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जयपुर, 30 जुलाई (हि.स.)। राजस्थान हाईकोर्ट ने शहर की क्षतिग्रस्त सडक़ों पर चिंता जताते हुए कहा है कि हम इस बात पर विचार करें कि क्या जयपुर अपनी खूबसूरती और विरासत के लिए जाना जाने वाला गौरवशाली गुलाबी नगर बना रहेगा, या फिर अपनी ही बुनियादी ढांचे की कमी से ढहते हुए एक डूबते हुए शहर में बदल जाएगा। इसके साथ ही अदालत ने मामले में स्वप्रेरणा से प्रसंज्ञान लेते हुए मुख्य सचिव, प्रमुख यूडीएच सचिव, जेडीसी, हेरिटेज और ग्रेटर नियम आयुक्त को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। वहीं अदालत ने जेडीए और निगम आयुक्तों को निर्देश दिए हैं कि सडक़ों का सर्वे कर दो सप्ताह में तथ्यात्मक रिपोर्ट पेश की जाए। जस्टिस प्रमिल कुमार माथुर की एकलपीठ ने यह आदेश प्रकरण में प्रकाशित मीडिया रिपोर्ट्स पर कार्रवाई करते हुए दिए।
अदालत ने संबंधित अधिकारियों को कहा है कि वे चार सप्ताह में इस सडक़ों की मरम्मत का समयबद्ध प्लान पेश करे। अदालत ने अधिकारियों से पूछा है कि शहर की सडक़ों की वर्तमान हालात और उन्हें सुधारने की स्थिति क्या है। इसके साथ ही अदालत ने जलभराव और उफनते सीवर की समस्या के लिए उठाए गए कदमों व रोड निर्माण में अमानक सामग्री व तकनीक अपनाने वाले जिम्मेदार व्यक्ति व बिना जांच इनके बिल पास करने वाले लोगों के नाम भी बताने को कहा है। अदालत ने मामले में सहयोग के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता आरएन माथुर, अधिवक्ता तनवीर अहमद, संदीप पाठक और मधुसुधन सिंह राजपुरोहित को भी नियुक्त किया है।
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि मानसून में शहर की सडक़ों के हालात बदलत हो रहे हैं। जिससे उसकी विश्वव्यापी इमेज पर भी नकारात्मक प्रभाव पड रहा है। हर मानसून में यहां जलभराव, बाढ़ और जल निकासी की समस्या होती है। जल निकासी की समस्या से रोजमर्रा के जीवन, पर्यावरण के साथ-साथ स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल रहा है। इसके लिए जिम्मेदार अधिकारी समस्या निदान करने में असफल हो गए हैं। अदालत ने कहा कि करदाताओं के पैसे का उपयोग कर रोड निर्माण की जाती है, लेकिन कम गुणवत्ता की सामग्री उपयोग करने से यह अगले दिन ही क्षतिग्रस्त हो जाती है। वहीं निर्माता की ओर से क्वालिटी चेक और तय अवधि तक जिम्मेदारी तय किए बिना ही रोड को सौंप दिया जाता है। इसके बावजूद भी आज तक शायद ही किसी रोड ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट किया गया हो, बल्कि उन्हें ही वापस ठेके दिए जाते हैं। अदालत ने कहा कि शहर की सडक़ों के हालात से लोगों के जीवन जीवन का मूलभूत अधिकार भी प्रभावित हो रहा है।
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हिन्दुस्थान समाचार / पारीक