अमेरिकी टैरिफ, मजबूत भारत, इक्विटी बाजार की आत्मनिर्भरता और नए बाजार
-डॉ. मयंक चतुर्वेदी अमेरिका द्वारा भारत से निर्यातित वस्तुओं पर 50 प्रतिशत तक का टैरिफ लगाए जाने की घोषणा वैश्विक स्तर पर एक बड़ी खबर रही। आम तौर पर ऐसे कदम किसी भी उभरती अर्थव्यवस्था को गहरे स्तर पर प्रभावित कर सकते हैं। व्यापारिक रिश्तों में तनाव
मेरिकी टैरिफ, मजबूत भारत, इक्विटी बाजार की आत्मनिर्भरता


-डॉ. मयंक चतुर्वेदी

अमेरिका द्वारा भारत से निर्यातित वस्तुओं पर 50 प्रतिशत तक का टैरिफ लगाए जाने की घोषणा वैश्विक स्तर पर एक बड़ी खबर रही। आम तौर पर ऐसे कदम किसी भी उभरती अर्थव्यवस्था को गहरे स्तर पर प्रभावित कर सकते हैं। व्यापारिक रिश्तों में तनाव, कंपनियों की आय पर दबाव और विदेशी निवेशकों की सतर्कता, ये सभी ऐसे हालात में सामने आते हैं, किंतु भारतीय इक्विटी बाजार ने इस निर्णय पर जिस संतुलित और आत्मविश्वासी ढंग से प्रतिक्रिया दी है, वह आज की नई आर्थिक हकीकत को सामने लाती है।

इसे देखते हुए यही कहना होगा कि अब भारत केवल बाहरी कारकों पर निर्भर नहीं है, वह अपने भीतर ऐसी ताकतें पैदा कर चुका है जो उसे वैश्विक झटकों से बचाने में सहायक हैं। यही बदलते भारत की कहानी है, एक ऐसा भारत जो निवेशकों के भरोसे से मजबूत है और अपनी घरेलू क्षमता से टिकाऊ वृद्धि की राह पर बढ़ रहा है। वस्‍तुत: दो सितंबर 2025 को जारी एचएसबीसी ग्लोबल इन्वेस्टमेंट रिसर्च की रिपोर्ट में साफ कहा गया कि अमेरिकी टैरिफ का भारतीय इक्विटी बाजार पर कोई बड़ा असर नहीं होगा।

रिपोर्ट के अनुसार बीएसई-500 की सूचीबद्ध कंपनियों में से चार प्रतिशत से भी कम कंपनियाँ अमेरिकी निर्यात पर निर्भर हैं। इसका मतलब है कि व्यापक स्तर पर भारतीय कॉरपोरेट जगत की कमाई पर इन टैरिफ का सीधा प्रभाव न के बराबर है। यही नहीं, फार्मास्यूटिकल जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र को इन टैरिफ से छूट दी गई है, जिससे भारत की सबसे प्रतिस्पर्धी और वैश्विक स्तर पर सबसे मान्यता प्राप्त उद्योग शाखा सुरक्षित बनी हुई है। स्पष्ट है कि इस कदम से भारतीय बाजार को झटका भले लगा हो, लेकिन उसकी जड़ें हिलाने वाली स्थिति नहीं बनी।

असल में भारतीय इक्विटी बाजार की असली ताकत अब घरेलू निवेशकों की बढ़ती भागीदारी है। पहले विदेशी संस्थागत निवेशक यानी एफआईआई भारतीय बाजार का मूड तय करते थे। उनकी भारी खरीद या बिकवाली से बाजार झूल जाता था। लेकिन बीते कुछ वर्षों में तस्वीर बदल गई है। वित्त वर्ष 2024-25 में घरेलू संस्थागत निवेशकों ने लगभग 71.6 अरब डॉलर का निवेश किया, जिसमें से करीब 55 अरब डॉलर सिर्फ म्यूचुअल फंड्स से आए।

दूसरी ओर, विदेशी निवेशकों ने इसी दौरान लगभग 15.6 अरब डॉलर की बिकवाली की। इसके बावजूद बाजार स्थिर बना रहा। जुलाई 2025 में घरेलू म्यूचुअल फंडों में सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) के माध्यम से 28,464 करोड़ रुपये का रिकॉर्ड निवेश हुआ। यह आँकड़ा दर्शाता है कि भारतीय बचत और निवेश की धाराएँ अब देश के पूँजी बाजार को संभालने में सक्षम हो चुकी हैं। यही कारण है कि अमेरिकी टैरिफ या विदेशी निवेशकों की बिकवाली का असर सीमित रहा।

यहां रिपोर्ट यह भी बताती है कि भारतीय बाजार के लिए नौ में से पाँच प्रमुख जोखिम कारकों में सुधार हो रहा है। इनमें मुद्रास्फीति का थमना, सरकारी कर प्रोत्साहन, उपभोग की संभावनाओं में बढ़ोत्‍तरी और वेतन वृद्धि की उम्मीदें शामिल हैं। मुद्रास्फीति का थमना सबसे अहम है, क्योंकि यह सीधे उपभोक्ता की क्रय शक्ति को बढ़ाता है। जब रोजमर्रा की जरूरतों पर खर्च कम होता है, तो उपभोक्ता अन्य वस्तुओं और सेवाओं पर अधिक खर्च कर सकता है। इससे खपत बढ़ती है और कंपनियों की बिक्री तथा मुनाफे पर सकारात्मक असर पड़ता है। हालाँकि एचएसबीसी ने यह भी चेतावनी दी है कि 2025 में आय वृद्धि घटकर 8–9 प्रतिशत रह सकती है, जबकि कैलेंडर वर्ष के लिए यह अनुमान 11 प्रतिशत का है। यह विरोधाभासी तस्वीर बताती है कि चुनौतियाँ अब भी बनी हुई हैं।

टैरिफ का असर वास्तव में कितना बड़ा है, इसे समझने के लिए आँकड़ों पर नजर डालना आवश्‍यक है। भारत का अमेरिकी निर्यात लगभग 81 अरब डॉलर का है, जो सकल घरेलू उत्पाद का करीब 2.1 प्रतिशत है। अतिरिक्त टैरिफ का असर जीडीपी वृद्धि पर लगभग 0.3 प्रतिशत अंक तक हो सकता है। यह निश्चित रूप से अप्रिय है लेकिन किसी बड़ी तबाही जैसा नहीं। इसका सबसे अधिक दबाव टेक्सटाइल, जेम्स एंड ज्वेलरी और समुद्री उत्पाद जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों पर होगा। ये क्षेत्र न केवल निर्यातक हैं बल्कि बड़ी संख्या में रोजगार भी प्रदान करते हैं। इसलिए वहाँ पर चिंताएँ अधिक गंभीर हैं। इसके विपरीत, फार्मा और स्मार्टफोन जैसे सेक्टर को छूट मिलने से यह स्‍पष्‍ट है कि अमेरिका की नीति पूरी तरह से व्यापक नहीं है, बल्कि “सर्जिकल” है, जहाँ दबाव डालना है वहाँ टैरिफ लगाया गया और जहाँ अमेरिका की अपनी सप्लाई-चेन निर्भर है, वहाँ राहत दी गई।

यदि व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो यह पूरी स्थिति भारत के आर्थिक लचीलेपन को दर्शाती है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत की विकास दर 2025 और 2026 दोनों वर्षों के लिए 6.4 प्रतिशत आँकी है। विश्व बैंक ने भारत को ‘‘सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था’’ करार दिया है। मूडीज़ और एसएंडपी जैसी रेटिंग एजेंसियों ने भी भारत की साख को स्थिर बनाए रखा है। ये सभी टिप्पणियाँ इस बात का संकेत हैं कि वैश्विक संस्थाएँ भारत को अब एक विश्वसनीय और दीर्घकालिक निवेश गंतव्य मानती हैं।

भारतीय इक्विटी बाजार की तुलना अगर चीन से की जाए तो एक दिलचस्प समानता सामने आती है। चीन का बाजार भी स्थानीय निवेशकों से संचालित है और वहाँ भी विदेशी भागीदारी सीमित है। लेकिन चीन की नीतिगत अपारदर्शिता और भू-राजनीतिक जोखिमों ने विदेशी निवेशकों को सतर्क बना दिया है। इसके विपरीत, भारत का लोकतांत्रिक ढाँचा, पारदर्शी नीतियाँ और आईटी तथा सेवाक्षेत्र की बढ़त उसे निवेशकों के लिए अधिक आकर्षक बनाती हैं। यही कारण है कि एचएसबीसी ने भी माना कि भारतीय और चीनी दोनों बाजार एक साथ अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं, लेकिन भारत की स्थिति अपेक्षाकृत मजबूत है।

अमेरिकी टैरिफ या किसी भी बाहरी दबाव के बीच भारत की यह मजबूती केवल आर्थिक कहानी नहीं है। यह उस आत्मनिर्भरता की ओर इशारा है जिसकी चर्चा पिछले कुछ वर्षों से लगातार होती रही है। सरकार की प्रोत्साहन योजनाएँ, डिजिटल और हरित ऊर्जा की ओर बढ़ते कदम और घरेलू निवेशकों का भरोसा मिलकर भारत को एक नई आर्थिक स्थिरता दे रहे हैं। फिर भी आज की सच्चाई यही है कि भारतीय इक्विटी बाजार अब वैश्विक झटकों का केवल शिकार नहीं रहा।

वस्‍तुत: कहना होगा कि अमेरिकी टैरिफ इसका हालिया उदाहरण है। इस निर्णय ने भारत के बाजार को हिलाया नहीं, बल्कि उसकी लचीलापन और आत्मनिर्भरता को और उजागर किया है। निवेशकों का भरोसा, बचतों की मजबूत धारा और नीतिगत स्थिरता भारत को उस मुकाम पर पहुँचा रही है जहाँ वह वैश्विक ताकतों की चालों से डरने के बजाय अपने दम पर आगे बढ़ सकता है। इसके साथ ही इस नई चुनौती का सामना करने के लिए मोदी सरकार ने विश्‍व के नए 40 बाजार और खोज लिए हैं, जल्‍द ही यहां भारतीय माल की खपत आरंभ कर दी जाएगी, स्‍वभाविक है कि इससे जो रोजगार पैदा होंगे वह वर्तमान से बहुत अधिक होंगे। वास्‍तव में यही ‘‘मज़बूत भारत’’ की असली झलक है, जो आने वाली चुनौतियों को एक अवसर के रूप में स्‍वीकार्य करता है।

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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी