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जयपुर, 1 अगस्त (हि.स.)। आज की तेज रफ्तार जीवनशैली, मानसिक तनाव, असंतुलित खानपान और शारीरिक निष्क्रियता ने कम उम्र में ही लोगों में गंभीर बीमारियों को जन्म दिया है। हृदयाघात (हार्ट अटैक) के मामलों में भी बढ़ोतरी देखी जा रही है। यह बीमारी अब केवल बुजुर्गों तक सीमित नहीं रही। बल्कि 30 से 40 वर्ष की आयु के युवाओं में भी इसका खतरा तेजी से बढ़ा है।
इसी चिंताजनक स्थिति को ध्यान में रखते हुए जयपुर के जोरावर सिंह गेट स्थित राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान मानद विश्वविद्यालय के काय चिकित्सा विभाग (इंटरनल मेडिसिन डिपार्मेंट) में कफज हृद्रोग जिसे आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में क्रॉनिक स्टेबल एंजाइना कहा जाता है, पर आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से गहन शोध किया जा रहा है।
यह रोग उस स्थिति को दर्शाता है जब शारीरिक परिश्रम या भावनात्मक तनाव के समय रोगी को छाती में दर्द, सांस फूलना, अत्यधिक थकान, कमजोरी और घबराहट जैसी समस्याएं होती हैं। इसका मुख्य कारण हृदय की रक्त वाहिनियों में वसा या प्लाक का जमा होना होता है, जिससे रक्त प्रवाह बाधित होता है। आयुर्वेद के अनुसार, यह रोग मुख्यतः कफ दोष के असंतुलन के कारण उत्पन्न होता है।
संस्थान के काय चिकित्सा विभाग में वर्षों से हृदय रोगों के आयुर्वेदिक उपचार और अनुसंधान का कार्य चल रहा है। काय चिकित्सा विभाग के प्रोफेसर उदय राज सरोज के निर्देशन में एम.डी. छात्रा डॉ. लिट्टी मैथ्यू द्वारा कफज हृद्रोग पर विशेष अनुसंधान किया जा रहा है, जिसमें आयुर्वेदिक ग्रंथों में वर्णित औषधीय योगों के माध्यम से हृदय की धमनियों में जमे वसा (कोलेस्ट्रॉल) को घटाकर रक्त संचार को सुधारने का प्रयास किया जा रहा है।
इस शोध में रोगियों को विशिष्ट आयुर्वेदिक औषधियां देकर, उनके कोलेस्ट्रॉल स्तर, रक्तचाप, धड़कन की गति, ईसीजी रिपोर्ट और संपूर्ण हृदय कार्यप्रणाली की नियमित मॉनिटरिंग की जा रही है। अब तक के परिणाम यह संकेत देते हैं कि आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति से हृदय की धमनियों में वसा का स्तर घटा कर, रोगी को राहत देना संभव है।
संस्थान की केंद्रीय अनुसंधान प्रयोगशाला में अत्याधुनिक जांच सुविधाएं उपलब्ध हैं, जहां रक्त परीक्षण, मूत्र जांच, ईसीजी, और अन्य हृदय संबंधित टेस्ट किए जाते हैं। अब शीघ्र ही यहाँ कंप्यूटराइज्ड ट्रेडमिल टेस्ट (सीटीएमटी) भी शुरू किया जा रहा है, जिससे रोगी की हृदय क्षमता का और अधिक सटीक मूल्यांकन संभव होगा।
कुलपति, प्रो. संजीव शर्मा ने कहा राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान का उद्देश्य आयुर्वेद के सिद्धांतों पर आधारित वैज्ञानिक शोध को बढ़ावा देना है, जिससे आधुनिक रोगों का समाधान आयुर्वेदिक पद्धति से किया जा सके। युवाओं में बढ़ रहे हृदय रोगों की रोकथाम व उपचार के लिए यह शोध कार्य एक उल्लेखनीय कदम है। हमारी कोशिश है कि आयुर्वेद विज्ञान वैश्विक स्तर पर रोग निवारण की दिशा में अग्रणी भूमिका निभाए। आज संस्थान के सभी विभागों द्वारा कई गंभीर बीमारियों पर शोध कार्य किये जा रहे है, साथ ही कई रोगों का निदान ओर उपचार किया जा रहा है।
काय चिकित्सा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. एच. एम. एल. मीना ने बताया इस समय जब देशभर में युवाओं में बढ़ते हार्ट अटैक की घटनाएं चिंता का विषय बनी हुई हैं, ऐसे में राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान में किया जा रहा यह शोध एक उम्मीद की किरण है। आयुर्वेद की ताकत, आधुनिक परीक्षण सुविधाएं और विशेषज्ञ चिकित्सकों की निगरानी में हो रहा यह शोध कार्य भविष्य में हृदय रोगों की आयुर्वेदिक रोकथाम और प्रबंधन की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / दिनेश