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--कहा, ऐसे मामलों में राहत भविष्य के आवंटियों के लिए नकारात्मक मिसाल होगी
प्रयागराज, 29 जुलाई (हि.स.)। हाईकोर्ट ने ’लगातार चूककर्ता’ (डिफाल्टर) का पट्टा बहाल करने से इनकार कर दिया और कहा कि ऐसे मामलों में राहत भविष्य के आवंटियों के लिए नकारात्मक मिसाल कायम करेगी।
हाईकोर्ट ने यह निर्णय देते हुए कि कहा कि रिट क्षेत्राधिकार के तहत इक्विटी (साम्य न्याय) उन लोगों के पक्ष में नहीं दी जा सकती जो लगातार अपने दायित्वों में चूक करते हैं। यह भी कहा कि ऐसे पट्टों की बहाली, जहां कई दीर्घकालिक चूकें (डिफाल्टर) की गई हों, भुगतान कार्यक्रम और अन्य दायित्वों के संदर्भ में भविष्य के आवंटियों के लिए नकारात्मक मिसाल कायम करती है।
न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की पीठ ने कहा, “दीर्घकालिक चूक के बाद पट्टों को बहाल करने की नीति भविष्य के आवंटियों के लिए भुगतान अनुसूचियों और वैधानिक दायित्वों की अवहेलना करने और अंततः रियायतों की आशंका में एक नकारात्मक मिसाल कायम करेगी। यह निरस्तीकरण और ई-नीलामी जैसे प्रवर्तन उपायों के निवारक प्रभाव को कमज़ोर करता है, और औद्योगिक भूमि आवंटन के समग्र प्रशासनिक ढाँचे को कमज़ोर करता है।“
न्यायालय ने आगे कहा कि “इक्विटी, हालांकि रिट क्षेत्राधिकार का एक अभिन्न पहलू है, लेकिन इसका उपयोग उस पक्ष के पक्ष में नहीं किया जा सकता है, जो आवंटन और पट्टा शर्तों के तहत अपने दायित्वों को पूरा करने में लगातार विफल रहा है।“
याची सविता शर्मा को उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीएसआईडीए) द्वारा वाराणसी जिले में फल पकाने की औद्योगिक इकाई स्थापित करने के लिए भूमि आवंटित की गई थी। कब्जा लेने के बाद, याची ने बकाया प्रीमियम राशि ₹19,82,912.03 का भुगतान नहीं किया। कई बार समय बढ़ाने और हाईकोर्ट आदेश द्वारा दी गई मोहलत के बावजूद, याची बकाया राशि का भुगतान करने में विफल रहा। इस कारण आवंटन रद्द कर दिया गया और उनका का पुनर्स्थापन आवेदन भी खारिज कर दिया गया।
इसके बाद याची ने रद्दीकरण आदेश को रद्द करने तथा बहाली आवेदन को अस्वीकार करने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल किया। न्यायालय ने स्काईलाइन कॉन्ट्रैक्टर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने आंशिक और विलंबित भुगतान के बावजूद नोएडा द्वारा आवंटन रद्द करने को इस आधार पर बरकरार रखा कि भुगतान नोएडा की अनुमति के बिना एकतरफा रूप से किया गया था। हाईकोर्ट ने यह भी माना कि याचिकाकर्ता ने यूपीएसआईडीए से कोई औपचारिक समय विस्तार भी नहीं मांगा था और बहाली आवेदन में विलम्ब क्षमा के लिए दिए गए स्पष्टीकरण से 4 वर्षों की चूक को समाप्त नहीं किया जा सकता।
न्यायालय ने माना कि यह तथ्य कि याचिकाकर्ता भूमि के रद्द होने और ई-नीलामी नोटिस जारी होने के बाद भी भुगतान करने को तैयार था। परन्तु यह निर्धारित समय पर बकाया राशि का भुगतान न करने में जानबूझकर की गई विफलता को समाप्त नहीं करता। न्यायालय ने माना कि आवंटन की आवश्यक शर्तों का बार-बार और पर्याप्त रूप से पालन नहीं किया गया था, जिसके कारण इसे रद्द कर दिया गया था।
हाईकोर्ट ने कहा कि “बार-बार चूक के बाद पट्टे को बहाल करने के दूरगामी परिणाम होते हैं। राज्य की राजकोषीय और प्रशासनिक नीतियां, विशेष रूप से औद्योगिक भूखंडों के आवंटन और पट्टा-पत्रों से संबंधित मामलों में, सार्वजनिक जवाबदेही, संसाधनों के कुशल उपयोग और औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के सिद्धांतों पर आधारित हैं। जब कोई आवंटी बार-बार चूक करता है, विशेष रूप से लम्बी अवधि में जिसमें पट्टे की शर्तों और वैधानिक प्रावधानों का कई बार उल्लंघन होता है। तो ऐसे पट्टे को बहाल करना गंभीर राजकोषीय, प्रशासनिक और सार्वजनिक नीतिगत चुनौतियां उत्पन्न करता है।“
वित्तीय घाटे के अलावा, न्यायालय ने माना कि पट्टा विलेख का अनुपालन करने में लगातार विफलता सार्वजनिक हित को कमजोर करती है तथा अन्य योग्य आवेदकों को भूमि का उपयोग करने के अवसर से वंचित करती है, जिससे औद्योगिक विकास की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। न्यायालय ने माना कि याची द्वारा बकाया राशि चुकाने में लगातार 14 बार की गई विफलता “राजकोषीय अनुशासन, जनहित और औद्योगिक नीति के उद्देश्यों की नींव पर प्रहार है।“ हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
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हिन्दुस्थान समाचार / रामानंद पांडे