ट्रंप की दादागिरी, रुपए का कमजोर होना और प्रधानमंत्री मोदी का स्‍वदेशी आह्वान
-डॉ. मयंक चतुर्वेदी भारत ने अमेरिका को यह साफ संदेश दिया कि वह अपने हितों से कोई भी समझौता नहीं करेगा। भारत का यह कहना हुआ और लग रहा है; जैसे अमेरिका पूरी ताकत से भारत को कमजोर करने में जुट गया हो। इस सिलसिले में अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप
लेखक फाेटाे -डॉ. मयंक चतुर्वेदी


अमेरिका और भारत के आर्थ‍िक संबंधों को चिन्‍हि‍त करता फोटो (एआई)


-डॉ. मयंक चतुर्वेदी

भारत ने अमेरिका को यह साफ संदेश दिया कि वह अपने हितों से कोई भी समझौता नहीं करेगा। भारत का यह कहना हुआ और लग रहा है; जैसे अमेरिका पूरी ताकत से भारत को कमजोर करने में जुट गया हो। इस सिलसिले में अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप के एक के बाद एक सामने आए वक्‍तव्‍य देखे जा सकते हैं, उसका एक नकारात्‍मक परिणाम भी दिख रहा है। डॉलर के मुकाबले रुपया ऐतिहासिक निचले स्तर तक को पार कर चुका है। डॉलर इंडेक्स 98.68 के स्तर पर पहुंच चुका है और निवेशक अमेरिकी एसेट्स की ओर लौट रहे हैं। यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने भारत पर टैरिफ की धमकी दी हो। इससे पहले भी 2018 और 2019 में अमेरिका ने जीएसपी (Generalized System of Preferences) के तहत भारत को मिलने वाली छूट को समाप्त किया था। इन कदमों से भारतीय निर्यातकों को बड़ा नुकसान हुआ था। यह कोई छोटी बात नहीं, बल्‍कि इकोनॉमी के हिसाब से भारत के लिए बहुत गंभीर मामला है।

अब सवाल ये है कि क्या यह गिरावट अस्थायी है या रुपया सच में डॉलर के सामने घुटने टेक रहा है? विदेशी मुद्रा बाजार से जुड़े विशेषज्ञ मान रहे हैं कि यह गिरावट केवल बाजार की मनोदशा नहीं बल्कि वैश्विक परिस्थितियों का संकेत है। यानी अमेरिका में ट्रंप के राष्‍ट्रपति बनने के बाद वे लगातार ऐसे कदम उठा रहे हैं, जिससे कि विश्‍व में डॉलर का वर्चस्‍व बना रहे। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ बढ़ाना भी इसी का हिस्‍सा है और भारत द्वारा रूसी तेल खरीदने को मुद्दा बनाना भी। अब भारतीय शेयर बाजार पर भी इसका सीधा असर पड़ रहा है। ऐसे में बड़ा प्रश्‍न यह है कि इन परिस्‍थ‍ितियों में हम क्‍या करें? क्‍या रुपए को इसी तरह कमजोर होता देखते रहें! और एक समय के बाद हमारी मजबूत अर्थव्‍यवस्‍था जो दुनिया में तीसरे नंबर पर आने के लिए प्रयास कर रही है, उसे पीछे धकेलने के साक्षी बनें या फिर अपने देश को आर्थ‍िक रूप से मजबूत करने के लिए कुछ प्रभावी कदम उठाएं?

भारत को आर्थिक मोर्चे पर मजबूत करने के लिए “स्‍वदेशी” है विकल्‍प

अभी हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी गए थे, उन्‍होंने वहां अपने भाषण के दौरान अनेक विषयों को प्रमुखता से रखा। उन्‍हीं में से एक विषय “स्‍वदेशी” का भी उनके द्वारा विशेष तौर पर उठाया गया। क्‍या हम उनके कहे इस विषय को आज गंभीरता से समझकर उस पर अमल कर सकते हैं? वस्‍तुत: यहां अपनी अर्थव्‍यवस्‍था को मजबूती प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी लिए द्वारा सुझाए रास्‍ते पर चलना सबसे अधिक जरूरी नजर आ रहा है। उन्‍होंने स्‍व से “स्‍वदेशी” की बात की है और देश के सभी जन से आह्वान किया है कि वे अपने जीवन में शत-प्रतिशत स्‍वदेशी अपनाएं। हम स्वदेशी का संकल्प लें!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं, अब हम कुछ भी खरीदें तो एक ही तराजू होना चाहिए, हम उन चीजों को खरीदेंगे, जिसे बनाने में किसी भारतीय का पसीना बहा है और जो चीज भारत के लोगों द्वारा बनी है। भारत के लोगों के कौशल्य से बनी है, भारत के लोगों के पसीने से बनी है। हमारे लिए वह स्वदेशी है। हमें, ‘वोकल फॉर लोकल’ मंत्र को अपनाना होगा। हम संकल्प ले कि हम ‘मेक इन इंडिया’ प्रोडक्ट्स को ही बढ़ावा देंगे। हमारे घर में जो कुछ भी नया सामान आएगा, वो स्वदेशी ही होगा, ये ज़िम्मेदारी हर देशवासी को लेनी होगी।” प्रधानमंत्री मोदी हर दुकानदार से आग्रह करते हैं कि हम हमारे यहां से सिर्फ और सिर्फ स्वदेशी माल ही बेचेंगे। उनके अनुसार यह स्वदेशी माल बेचने का संकल्प, देश की सच्ची सेवा होगा।...हर बात में स्वदेशी का भाव आने वाले दिनों में हमारा भविष्य तय करने वाला है।

भारत काे चहिए वैश्‍विक दबावों से हिलने वाली संरचना

देखा जाए तो प्रधानमंत्री मोदी यूं ही स्‍वदेशी की बात नहीं कर रहे, वे जान गए हैं कि अमेरिका या अन्‍य किसी भी देश की दादागिरी से कैसे निपटा जा सकता है। आज डॉलर आधारित वैश्‍विक व्यापार में भारत के भी अधिकांश अंतरराष्ट्रीय सौदे भी डॉलर में ही होते हैं, जिससे डॉलर मजबूत होते ही आयात महंगे हो जाते हैं। जिसमें कि टैरिफ और व्यापार युद्ध आज अमेरिका की संरक्षणवादी नीति के चलते भारत जैसे विकासशील देशों को निशाना बना रहे हैं। ऐसे में अब ये जरूरी हो गया है कि हम स्थानीय मुद्रा में व्यापार बढ़ाने पर जोर दें, हालांकि रूस, ईरान, यूएई जैसे कुछ देशों से इस तरह का चलन करने में भारत को सफलता मिली है, लेकिन हमें रुकना नहीं है, डॉलर को छोड़, रुपये या अन्य वैकल्पिक मुद्राओं में व्यापार को सभी देशों के साथ बढ़ाने की दिशा में हमें अभी बहुत काम करने की जरूरत है।

इसके साथ जरूरी हो गया है कि हम अपनी विदेशी निवेश पर निर्भरता कम से कम करें और घरेलू निवेशकों को प्रोत्साहन देते हुए एमएसएमई सेक्टर को सशक्त बनाने का प्रयास करें। कच्चे तेल के विकल्प जैसे सौर, बायो गैस, हाइड्रोजन में निवेश बढ़ाएं। डिजिटल करेंसी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चलन में लेकर आएं, इसके लिए रुपी आधारित सीबीडीसी के माध्यम से डिजिटल भुगतान को बढ़ावा दें। इसके साथ ही सरकार और आरबीआई को भी समझना होगा कि वे पुनः संरचना (restructuring) पर ध्‍यान दें। वस्‍तुत: भारत को आर्थ‍िक स्‍तर पर एक ऐसा ढांचा तैयार करना होगा जो वैश्विक दबावों से भी न हिले, जो भारत को अपने दम पर खड़ा रखे।

भारतवंशियों के एक वैश्विक आह्वान की भी जरूरत है

विश्व के 334 भारतीय अरबपतियों में से लगभग 14.8% यानी लगभग 42 भारतीय मूल के अरबपति विदेशों में रह रहे हैं। इनमें कुछ प्रमुख नाम लक्ष्मी मित्तल, अनिल अग्रवाल, जय चौधरी, विवेक रणादिव जैसे गिनाए जा सकते हैं। अभी भारतीय करोड़पतियों में से लगभग 2% प्रति वर्ष विदेश जा रहे हैं। Kotak Bank की रिपोर्ट (मार्च 2025) बताती है कि एक से पांच तक ultra‑HNI (अत्यंत उच्च नेटवर्थ व्यक्ति) या तो विदेश गया हुआ है या जाने की योजना बना रहा है, जोकि करीब 20% तक के प्रवासन की दर दर्शाता है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2015 से अब तक लगभग 9 लाख भारतीयों ने भारतीय नागरिकता त्याग दी, जिसमें बड़ी संख्या हाई नेटवर्थ व्यक्ति शामिल हैं। इनमें कई उद्योगपतियों ने अपने व्‍यापार व्‍यवसाय के कारण से विदेश में रहना उचित समझा है। विनोद अदानी, सिद्धार्थ बल्लचंद्रन, म. अरुणाचलम, र्युकौ हिरा, प्रकाश लोहेया जैसे नाम इस दृष्टि से देखे जा सकते हैं। पर इन सभी के विदेश जाने के बाद इनके जीवन में एक बात खास अभी भी है, वह है इनका अपनी भारतीय जड़ों से जुड़ा रहना और उसके प्रति भावनात्‍मक रूप में अपने को समय-समय पर प्रदर्शित करते रहने का भाव का होना।

विदेशों में एक नया भारत उदयमान हो रहा है

वस्‍तुत: इस संदर्भ में हाल ही में आई एक अमेरिकन रिपोर्ट भी देखी जा सकती है। कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस की एक नई रिपोर्ट कहती है कि अमेरिका में जन्मे भारतीय अमेरिकी अपनी भारतीय विरासत के साथ सांस्कृतिक और पहचान-आधारित जुड़ाव में उल्लेखनीय वृद्धि प्रदर्शित कर रहे हैं। 86% लोग खुद को भारतीय-अमेरिकी कहने में गर्व महसूस करते हैं। अमेरिका में जन्मे 70% भारतीय अमेरिकी उत्तरदाताओं ने कहा है कि भारतीय होना उनके लिए बहुत हद तक महत्वपूर्ण है। यह रिपोर्ट, एक भारतीय-अमेरिकी दृष्टिकोण सर्वेक्षण (IASS) पर आधारित है, जो लंबे समय से चली आ रही इस धारणा को चुनौती देती है कि आप्रवासी समुदायों की आने वाली पीढ़ियाँ अमेरिकीकरण के पक्ष में धीरे-धीरे अपनी पैतृक पहचान त्याग देती हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय अमेरिकी लेबल का इस्तेमाल करने वालों की संख्या में कमी आई है और एशियाई भारतीय के रूप में पहचान करने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है। कहने का तात्‍पर्य है कि जो लोग आज किसी भी स्‍थ‍िति में भारत से बाहर गए हैं, उन्‍हें भारत अब भी अपनी ओर आकर्ष‍ित करता है। जो बच्‍चे विदेशों में जन्‍म ले रहे हैं, उनके लिए ‘मातृभूमि’ भले ही उनका अभी जन्‍म देनेवाला देश हो, किंतु ‘पितृ भूमि’ भारत ही है। वे विदशों में भारतीय संस्‍कारों को अपना रहे हैं। ऐसे में जरूरत आज इन सभी के आह्वान की भी है, कि वे नए 21 वीं सदी का नया विकसित ‘भारत’ गढ़ने में अपना योगदान दें।

भारत के कम से कम एक हजार उद्योजक चाहिए

वैसे यह भी उम्‍मीद है, हो सकता है भारत सरकार कहीं ये प्रयोग कर भी रही हो, किंतु यदि नहीं कर रही तो उसे जरूर करना चाहिए। भू-राजनीतिक और भू-आर्थ‍िकी अध्‍ययन के निष्‍कर्ष बताते हैं कि दुनिया के कई देश अपने उद्योगपतियों को हर संभव मदद करते हैं। जिसमें कि चीन आज सबसे अधिक आगे नजर आता है। अमेरिका भी उन्‍हीं देशों में से एक है, जो अपनी कंपनियों और उद्योगपतियों को वैश्‍व‍िक करने के साथ उन्‍हें हर संभव तरीके से मजबूत बनाने में सहयोग करता है। वे दुनिया के अलग-अलग देशों में जाकर टेंडर डाल रहे हैं, प्रकृति का भरपूर दोहन कर रहे हैं और आर्थ‍िक रूप से अपने देश को मजबूती प्रदान कर रहे हैं। अब जरूरत भारत को भी इस दिशा में कदम बढ़ाने की है।

चीन की बराबरी के लिए चाहिए बहुत श्रम

आज यदि हम दुनिया की दस प्रमुख अर्थव्‍यस्‍थाओं का विश्‍लेषण करें तो संयुक्त राज्य अमेरिका GDP (USD ट्रिलियन) $30.51 पर खड़ी है और प्रतिव्‍यक्‍ति‍ आय लगभग यूएसडी $89,100 है। यहां USD ट्रिलियन का अर्थ है, 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर = 1,000 अरब (Billion) डॉलर = 1,00,000 करोड़ डॉलर = 1,000,000,000,000 डॉलर।

इसके बाद विश्‍व की दूसरी अर्थव्‍यवस्‍था चीन $19.23, GDP (USD ट्रिलियन) पर है, जहां प्रति व्‍यक्‍ति आय लगभग $13,700 है। जर्मनी $4.74 GDP (USD ट्रिलियन) और प्रति व्‍यक्‍ति‍ आय लगभग $55,900 यहां है। वहीं, भारत अभी GDP (USD ट्रिलियन) $4.19 पर और प्रति व्‍यक्‍ति आय के मामले में औसत $2,900 यूएसडी पर चल रहा है। फिर भारत के पीछे जापान, यूके, फ्रांस, इटली, कनाडा और ब्राजील की अर्थ व्‍यवस्‍थाएं हैं। लेकिन इन सभी में तुलनात्‍मक रूप से देखें तो सबसे कम प्रति व्‍यक्‍ति आय भारत के नागरिक की ही है। उसमें चीन के साथ यदि तुलना करें तो उस स्‍थ‍िति में जमीन और आकाश के बीच जैसा भारी अंतर दिखाई देता है। जहां भारत GDP (USD ट्रिलियन) $4.19 पर अभी चल रहा है, वहां चीन इसी स्‍थ‍िति में $19.23 GDP (USD ट्रिलियन) पर खड़ा है।

वस्‍तुत: अभी भारत और चीन के बीच के इसी अंतर को समाप्‍त करने की जरूरत है। जिसे कि वास्‍तव में “स्‍वदेशी” का भाव जागरण करने से ही संभव है। चीन ने भी अपने को आर्थ‍िक रूप से मजबूत बनाने के लिए यही किया और भारत को भी यही करने की आज जरूरत है। ‘स्‍व’ में “स्‍वदेशी” का भाव रहेगा तो निश्‍चित मानिए कई अमेरिका मिलकर भी भारत का कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं। यानी आज प्रधानमंत्री जो आह्वान स्‍वदेशी जागरण का कर रहे हैं, उसे हम सभी को हर घर सफल बनाने की जरूरत है। इसी में भारत की शक्‍ति और सामर्थ्‍य है।

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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी