जमानती अपराध में बेल नहीं देने पर न्यायिक मजिस्ट्रेट और एडीजे से मांगा स्पष्टीकरण
कोर्ट


जयपुर, 30 जुलाई (हि.स.)। राजस्थान हाईकोर्ट ने जमानती अपराध होने के बावजूद महिला आरोपियों का जमानत प्रार्थना पत्र निरस्त कर उन्हें जेल भेजने के मामले में संबंधित न्यायिक न्यायिक मजिस्ट्रेट और एडीजे क्रम-6 महानगर द्वितीय के पीठासीन अधिकारी बालकृष्ण कटारा से दो सप्ताह में स्पष्टीकरण देने को कहा है। इसके साथ ही अदालत ने दोनों आरोपी महिलाओं को जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए हैं। जस्टिस अनिल कुमार उपमन की एकलपीठ ने यह आदेश मीतू पारीक और इंदू वर्मा की जमानत याचिका को स्वीकार करते हुए दिए।

याचिका में अधिवक्ता राजेश महर्षि ने अदालत को बताया कि मामले में पुलिस ने उन्हें फंसाया है और वे निर्दोष है। पुलिस अनुसंधान में दोनों के खिलाफ जिन धाराओं में अपराध प्रमाणित माना गया है, वे धाराएं जमानती प्रकृति की हैं। इसके बावजूद भी न्यायिक मजिस्ट्रेट ने उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में भेजते समय इसका ध्यान नहीं रखा। वहीं एडीजे क्रम-6 महानगर द्वितीय के पीठासीन अधिकारी ने भी 24 जून को उनके जमानत प्रार्थना पत्रों को खारिज कर दिया। इसके अलावा याचिकाकर्ताओं के खिलाफ पूर्व में कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं है और इस केस की सुनवाई पूरी होने में लंबा समय लगने की संभावना है। ऐसे में याचिकाकर्ताओं को जमानत पर रिहा किया जाए। दूसरी ओर राज्य सरकार की ओर से जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा गया कि याचिकाकर्ताओं पर अपराध प्रमाणित है। दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने याचिकाकर्ताओं को जमानत पर रिहा करते हुए निचली अदालत के दोनों न्यायिक अधिकारियों से स्पष्टीकरण पेश करने को कहा है। गौरतलब है कि चित्रकूट थाना ने प्रॉपर्टी डीलर को दुष्कर्म के मामले में फंसाने की धमकी देकर उनसे तीन लाख रुपए का चेक लेते दोनों महिलाओं को गिरफ्तार किया था। दोनों आरोपी 16 जून, 2025 से न्यायिक अभिरक्षा में थी।

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हिन्दुस्थान समाचार / पारीक