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डॉ शिवानी कटारा
भारतीय दर्शन में ॐ को केवल एक अक्षर या मंत्र नहीं, बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि का आद्य नाद (primordial cosmic sound) माना गया है। उपनिषद इसे “प्रणव” कहते हैं, जिसमें सृष्टि की उत्पत्ति, पालन, संहार और उससे परे की चेतना तक का संकेत समाहित है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो ॐ वास्तव में तीन ध्वनियों का सम्मिश्रण है—“अ”, “उ” और “म्”। जब “अ” का उच्चारण होता है तो उसका कंपन नाभि और छाती क्षेत्र में महसूस किया जा सकता है। “उ” का उच्चारण गले और हृदय के मध्य में तरंग उत्पन्न करता है, जबकि “म्” से उत्पन्न गूँज खोपड़ी और मस्तिष्क में फैल जाती है। अंत में जो सूक्ष्म नाद (subtle resonance) शेष रहता है, वह “तुरीय” अवस्था (fourth state of consciousness) का प्रतीक है, जिसे ध्यान और समाधि में अनुभव किया जाता है।
यह ध्वनि-क्रम (sequence of sound) केवल प्रतीकात्मक ही नहीं, बल्कि शारीरिक और मानसिक स्तर पर भी स्पष्ट प्रभाव छोड़ता है। जब सम्पूर्ण शरीर में कंपन की तरंगें (vibrational waves) प्रवाहित होती हैं तो यह तंत्रिका तंत्र (nervous system) को संतुलित करती हैं और मनुष्य गहन शांति का अनुभव करता है। आधुनिक न्यूरोसाइंस इस प्रभाव को मस्तिष्क की तरंगों के परिवर्तन (modulation of brain waves) से जोड़ता है। EEG अध्ययनों में पाया गया है कि ॐ का उच्चारण मस्तिष्क में अल्फा वेव्स (alpha waves) की वृद्धि करता है, जो गहरी विश्रांति (deep relaxation) और एकाग्रता से संबंधित हैं। fMRI अध्ययनों ने भी यह सिद्ध किया कि ॐ जप से मस्तिष्क के एमिगडाला (Amygdala) और ऑर्बिटोफ्रंटल कॉर्टेक्स (Orbitofrontal Cortex) की सक्रियता में कमी आती है। एमिगडाला भय और तनाव जैसी तीव्र भावनाओं को नियंत्रित करता है, जबकि ऑर्बिटोफ्रंटल कॉर्टेक्स निर्णय-क्षमता और भावनात्मक संतुलन से जुड़ा होता है। इन क्षेत्रों की गतिविधि घटने से मनुष्य अधिक शांत, स्थिर और संतुलित अनुभव करता है।
तंत्रिका तंत्र (nervous system) के स्तर पर भी ॐ का प्रभाव उल्लेखनीय है। यह वेगस नर्व (vagus nerve) को सक्रिय करता है, जिसे शरीर का “शांत करने वाला स्विच” (relaxation switch) कहा जा सकता है। वेगस नर्व की उत्तेजना (stimulation) से हृदयगति स्थिर होती है, श्वसन गहरा और संतुलित होता है, और शरीर की “Relaxation Response” सक्रिय हो जाती है। यही कारण है कि कई शोधों में यह पाया गया है कि नियमित ॐ जप करने वालों का रक्तचाप (blood pressure) सामान्य रहता है और हृदय रोगों का खतरा घटता है। Indian Journal of Physiology and Pharmacology में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार ॐ जप से नाड़ी दर (pulse rate) और B.P. दोनों में कमी आती है। इसी तरह International Journal of Yoga (2010) ने दर्शाया कि ब्लड प्रेशर और हार्ट रेट नियंत्रित होने से डायबिटीज़ मरीजों को अप्रत्यक्ष लाभ मिला और उनका glycemic control बेहतर हुआ। Complementary Therapies in Medicine (2016) के शोध में प्रतिभागियों ने ॐ जप के बाद oxygen consumption और respiratory rate में कमी अनुभव की यानी जप के बाद शरीर को सांस लेने और ऑक्सीजन इस्तेमाल करने में पहले से कम मेहनत करनी पड़ती है। यह दिखाता है कि शरीर अपनी ऊर्जा का प्रयोग अधिक कुशल तरीके से करने लगता है।
महिलाओं में लंबे समय तक रहने वाला तनाव ‘कॉर्टिसोल (stress hormone)’ बढ़ाकर मासिक धर्म अनियमितता, PCOS और थायरॉयड समस्याएँ उत्पन्न करता है। ॐ जप मस्तिष्क को शांत कर कॉर्टिसोल घटाता है और पीनियल ग्रंथि को सक्रिय कर मेलाटोनिन बढ़ाता है, जिससे नींद और हार्मोनल संतुलन सुधरता है। शोध बताते हैं कि योग और ॐ जप से रजोनिवृत्ति (menopause) के लक्षण नियंत्रित हुए (Journal of Mid-life Health, 2013), तथा PCOS और थायरॉयड रोगियों का मेटाबोलिक प्रोफाइल बेहतर हुआ (Indian Journal of Endocrinology, 2015)।
ॐ को “Healing Frequency” माना जाता है, जिसका कंपन लगभग 432 Hz पर गूँजता है और Sound Therapy में इसे विशेष महत्व दिया गया है। यह आवृत्ति (frequency) जल और कोशिकाओं (cells) में अनुनाद (resonance) उत्पन्न करती है, जिससे शरीर की ऊर्जा प्रणाली पुनर्संतुलित हो सकती है। आधुनिक साउंड थैरेपी में इसे “रेज़ोनेंस थैरेपी” कहा जाता है, जो कोशिकीय (cellular) स्तर पर उपचारकारी है। इसलिए, ॐ जप का मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव प्रमाणित हुआ है। International Journal of Yoga (2011) ने दर्शाया कि इसके अभ्यास से parasympathetic activity बढ़ती है, जिससे चिंता और अवसाद के लक्षणों में कमी पाई गई, जबकि Psychological Studies ने पुष्टि की कि प्रतिदिन 20 मिनट का ॐ जप छात्रों में तनाव घटाकर एकाग्रता बढ़ाने में सहायक है। शोध बताते हैं कि विशिष्ट ध्वनियाँ brain cells पर neuroprotective effects यानी मस्तिष्क को संरक्षित करने वाले प्रभाव डालती हैं। साथ ही, ॐ जप के vibrations मस्तिष्क में रक्त प्रवाह को सुधारते हैं, जिससे मानसिक क्षमताएँ (cognitive function) सुरक्षित बनी रह सकती हैं। न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों (जहाँ nerve cells कमजोर या नष्ट होते हैं) जैसे Parkinson’s Disease और Alzheimer’s Disease में ॐ जप एक सहायक हस्तक्षेप (adjunct therapy) सिद्ध हो सकता है (Complementary Therapies in Medicine, 2016)।
यदि दर्शन और विज्ञान को एक साथ देखा जाए, तो यह स्पष्ट होता है कि ॐ सृष्टि और चेतना के गहनतम रहस्यों को स्पर्श करता है। ॐ उच्चारण वास्तव में धर्म और विज्ञान के बीच की वह कड़ी है, जो शरीर, मन और आत्मा तीनों स्तरों पर सामंजस्य स्थापित करती है। इसलिए ॐ जप केवल आध्यात्मिक साधना नहीं, बल्कि वैज्ञानिक रूप से प्रभावी ध्वनि-चिकित्सा है, जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की कंपन-तरंग से जुड़कर चेतना को ऊँचाई देती है।
(लेखिका, दंत चिकित्सक एवं दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पीएच.डी. हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / संजीव पाश