प्रेमचंद के साहित्य में लोक कल्याण की भावना : प्रो. जितेन्द्र श्रीवास्तव
सम्बोधित करते प्रो जितेंद्र श्रीवास्तव


-मुक्त विश्वविद्यालय में प्रेमचंद की जयंती पर संगोष्ठी

प्रयागराज, 31 जुलाई (हि.स.)। उत्तर प्रदेश राजर्षि टण्डन मुक्त विश्वविद्यालय में सुप्रसिद्ध कथाकार मुंशी प्रेमचंद की जयंती पर गुरूवार को संगोष्ठी हुई। मुख्य वक्ता हिन्दी, मानविकी विद्यापीठ, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के आचार्य प्रो. जितेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद अपनी राष्ट्रीय, सांस्कृतिक परम्परा के साथ जुड़े रहे, इसीलिए वे आज भी प्रासंगिक हैं। प्रेमचंद के साहित्य में लोक कल्याण की भावना दिखाई पड़ती है।

उन्होंने कहा कि प्रेमचंद भारतीय जीवन मूल्यों को लेकर हमेशा सचेत रहे। उन्होंने किसान को नायक के रूप में खड़ा कर दिया। सौंदर्य का प्रतिमान बदल कर बताया। मुंशी प्रेमचंद अपनी रचना दृष्टि के कारण ही 90 वर्ष बाद भी आधुनिक मानव मन एवं चित्त के निकट हैं और उनकी रचनाएं वर्तमान समय में सर्वाधिक पढ़ी जा रही हैं।

प्रो. श्रीवास्तव ने आगे कहा कि सच्चा लेखक वही होता है जो मनुष्य मार्गी हो। आम से लेकर खास जनमानस को अपनी दृष्टि में लेकर चले। यह कार्य मुंशी प्रेमचंद ने करके दिखलाया। प्रेमचन्द की रचनाओं में किसान, वंचित एवं शोषित जन ही नायक होता था।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति आचार्य सत्यकाम ने कहा कि प्रेमचंद की दृष्टि वैश्विक थी। वह किसानों के हित की बात कर रहे थे। उनकी रचनाओं में तत्कालीन सामाजिक वातावरण का ही वर्णन मिलता है जो कि सत्य के करीब था। महान लेखन हमेशा अपने काल से आगे रहता है। प्रेमचंद की जीवन दृष्टि इसीलिए वैश्विक है। कुलपति ने अपने बुल्गारिया प्रवास के दौरान छात्रों द्वारा मुंशी प्रेमचंद पर किये गये कार्य का संस्मरण भी सुनाया, जिससे प्रेमचंद की लोकप्रियता के वैश्विक दायरे का पता चलता है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में उपलब्ध हर विषय को कहानी एवं साहित्य के माध्यम से समझने की कोशिश की जाए तो विषय की सरलता स्पष्ट हो जाएगी।

इसके पूर्व मुख्य वक्ता एवं अन्य अतिथियों का स्वागत एवं विषय प्रवर्तन करते हुए मानविकी विद्याशाखा के निदेशक तथा गोष्ठी के संयोजक प्रोफेसर सत्यपाल तिवारी ने मुंशी प्रेमचन्द को युग निर्माता एवं युग प्रवर्तक बताते हुए कहा कि जब तक साहित्य में जीवन का बारीकी से चित्रण नहीं किया जाता तब तक वह साहित्य नहीं होता। मुंशी प्रेमचन्द ने हिन्दी की लगभग सभी विधाओं में लेखन कार्य किया। हिन्दी और उर्दू में सजीव सामंजस्य स्थापित करने वाला कोई अन्य साहित्यकार मुंशी प्रेमचन्द से बेहतर नहीं दिखायी पड़ता।

जनसम्पर्क अधिकारी डॉ प्रभात चंद्र मिश्र ने बताया कि संचालन डॉ अब्दुल रहमान एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर विनोद कुमार गुप्त ने किया। इस अवसर पर समारोह में उपस्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर नागेश्वर राव का स्वागत कुलपति प्रोफेसर सत्यकाम ने किया।

हिन्दुस्थान समाचार / विद्याकांत मिश्र