रतलाम: तुलसीदास जी और रामचरित्मानस भारत के स्वाभिमान और संस्कृति के प्रतीक
रतलाम: तुलसीदास जी और रामचरित्मानस भारत के स्वाभिमान और संस्कृति के प्रतीक


रतलाम, 31 जुलाई (हि.स.)। भारतीय सनातन सभ्यता अनेकों संत महापुरुषों का दर्शन है जो अध्यात्म और भक्ति रस से भारतीय जनमानस को आत्मा से जोड़कर रखता है सनातन देवी देवताओं की दंत कथाएं तो हम लोग शास्त्रों में वर्णित दृष्टांतों से सुनते रहे हैं, लेकिन प्रभु श्री राम का चरित्र अगर जन-जन तक पहुंचा है तो वह सिर्फ तुलसीदास जी जैसे महा संत शिरोमणी कवि द्वारा रचित रामचरितमानस से ही संभव हो पाया है प्रभु श्री राम जैसे महाअवतार को उनकी लीलाओं को उनके संघर्ष को उनकी मर्यादाओं को उनके उद्देश्यों को सरलतम भाषा में अर्थ अनुवाद करते हुए विश्व के संपूर्ण समुदाय के लिए उपयोगी बनाते हुए इसकी रचना करना यह सिर्फ तुलसीदास जी जैसे देव ऋषि ही कर सकते हैं ।

उपरोक्त विचार शिक्षक सांस्कृतिक संगठन मंच द्वारा जवाहर नगर स्थित रामकृष्ण आश्रम में महाकवि तुलसीदास जी जन्म दिवस पर आयोजित तुलसी प्रणाम समारोह में रामचरितमानस की वर्तमान समय में प्रासंगिकता पर आयोजित व्याख्यान में नगर के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ मुरलीधर चांदनी वाला ने व्यक्त किये

आपने कहा कि महाकवि तुलसीदास जी का जन्म अनेकों संघर्ष और चुनौती पूर्ण परिवेश में हुआ मुगलकालीन शासनकाल में जहां सनातन सभ्यता संकट के दौर से गुजर रही थी उसे समय सनातन देवी देवताओं के प्रति अपनी भक्ति और आध्यात्मिक पठन पाठ सृजन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। मुगल सम्राट अकबर के समय भी तुलसीदास जी की लोकप्रियता पूरे भारतीय भूभाग पर सर्वाधिक रही थी यह दुर्भाग्य है कि तुलसीदास जी को तत्कालीन लेखको में वह स्थान नहीं दिया जो उन्हें मिलना था लेकिन तुलसीदास जी ने अपनी रचनाओं से संपूर्ण वैश्विक जगत का ध्यान अपनी और आकर्षित किया था उनका लेखन ‌ एक स्मारक के रूप में चट्टान की तरह स्थापित है

कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ गीता दुबे ने कहा कि रामायण और रामचरितमानस ऐसे महा ग्रंथ है जो सदियों तक पढ़े जाएंगे और आने वाली पीडियो तक उनकी सार्थकता सिद्ध होती रहेगी महाकवि तुलसीदास जी का स्मरण करने मात्र से हृदय राममय हो जाता है। प्रभु श्री राम का सरल चरित्र चित्रण नगर कोई कर पाया है तो वह तुलसीदास जी थे जिन्होंने रामचरितमानस के सातों अध्याय में विस्तार से प्रभु की लीलाओं का वर्णन किया है।

रामचरितमानस की प्रत्येक चौपाई और दोहे हमें समरसता समानता और शालीनता का संदेश देते हैं मर्यादित जीवन भगवान राम का आदर्श रहा है जो रामचरितमानस में अत्यंत भावुकता से वर्णित किया गया है नियमित रामचरितमानस का पतन हमें मानसिक और आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनाता है हमारी वैचारिक पवित्रता को बढ़ाता है इसलिए प्रत्येक भारतीयों को नियमित रामायण पाठ करना चाहिए कार्यक्रम में वरिष्ठ शिक्षाविद डॉक्टर पूर्णिमा शर्मा ने कहा कि रामचरितमानस भले ही अवधिया भाषा में लिखा हो लेकिन पढ़ते वक्त हमे एशा लगता ही नहीं है।

रामचरितमानस में भाषाई बंधन मुक्त रहा है रामचरितमानस का हिंदी अनुवाद करने से हिंदी का मान और सम्मान दोनों बढ़ गया महाकवि तुलसीदास जी हमारे लिए भगवान श्री राम के ही प्रथम अनुयाई के रूप में पूजनीय रहेंगे भगवान के चरित्र को आज की पीढ़ी को आत्मसात करना होगा तब ही हम भारतीय मर्यादित समाज की रचना कर पाएंगे तुलसीदास जी ने पूरे विश्व को ऐसी अनमोल धरोहर प्रदान की है जो मानवता की रक्षा में अग्रणी भूमिका निभा सकती है कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉक्टर सुलोचना शर्मा ने रामायण की चौपाइयों की माहता प्रतिपादित की

आरंभ में अतिथियों ने तुलसीदास जी के चित्र पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया भगवान श्री रामकी स्तुति के साथ कार्यक्रम का श्री गणेश हुआ अध्यक्ष दिनेश शर्मा ने स्वागत उद्बोधन देते हुए तुलसीदास जी के जन्म और जन्म के बाद की स्थिति का वर्णन करते हुए कहां की तुलसीदास जी जन्म से ही संघर्ष करते रहे निराश्रित होने के बाद भी आपने इस महान ग्रंथ की रचना की इसकी प्रेरणा उन्हें भगवान शिव से प्राप्त हुई रामचरितमानस पूरे विश्व के लिए आज अति सम्माननीय और पूजनीय ग्रंथ बन गया है।

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हिन्दुस्थान समाचार / शरद जोशी