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-1,500 हेक्टेयर वन भूमि को खाली कराने की कोशिश
गोलाघाट (असम), 30 जुलाई (हि.स.)। असम के गोलाघाट जिले में लगभग 1,500 हेक्टेयर वन भूमि पर कथित अतिक्रमण हटाने के लिए बड़े पैमाने पर बेदखली अभियान बुधवार को दूसरे दिन भी जारी रहा। असम-नगालैंड सीमा के पास रेंगमा रिजर्व फ़ॉरेस्ट की बस्तियों को निशाना बनाकर चलाए जा रहे इस अभियान के चलते अवैध रूप से बसे लगभग 1,500 परिवारों को हटाया जा रहा है, जिनमें ज़्यादातर मुस्लिम समुदाय के हैं।
यह अभियान मंगलवार को विद्यापुर क्षेत्र में शुरू हुआ और बुधवार को सोनारी बील और पीठाघाट क्षेत्रों में जारी रहा। अधिकारियों के अनुसार, अब तक बेदखली का काम काफी हद तक शांतिपूर्ण रहा है। अधिकारियों का लक्ष्य लगभग 11,000 बीघा (लगभग 1,500 हेक्टेयर) वन भूमि को पुनः प्राप्त करना है, जिस पर उनका दावा है कि अवैध रूप से अतिक्रमण किया गया था।
यह अभियान वन विभाग द्वारा गोलाघाट जिला प्रशासन, असम पुलिस और नगालैंड सरकार के सहयोग से चलाया जा रहा है। राज्य सरकार के इस दावे के बावजूद कि इस क्षेत्र पर अतिक्रमण किया गया था, अधिकारियों ने प्रभावित गांवों में कई राज्य-प्रायोजित सुविधाओं की मौजूदगी को स्वीकार किया। इनमें प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण (पीएमएवाई-जी) के तहत बने घर, जल जीवन मिशन (जेजेएम) के तहत पानी के कनेक्शन, सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) के तहत सरकारी स्कूल, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत बना एक उप-स्वास्थ्य केंद्र, बिजली कनेक्शन, बाज़ार, मस्जिद, मदरसे और चर्च शामिल हैं।
एक ज़िला अधिकारी ने बताया कि इस क्षेत्र में लगभग 2,000 परिवार रहते हैं, जिनमें से लगभग 1,500 को बेदखली के नोटिस जारी किए गए हैं। शेष निवासियों के पास कथित तौर पर वन अधिकार समिति (एफआरसी) के प्रमाण पत्र हैं और उनमें बोडो, नेपाली और मणिपुरी समुदायों के लोग शामिल हैं।
अधिकारी ने कहा कि नोटिस प्राप्त करने वाले लगभग 80 प्रतिशत परिवार पहले ही अपने घर खाली कर चुके हैं। अभियान के तहत केवल उनके घरों के ढांचों को ही गिराया जा रहा है।
हालांकि, स्थानीय निवासियों ने सरकार के दावे का विरोध किया और दावा किया है कि उन्हें मूल रूप से इस क्षेत्र में पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा बसाया गया था, खासकर 1978-79 में जनता पार्टी के कार्यकाल और 1980 के दशक के मध्य में पहली असम गण परिषद (अगप) सरकार के दौरान। 1978 में स्थापित एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय की उपस्थिति को लंबे समय से बसे होने का प्रमाण बताया जाता है।
बेदखल किए गए कई निवासियों ने कहा कि वे अधिकारियों के साथ सहयोग करने को तैयार हैं। लेकिन उनके पुनर्वास की व्यवस्ता की जाए।विस्थापितों में से एक ने कहा, हमने सरकार से केवल स्थानांतरित करने के लिए कहा था। अब हम बिना पीने के पानी या भोजन के तंबुओं में रह रहे हैं। यह अमानवीय है।
अधिकारियों ने स्वीकार किया कि बिजली और पानी के कनेक्शन सहित सरकारी बुनियादी ढांचा, क्षेत्र में स्थापित किया गया था। यहां तक कि 2016 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के सत्ता में आने के बाद भी। एक वन विभाग अधिकारी ने कहा, मुझे नहीं पता कि इन सुविधाओं को क्यों मंज़ूरी दी गई। जब मैंने कार्यभार संभाला था, तब ये पहले से ही यहां मौजूद थीं।
उल्लेखनीय है कि जिले के 12 गांवों में बेदखली की प्रक्रिया को प्रबंधित करने के लिए इलाके को नौ जोन में विभाजित किया गया है। अशांति को रोकने के लिए सीआरपीएफ की तैनाती सहित व्यापक सुरक्षा व्यवस्था की गई है। असम पुलिस मुख्यालय के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को अभियान के दौरान कानून-व्यवस्था की निगरानी के लिए गोलाघाट में तैनात किया गया है।
इस बीच, नगालैंड सरकार ने विस्थापित परिवारों को अपने क्षेत्र में आने से रोकने के लिए अपने सीमावर्ती जिलों को सलाह जारी की है।----------
हिन्दुस्थान समाचार / अरविन्द राय