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--उच्च न्यायालय की मौखिक टिप्पणी --श्री बांके बिहारी मंदिर ट्रस्ट मामले पर सुनवाई छह अगस्त को
प्रयागराज, 30 जुलाई (हि.स.)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मथुरा में श्री बांके बिहारी मंदिर के नियंत्रण और पर्यवेक्षण के लिए सरकारी ट्रस्ट बनाने के मामले में सुनवाई के लिए छह अगस्त की तारीख लगाई है।
उत्तर प्रदेश श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश 2025 के मामले में बुधवार को न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल के समक्ष सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के वकील ने बताया कि अध्यादेश की वैधता को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है और यह मामला लम्बित है।
इस पर कोर्ट ने सुनवाई के लिए 6 अगस्त की तिथि निर्धारित कर दी। साथ ही राज्य सरकार के मुख्य स्थायी अधिवक्ता से कहा कि यह उचित होगा कि प्रस्तावित ट्रस्ट में नौकरशाहों को शामिल करने के संबंध में अध्यादेश में संशोधन किया जाए। कोर्ट का मत था कि अध्यादेश के माध्यम से सरकार मंदिर में नियंत्रण करना चाहती है, जिसे अनुमति नहीं दी जा सकती है। क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है।
गौरतलब है कि, गत 21 जुलाई को एमिकस क्यूरी संजय गोस्वामी ने राज्य सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश श्री बांके बिहारी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश 2025 के रूप में जारी करने की क्षमता के बारे में सवाल उठाया था कि मंदिर निजी सम्पत्ति है और वहां स्व स्वामी हरिदास के वारिस प्रबंधन कर रहे हैं। उनके अनुसार अध्यादेश जारी होने से सरकार पीछे के दरवाजे से मंदिर पर नियंत्रण करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने यह भी बताया कि अध्यादेश की धारा 5 में बोर्ड और ट्रस्टियों की नियुक्ति, संरचना और शर्तों के लिए प्रावधान किया गया है। धारा 5 (1) (।।) में यह प्रावधान किया गया है कि बोर्ड के दो प्रकार के ट्रस्टी होंगे यानी नामित ट्रस्टी और पदेन ट्रस्टी। उनके अनुसार नामित ट्रस्टी वैष्णव परम्परा के संत, महंत, गुरु, विद्वान, मठाधीश और महंत आदि हैं। साथ ही सनातन धर्म के अनुयायी भी हैं।
लेकिन उन्हें पदेन ट्रस्टियों पर आपत्ति है, जो सात हैं और इनमें मथुरा के डीएम, एसएसपी, नगर आयुक्त, उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, प्रदेश सरकार के धर्मार्थ कार्य विभाग के एक अधिकारी एवं श्री बांके बिहारी मंदिर ट्रस्ट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी। उनका तर्क है कि राज्य सरकार द्वारा पदेन ट्रस्टियों की नियुक्ति की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह गोस्वामियों द्वारा प्रबंधित निजी मंदिर में राज्य सरकार के पीछे के दरवाजे से प्रवेश करने के समान होगा। उनके अनुसार राज्य सरकार द्वारा पीछे के दरवाजे से प्रवेश करके और श्री बांके बिहारी मंदिर पर नियंत्रण करके हिंदुओं के अधिकारों का अतिक्रमण है। क्योंकि यह एक निजी मंदिर है और स्वामी हरिदास के अनुयायी व उत्तराधिकारी उक्त मंदिर का प्रबंधन कर रहे हैं।
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हिन्दुस्थान समाचार / रामानंद पांडे