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बीकानेर, 27 अगस्त (हि.स.)। संभाग के सबसे बड़े राजकीय डूंगर महाविद्यालय, बीकानेर में आज विश्व झील दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन हुआ। सम्मेलन का उद्घाटन प्रताप सभागार में प्राचार्य डॉ. राजेंद्र पुरोहित, मुख्य अतिथि डॉ. अनिल पूनिया (निदेशक, राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र), विशिष्ट अतिथि प्रो. पुष्पेंद्र सिंह (सहायक निदेशक) डॉ प्रताप सिंह (विभाग प्रभारी) तथा आयोजन सचिव डॉ. आनंद खत्री के कर-कमलों द्वारा किया गया।
महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. राजेंद्र पुरोहित ने उद्घाटन कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि झीलों का जलस्तर निरंतर कम हो रहा है। जल प्रदूषण के कारण झीलों की जैव विविधता खतरे में है और पेयजल की गंभीर समस्या उत्पन्न हो रही है। हमें झीलों के वैविध्य को संरक्षित करने के लिए गंभीर और सतत प्रयास करने होंगे।
मुख्य अतिथि डॉ. अनिल पूनिया ने कहा कि झीलें और जलाशय मनुष्य और पशु-पक्षियों के जीवन का आधार हैं। इनका जैविक संतुलन बनाए रखने के लिए सामूहिक प्रयास आवश्यक हैं, विशेष रूप से युवाओं को इस दिशा में जागरूक होकर आगे आना चाहिए।
विशिष्ट अतिथि प्रो. पुष्पेंद्र सिंह ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे सेमिनार न केवल ज्ञानवर्धन और शोध के साधन बनते हैं, बल्कि जलीय जैव विविधता के संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाने का आधार भी तैयार करते हैं। विभाग प्रभारी डॉ. प्रताप सिंह ने झीलों के संरक्षण की उपयोगिता पर प्रकाश डाला। सम्मेलन चार तकनीकी सत्रों में संपन्न हुआ, जिसमें देश-विदेश के विद्वानों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए।
पहले सत्र में डॉ. राजेश भाकर ने राजस्थान की सांभर झील के महत्व और उपयोगिता पर चर्चा की। दूसरे सत्र में राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की डॉ. कृति शर्मा ने जल प्रदूषण और झील संरक्षण संबंधी अधिनियमों की जानकारी दी। तीसरे सत्र में डॉ. शांतनु डाबी (लोहिया कॉलेज, चूरू) ने प्रॉन कल्चर की उपयोगिता और झील संरक्षण की चुनौतियों पर ध्यान आकर्षित किया। अंतिम सत्र में ऑनलाइन जुड़े डॉ. सत्य प्रकाश मेहरा ने शुष्क भूमि को पुनः रिचार्ज करने के उपायों पर अपने विचार रखे। इस अवसर पर बड़ी संख्या में देशभर से विद्वान, बुद्धिजीवी, संकाय सदस्य और विद्यार्थी उपस्थित रहे।
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हिन्दुस्थान समाचार / राजीव