना सारा ज्ञान देते हैं। कहा जाता है कि गुरु के बिना ज्ञान अधूरा रहता है। यह बात बिल्कुल सत्य है।

हमारे जीवन में सबसे पहली गुरु तो मां होती है जो हमें जन्म लेते ही हर बातों का ज्ञान कराती है। मगर विद्यार्थी काल में बालक के जीवन में शिक्षक ही उसे शिक्षित करता ही है और अच्छे-बुरे का ज्ञान कराता है। पहले के समय में छात्र गुरुकुल में शिक्षक के पास रहकर वर्षों विद्या अध्ययन करते थे। उस दौरान गुरु अपने शिष्यों को विद्या अध्ययन करवाने के साथ ही स्वावलंबी बनने का पाठ भी पढ़ाते थे। इसीलिए कहा गया है- गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए। गुरु का स्थान ईश्वर से भी बड़ा माना गया है, क्योंकि गुरु के माध्यम से ही व्यक्ति ईश्वर को भी प्राप्त करता है।

हमारे जीवन को संवारने में शिक्षक एक बड़ी और महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। सफलता प्राप्ति के लिये वो हमें कई प्रकार से मदद करते है। जैसे हमारे ज्ञान, कौशल के स्तर, विश्वास आदि को बढ़ाते है तथा हमारे जीवन को सही आकार में ढ़ालते है। कबीर दास ने शिक्षक के कार्य को इन पंक्तियो में समझाया हैः-“गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि गढ़ि काढ़ै खोट, अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट”

कबीर दास जी कहते हैं कि शिक्षक कुम्हार की तरह है और छात्र पानी के घड़े की तरह। जो उनके द्वारा बनाया जाता है और इसके निर्माण के दौरान वह बाहर से घड़े पर चोट करता है। इसके साथ ही सहारा देने के लिए अपना एक हाथ अंदर भी रखता है।

भारत में भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस को 1962 से शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने अपने छात्रों से अपने जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाने की इच्छा जताई थी।

डॉ राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर 1888 को तमिलनाडु के तिरुमनी गांव में हुआ था। वे बचपन से ही किताबें पढ़ने के शौकीन थे और स्वामी विवेकानंद से काफी प्रभावित थे। डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक महान शिक्षक थे। जिन्होंने अपने जीवन के 40 वर्ष अध्यापन पेशे को दिया है। वो विद्यार्थियों के जीवन में शिक्षकों के योगदान और भूमिका के लिये प्रसिद्ध थे। इसलिये वो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने शिक्षकों के बारे में सोचा और हर वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रुप में मनाने का अनुरोध किया। उनका निधन 17 अप्रैल 1975 को चेन्नई में हुआ था।

वर्तमान समय में शिक्षकों का समाज में सम्मान कम होने लगा है। बहुत से शिक्षकों की घटिया हरकतों ने उनको समाज की नजरों से गिरा दिया है। स्कूल, कालेजों में छात्र, छात्राओं के साथ शिक्षकों द्धारा नीच हरकते करने के चलते शिक्षण जैसा पवित्र कार्य बदनाम होता जा रहा है। मौजूदा दौर में शिष्य भी कुछ कम नहीं हैं। छात्रों की अनुशासनहीनता के चलते स्कूल, कालेजों में शिक्षा का वातावरण समाप्त होता जा रहा है। गुरू-शिष्य को एक-दूसरे की भावनाओं को समझ कर मिलजुल कर ज्ञान की ज्योति जलानी होगी। शिक्षक दिवस मनाने के साथ हमें शिक्षण कार्य की पवित्रता को फिर से बहाल करने की प्रतिज्ञा भी लेनी होगी। तभी हमारा शिक्षक दिवस मनाना सार्थक हो पायेगा।

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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हिन्दुस्थान समाचार / रमेश