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प्रयागराज, 03 जुलाई (हि.स.)। इलाहाबाद हाई कोर्ट में उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत निगम लिमिटेड (यूपीपीसीएल) एवं पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के स्वरूप में बदलाव व प्रस्तावित निजीकरण को चुनौती दी गई है।
विजय प्रताप सिंह की जनहित याचिका में कहा गया है कि निजीकरण का निर्णय जनहित के खिलाफ है और निर्धारित कानूनी प्रक्रियाओं व संविधान के अनुच्छेद 247 का उल्लंघन है। ऐसे में प्रस्तावित निजीकरण को रद्द किया जाय। याचिका में कहा गया है कि पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम में हिस्सेदारी कम करने का पूरा प्रयास कंपनी अधिनियम 2013 और विद्युत अधिनियम 2003 का उल्लंघन है। कंपनी की संपत्ति के मूल्यांकन और उसके विनिवेश के लिए उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है।
निजीकरण का तर्क, जो घाटे पर आधारित है, काल्पनिक है। क्योंकि निम्न-आय वर्ग को दी गई सब्सिडी का पैसा डिस्कॉम को राज्य सरकार की ओर से वापस नहीं किया गया है। याचिकाकर्ता ने यूपीपीसीएल और पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के खिलाफ कुप्रबंधन और लालफीताशाही का आरोप लगाया है।
कहा गया है कि यूपीपीसीएल के अध्यक्ष आशीष कुमार गोयल के पास कोई तकनीकी डिग्री नहीं है, फिर भी वे बिजली के सबसे तकनीकी काम को संभालते हैं। इसके अलावा पंकज कुमार (बी.ए. फिलॉसफी), रूपेश कुमार (एमबीबीएस), राजकुमार (एमएससी जियोलॉजी), नील रतन कुमार (एमएससी), और नितिन निझावन (एम.कॉम) जैसे अन्य निदेशकों के पास भी कोई तकनीकी डिग्री नहीं है। कहा कि विद्युत नियामक आयोग का प्राथमिक उद्देश्य उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना है। हालांकि, निजीकरण के बाद उपभोक्ताओं को अधिक बिजली शुल्क का भुगतान करना पड़ सकता है। कोर्ट से मांग की गई है कि परमादेश जारी कर यूपीपीसीएल और पीवीवीएनएल का प्रबंधन पेशेवर तरीके से करने और कंपनी के बोर्ड में केवल तकनीकी योग्यता वाले व्यक्तियों को नियुक्त करने का निर्देश दिया जाए।
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हिन्दुस्थान समाचार / रामानंद पांडे