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जयपुर, 12 अगस्त (हि.स.)। सर्वार्थ सिद्धि योग, शिववास योग, मघा, पूर्वभाद्रपद और उत्तरभाद्रपद नक्षत्र में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि पर मंगलवार को कजरी तीज का पर्व श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया गया। विवाहित महिलाओं ने भगवान शिव, माता पार्वती एवं चंद्रमा की विधिवत पूजा-अर्चना कर पति की दीर्घायु, अखंड सौभाग्य और जीवन में सुख-समृद्धि की कामना की।
माहेश्वरी, पारीक, दाधीच एवं कायस्थ सहित कई अन्य समाजों के घर पर मंगलवार को उत्सव का सा माहौल रहा। सुहागिन महिलाओं ने हाथों पर मेहंदी रचे हाथों से व्रत रखने वाली महिलाओं ने नीमड़ी माता की रोली, मोली, मेहंदी, काजल, फल एवं दक्षिणा अर्पित कर पारंपरिक विधि से पूजन किया।।
अखंड सुख-सौभाग्य की कामना के साथ मंगलवार को सुहागिन महिलाओं ने संकष्ट चतुर्थी का व्रत भी रखा। इसे अंगारकी चतुर्थी और बहुला चतुर्थी भी कहा जाता है। महिलाओं ने दिनभर व्रत रखा और रात्रि को चंद्रमा को अघ्र्य अर्पित कर व्रत का पारण किया
भोर में महिलाएं उठकर कोकी और मानी बनाकर अल्पाहार कर दिनभर निराहार उपवास पर रहीं। दोपहर में ब्राह्मण के घर जाकर कथा सुनी और टीजड़ी माता को हिंडोरे में झुलाया। रात्रि में चंद्रोदय के समय सोलह श्रृंगार कर चंद्रमा को दूध और कुट्टी (चूरमे) का अघ्र्य देकर अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मांगा।
सुहागिनों ने मां गौरी और भगवान शिव की पूजा कर पति और परिवार की सुख-समृद्धि की प्रार्थना की। समाज के वरिष्ठ सदस्य तुलसी संगतानी ने बताया कि सिंधी समाज में टीजड़ी माता की पूजा ‘धान्य रूप’ में होती है। मिट्टी के पात्रों में जवारों को सिंचित कर उनकी पूजा की जाती है।
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हिन्दुस्थान समाचार / दिनेश