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बीकानेर, 1 अगस्त (हि.स.)। बीकानेर रेल मंडल पर बरसात के मौसम में रेल संचालन को लेकर विशेष तैयारियां की जा रही हैं, इस क्रम में ट्रैक के रख रखाव पर विशेष ध्यान दिया जा रहा हैI इसके लिए जिन बिदुओं के माध्यम से मंडल पर बरसात के मौसम में सतर्कता बरती जा रही है, उनमें ट्रैक कटाव वाले स्थानों की पहचान कर इनको मिटटी ,गिट्टी आदि डालकर मजबूत बनाया गया है ताकि बरसात से ट्रैक पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़े I साथ ही कटाव वाले स्थानों पर प्लास्टिक की बोरियों में में मिटटी व गिट्टी भरकर रखी गयी है ताकि भारी बरसात में आपातकालीन स्थिति से आसानी से निपटा जा सके I
वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबंधक, बीकानेर भूपेश यादव के अनुसार सभी अंडरब्रिजों पर पानी के लेवल को ज्ञात करने हेतु अंडर ब्रिजों की दीवारों पर सेंटीमीटर का मार्क लगाया गया है ताकि निर्धारित (50) सेमी. से अधिक पानी होने अंडर ब्रिजों को आम आदमी पार नहीं करे I इस हेतु अंडरब्रिज की दीवारों पर भी निर्देश लिखे गये हैंI आम जन से अपील है कि 50 सेमी. से अधिक पानी होने पर रेलवे अंडर ब्रिजों को पर नहीं करें, इससे खतरा हो सकता हैI
सिग्नल एवं दूरसंचार विभाग के कर्मचारी वर्षा के मौसम में ट्रैक सर्किट का विशेष रख रखाव कर रहे हैं l साथ ही वियोजन और संयोजन लेकर ही गियर का प्रोपर अनुरक्षण कर रहे हैं l
बरसात के मौसम में ट्रेकमैनों द्वारा लगातार गश्त की जाती है, इस दौरान यदि अचानक कोई कटाव जैसी स्थिति होती है तो तुरंत इसकी सूचना अपने मेट या सम्बन्धित अधिकारी को नोट करवाता हैI इससे समय रहते ही कटाव का उपचार किया जाता है जिससे रेल यातायात प्रभावित नहीं होता हैI इसके आलावा ट्रेकमेनो को लाल बैनर फ्लेग, लाल हाथ सिग्नल, डेटोनेटर (पटाखे) आदि उपकरण दिए जाते हैं । बरसात के मौसम अचानक अधिक कटाव होने से उत्पन्न- खतरे को टालने हेतु ट्रैक मेंटेनर को डेटोनेटर दिए जाते हैं, इन डेटोनेटर को ट्रैकमेंटेनर कटाव वाले स्थान से गाड़ी आने की दिशा में एक निश्चित दूरी पर रेललाइन पर फिट करता है, ताकि जब इंजन के व्हील इस डेटोनेटर के ऊपर से गुजरते हैं, तो डेटोनेटर तेज आवाज के साथ फूटता है और लोको पायलट इस आवाज को सुनकर गाड़ी की गति को नियंत्रित करते हुए खतरे के स्थान से पहले ही गाड़ी रोक देता है, प्रकार खतरे को टाला जाता है।
लोडेड मालगाड़ियों को चढाई वाले रेल मार्गों पर यथासंभव थ्रू के सिग्नल दिए जा रहे हैं I ताकि बरसात से उत्पन्न, ट्रैक पर फिसलन से गाड़ी पर कोई असर नहीं होता है और लाइन बर्निंग ( चढाई पर इंजन के पहियों से रेल पर गडड़े पड़ना ) जैसी समस्याएँ उत्पन्न नहीं होती हैI इससे ट्रैक भी सुरक्षित रहता है और रेल सञ्चालन में भी सुविधा रहती है I साथ ही अन्य गाड़ियों की समय पालनता भी बनी रहती है I
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हिन्दुस्थान समाचार / राजीव