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हृदयनारायण दीक्षित
दंगा अंधा युद्ध है। इसमें शत्रु का सही पता नहीं होता। आग लगाने, बम फोड़ने वाले नहीं जानते कि वे किसे मार रहे हैं? दंगा राष्ट्र राज्य के विरुद्ध हमले की कार्रवाई है। संभल दंगों की रिपोर्ट आ गई है। रिपोर्ट में अन्य बातों के अलावा संभल के जनसांख्यिकीय चरित्र का भी उल्लेख किया गया है। जनसांख्यकीय चरित्र में बदलाव से राष्ट्रजीवन के तमाम क्षेत्र प्रभावित होते हैं। रिपोर्ट के अनुसार 1947 में संभल की आबादी 45 प्रतिशत थी, जो अब घटकर 15 प्रतिशत ही रह गई है। साफ है कि इसी चरित्र के प्रभाव में हिन्दू पलायन के लिए विवश हुए हैं।
मुस्लिम आबादी के आधार पर ही पाकिस्तान की मांग की गई थी। 1951 की जनगणना में हिन्दू 85 प्रतिशत थे और मुसलमान 10 प्रतिशत थे। सैयद शहाबुद्दीन के अनुसार सन 1991 में हिन्दू 81.5 प्रतिशत थे और मुस्लिम 12.6 प्रतिशत। यहां मुस्लिम आबादी का प्रतिशत लगातार बढ़ता रहा है। 2011 की जनगणना में हिन्दू 79.8 प्रतिशत थे मुस्लिम 14.2 प्रतिशत थे। तब से जनगणना नहीं हुई है, लेकिन मोटे तौर पर देश में अब 80.8 प्रतिशत हिन्दू होंगे और 16.3 प्रतिशत मुस्लिम होंगे।
पड़ोसी देश पाकिस्तान में विभाजन के समय 24 प्रतिशत हिन्दू थे। अब 1.6 प्रतिशत हैं। बांग्लादेश बनने के समय हिन्दू आबादी 22 प्रतिशत थी अब 7 प्रतिशत है। संभल की भी यही स्थिति है। आबादी का असंतुलन राष्ट्रीय बेचैनी है। मुस्लिम आबादी नियंत्रण के आधुनिक तरीके नहीं अपनाते। मौलवी हिन्दुओं को बुतपरस्त बताकर आलोचना करते हैं। राष्ट्र का अस्तित्व नहीं मानते। राष्ट्र सर्वोपरिता की बात नहीं स्वीकार करते। संभल उदाहरण है। इसके अलावा जहां-जहां हिन्दू अल्पसंख्यक हैं, वहां-वहां उनका जीवन दुखमय है। लगातार दहशत और हत्या की आशंका से अल्पसंख्यक हिन्दू डरे रहते हैं और पीड़ित होकर पलायन कर जाते हैं। यह विषय बहुत गंभीर है।
सरकारें अपना काम करती रहती हैं। सरकारी तंत्र की विवशता है कि वह घटना के बाद सक्रिय होता है। संभल के मामले में भी तुरंत कार्यवाही हुई। जांच समिति भी गठित की गई। लेकिन संभल में ही 75 वर्षों में 209 हिन्दू मारे गए। राष्ट्रीय राजनीति में ऐसे नाजुक प्रश्नों को भी सतही राजनीतिक बहस का मुद्दा बनाया जाता है। एक समय संभल में 68 तीर्थ स्थल थे और 19 विशेष प्रकार के पवित्र कुएं थे। इन पर धीरे-धीरे अवैध कब्जे होते रहे। इससे अर्थ निकलता है कि संभल के महत्वपूर्ण मंदिर गिरा दिए गए हैं। संभल के दंगों में ही मूर्तियां और मंदिर नहीं गिराए गए, उनकी यही प्रवृत्ति है। इस विचारधारा में मंदिरों और मूर्तियों को नष्ट करने योग्य माना जाता है। तालिबानियों ने बामियान में मूर्तियों को ढहाया था। भारत के कोने-कोने हजारों सुंदर मंदिर थे। सातवीं शताब्दी में मोहम्मद बिन कासिम से लेकर औरंगजेब तक मूर्ति तोड़ो अभियान चलता रहा था। आखिरकार मूर्तियों से उनका क्या झगड़ा है? समिति ने संभल के दंगों में भी एक वरिष्ठ राजनेता का उत्तेजित करने वाले भाषण का उल्लेख किया है।
महात्मा गांधी हिन्दू-मुस्लिम सहअस्तित्व के समर्थक थे। गांधीजी ने मुसलमानों का दिल जीतने के लिए खिलाफत आंदोलन का नेतृत्व किया था। खिलाफत घोर साम्प्रदायिक आंदोलन था। इसका भारत से कोई लेना-देना नहीं था। खिलाफत आंदोलन के कारण भारत से बाहर थे। तमाम प्रयासों के बाद गांधीजी ने अंत में लिखा कि, ”हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रश्न पर मैं अपनी हार स्वीकार करता हूं।”
हिन्दू मुस्लिम एकता के कुछ समर्थक एक साझा आस्था के संघीय स्वरूप पर बल दे रहे थे, अर्थात् हिन्दू हजरत मोहम्मद और कुरान को सम्मान दें और मुसलमान राम, कृष्ण, शिव और गीता, वेद आदि आदि का सम्मान करें। हिन्दू मन के लिए यह काम आसान था। मुस्लिम के लिए दुष्कर। हिन्दू जीवन रचना में पूरे अस्तित्व को एक सत्ता माना गया है। फिर मजहब के आधार पर अलग मुल्क पाकिस्तान की मांग हुई। इस मांग के समर्थन में सीधी कार्रवाई की गई। लाखों हिन्दू मारे गए। पाकिस्तान बना। दोनों देश अपने-अपने देश को विकसित कर रहे थे। फिर पाकिस्तान से टूट कर बांग्लादेश बना। पाकिस्तान कृत्रिम राष्ट्र है।
राष्ट्र मजहब से नहीं बनते। संभल उसी प्रवृत्ति का एक उदाहरण है। असली बात है भारत को कमजोर करने की इसी समूह की मुसलसल ‘साजिश‘। आखिरकार भारत विरोधी इस विचारधारा के साथ क्या सलूक किया जाए। रामजन्मभूमि के साक्ष्य एएसआई की खुदाई में मिले। इस विचारधारा और छद्म सेकुलरों ने रामजन्मभूमि के साक्ष्य को स्वीकार नहीं किया। फिर काशी का मसला आया। उन्होंने यहां भी खुदाई से उपलब्ध साक्ष्य का सम्मान नहीं किया गया। मथुरा का श्रीकृष्णजन्मभूमि मंदिर भी इसी श्रेणी में है। आश्चर्यजनक बात है कि जहां-जहां गहरी खुदाई होती है, वहां वहां गहराई में कोई मूर्ति, कोई उपासना स्थल, हिन्दुत्व के ऐसे ही प्रतीक मिल जाते हैं। उनकी यह विचारधारा फलती-फूलती रहती है। प्रत्येक राष्ट्रभक्त का कर्तव्य है कि वह इस विचारधारा का खुलकर प्रतिकार करे।
संभल की वास्तविकता व हिंसा ने हजारों लोगों को आहत व सावधान किया है। सब अपना अपना कर्तव्य पालन करें। हिन्दुओं का पलायन गंभीर चिन्ता का विषय है। हिन्दू जब किसी पुराने इलाके को छोड़कर जाते हैं, तो उनके मंदिर यहीं रह जाते हैं। कोई यों ही अपना घर नहीं छोड़ता। वह विषम परिस्थितियों का सामना करता है। जब सब तरफ से निराश हो जाता है, तभी अपना घर छोड़ता है। स्वाधीनता से लेकर अब तक संभल में 15 दंगे हुए हैं। हिन्दू समुदाय की जनसंख्या के घटने का यही कारण है। हर एक दंगा निर्दोषों की जान लेकर अगले दंगे की आशंका छोड़ जाता है। सरकारों के लिए परेशानी का कारण बनता है। कोई भी सरकार अपने यहां दंगा नहीं चाहती। योगी सरकार ने प्रत्येक स्तर पर सख्त कार्रवाई की है। दंगों में शामिल आरोपियों पर कड़ी कार्रवाई की है। पीड़ितों को सरकारी सहायता पहुंचाई गई है। विलुप्त हो चुके अनेक तीर्थ मंदिर और धर्मस्थलों को संवारने की कोशिश हो रही है।
दंगाविहीन समाज बनाना प्रत्येक सामाजिक कार्यकर्ता, जागरूक नागरिक और सरकार का कर्तव्य है कि समाज प्रीतिपूर्ण बने। जनसंख्या में आए नकारात्मक बदलाव को ध्यान से देखना चाहिए, तभी इस रिपोर्ट का कोई सदुपयोग होगा। शुभ है कि तीन सदस्यों की जांच समिति ने तथ्यों को जुटाने में बड़ा परिश्रम किया है। इन तीन सदस्यों (सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति देवेंद्र नाथ अरोड़ा की अध्यक्षता में सेवानिवृत्त डीजीपी एके जैन और सेवानिवृत्त आईएएस अमित मोहन प्रसाद) ने मिलकर जांच को प्रमाणिक बनाया है। 450 पृष्ठ की इस रिपोर्ट में संभल में होने वाले दंगों की विवेचना है। पिछले वर्ष 23 नवंबर को संभल में हुई हिंसा पर समिति ने विचार किया। संभल अकेला नहीं है। देश के कोने-कोने अनेक संभल हैं। जांच समिति की कार्यवाही अनेक राज्यों में भी अनुकरणीय हो सकती है। समिति की रिपोर्ट पर व्यापक विमर्श होना चाहिए। इस विमर्श से दंगों के प्रेरक तत्वों व दंगाई विचारधारा की कार्यशैली को समझने में आसानी होगी।
(लेखक, उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / संजीव पाश