Enter your Email Address to subscribe to our newsletters
कोलकाता, 31 जुलाई (हि.स.)।
पश्चिम बंगाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ विधायक शुभेंदु अधिकारी ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप का गंभीर आरोप लगाया है। उन्होंने दावा किया है कि दिल्ली में बीएलओ (बूथ लेवल ऑफिसर) के प्रशिक्षण को लेकर ममता बनर्जी द्वारा जताई गई नाराज़गी और उसके बाद की गई कार्रवाइयों से यह स्पष्ट होता है, कि राज्य सरकार चुनाव आयोग की भूमिका को कमजोर करने की कोशिश कर रही है।
शुभेंदु अधिकारी ने अपने आधिकारिक ट्वीट में कहा है कि बीएलओ के दिल्ली में हुए प्रशिक्षण को लेकर ममता बनर्जी ने न केवल नाराज़गी जताई, बल्कि यह भी कहा कि उन्हें या मुख्य सचिव को इसकी सूचना नहीं दी गई थी। अधिकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री की यह टिप्पणी चुनाव आयोग की स्वायत्तता में सीधा हस्तक्षेप है। उन्होंने आरोप लगाया कि ममता बनर्जी ने बीएलओ को यह कहकर भ्रमित करने की कोशिश की कि वे राज्य सरकार के कर्मचारी हैं और चुनाव के पूर्व व बाद की अवधि में राज्य सरकार के निर्देशों का पालन करें।
उन्होंने दावा किया कि मुख्यमंत्री की नाराज़गी के बाद अब राज्य के मुख्य सचिव मनोज पंत, जो मुख्यमंत्री के 'हां में हां मिलाने वाले अधिकारी' हैं, उन्होंने जिला शासकों (जिलाधिकारियों) को मौखिक रूप से निर्देश दिया है कि दिल्ली में प्रशिक्षित किए गए लगभग 1000 बीएलओ को बदला जाए।
अधिकारी ने चुनाव आयोग से इस पूरे मामले की तत्काल जांच कराने की मांग करते हुए कहा कि यदि राज्य सरकार की यह कार्रवाई नियमों के विरुद्ध पाई जाती है, तो दोषियों के विरुद्ध संविधान के अनुरूप सख्त कार्रवाई की जाए। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग को अपने अधिकारों का दृढ़ता से प्रयोग करना चाहिए ताकि बंगाल में चुनाव प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी बनी रहे।
शुभेंदु अधिकारी ने सभी जिला चुनाव अधिकारियों (जिलाधिकारियों) को सलाह देते हुए कहा कि वे राज्य सरकार के किसी भी मौखिक निर्देश को नजरअंदाज करें, क्योंकि वे चुनाव आयोग के मानकों के विरुद्ध हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि ईसीआई के निर्देशानुसार चयनित और ईआरओनेट पोर्टल पर अपलोड किए गए बीएलओ को केवल आयोग की विशेष गाइडलाइन के तहत ही बदला जा सकता है। किसी आपात स्थिति में ही तर्कसंगत प्रस्ताव और समान श्रेणी (जैसे 1.1, 1.2) के कर्मचारियों की अदला-बदली के लिए प्रस्ताव मुख्य निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय को भेजे जा सकते हैं।
उन्होंने सभी ईआरओ (इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर) और डीईओ (डिस्ट्रिक्ट इलेक्शन ऑफिसर) से अपील की कि वे किसी भी तरह का मनमाना निर्णय न लें, अन्यथा उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
हिन्दुस्थान समाचार / अनिता राय