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जयपुर, 22 अगस्त (हि.स.)। भाद्रपद माह की अमावस्या इस बार विशेष संयोग लेकर आ रही है। यह अमावस्या शनिवार को है इसलिए इसे शनिश्चरी अमावस्या कहा जाएगा। अमावस्या का योग परिघ योग में बन रहा है, जो सभी 27 योगों में से 19वां है। यह समय धार्मिक क्रियाओं एवं पुण्य कार्यों के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार इस दिन सुबह 9 बजे के बाद धार्मिक अनुष्ठान का विशेष महत्व रहेगा।
पंडित श्रीकृष्ण शर्मा ने बताया कि शनिश्चैरी अमावस्या को पिठोरा अमावस्या और कुशग्रहणी अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन विशेष रूप से कुशा (पवित्री) का संग्रह किया जाता है। मान्यता है कि वैदिक पद्धति से कुशा ग्रहण करने पर माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में समृद्धि आती है। धार्मिक कर्मकांड, सूतक, सूर्य ग्रहण में कुशा का उपयोग होता है।
पितरों की पूजा का श्रेष्ठ अवसर
इस अमावस्या पर सूर्य, चंद्र और केतु की विशेष युति सिंह राशि में बन रही है। निर्णय सिंधु और मत्स्य पुराण के अनुसार यह योग पितरों की पूजा के लिए अत्यंत श्रेष्ठ माना गया है। इस दिन तर्पण और पिंडदान करने से पितरों की कृपा प्राप्त होती है। जन्म कुंडली के पितृ दोष का निवारण होता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / दिनेश