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--कहा, जितने दिन सेवा से बाहर रहे, एक चौथाई वेतन ही मिलेगा
प्रयागराज, 29 जुलाई (हि.स.)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की गोंडा शाखा के पूर्व कैशियर जग पाल सिंह की बर्खास्तगी के आदेश को रद्द कर दिया है और आपराधिक केस के फैसले का इंतजार करने या नये सिरे से नियमानुसार कार्यवाही करने की छूट दी है।
याची को 55.20 लाख रूपये के धोखाधड़ी के मामले मे विभागीय कार्यवाही के बाद बर्खास्त कर दिया गया था। कोर्ट ने कहा, अनुशासनात्मक प्राधिकारी का निर्णय “किसी सबूत“ पर आधारित नहीं था और यह मुख्य रूप से आपराधिक केस की जांच के दौरान सिंह द्वारा पुलिस को दिए गए कथित इकबालिया बयान पर निर्भर था।
20 जून 2014 को आशा पुंडीर द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी मे आरोप लगाया गया कि उनके खाते से अनधिकृत रूप से पैसे निकाल लिए गए हैं। याची को 26 नवम्बर 2014 को गिरफ्तार किया गया और बाद में जमानत पर रिहा कर दिया गया। उनके खिलाफ 18 अप्रैल 2015 को चार्जशीट दायर किया गया था और आपराधिक केस अभी भी चल रहा है।
इसी मामले में विभागीय कार्यवाही भी शुरू की गई और उन्हें 28 फरवरी 2015 को निलम्बित कर दिया गया। 9 अक्टूबर 2015 की एक जांच रिपोर्ट में उनके खिलाफ सभी तीनों आरोप सिद्ध पाए गए। अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने बाद में 10 दिसम्बर 2015 को उन्हें सेवा से बर्खास्त करने का आदेश दिया। इस आदेश को अपीलीय प्राधिकारी ने भी बरकरार रखा। उच्च न्यायालय ने फिर से निर्णय लेने का आदेश दिया।
इसके बाद अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने 20 जून 2018 को याची पर “बिना नोटिस के सेवा से बर्खास्तगी“ का दंड फिर से लगाया। अपीलीय प्राधिकारी द्वारा उनकी अपील खारिज किए जाने के बाद सिंह ने इस आदेश को भी वर्तमान रिट याचिका में चुनौती दी। अधिवक्ता ने तर्क दिया कि अनुशासनात्मक प्राधिकारी पिछले अदालत के निर्देशों का अक्षरशः पालन करने में विफल रहा और पिछली गलती को दोहराया। उन्होंने तर्क दिया कि विभागीय जांच पूरी तरह से पुलिस को दिए गए एक कथित इकबालिया बयान पर निर्भर थी, जिसे अनुशासनात्मक कार्यवाही में साक्ष्य के रूप में नहीं पढ़ा जा सकता है। उन्होंने यह भी उजागर किया कि कोई स्वतंत्र गवाह नहीं था और धोखाधड़ी से याची को जोड़ने वाला कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सबूत नहीं था।
न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने कहा पिछले फैसले के निर्देशों का “काफी हद तक अनुपालन“ किया गया था, अनुशासनात्मक निष्कर्षों का मूल पुलिस को दिए गए कथित इकबालिया बयान पर टिका था। अदालत ने उच्चतम न्यायालय के रूप सिंह नेगी बनाम पंजाब नेशनल बैंक और अन्य (2009) और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया बनाम बिश्वनाथ भट्टाचार्जी (2022) के फैसलों का हवाला दिया, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया था कि स्वतंत्र सहायक सबूत के बिना केवल पुलिस के इकबालिया बयान को अनुशासनात्मक कार्रवाई का एकमात्र आधार नहीं बनाया जा सकता।
न्यायालय ने अनुशासनात्मक प्राधिकारी का 20 जून 2018 का आदेश और अपीलीय आदेश दोनों को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि याची के खिलाफ नए सिरे से कार्यवाही कर सकते हैं या लम्बित आपराधिक मुकदमे के परिणाम की प्रतीक्षा कर सकते हैं।
बकाया वेतन के संबंध में, अदालत ने “कोई काम नहीं-कोई वेतन नहीं“ के सिद्धांत को आंशिक रूप से लागू करते हुए फैसला सुनाया कि याची सेवा से बाहर रहे अवधि के लिए अपने वेतन का एक-चौथाई (1/4) पाने के हकदार हैं, और उनकी सेवा में निरंतरता रहेगी।
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हिन्दुस्थान समाचार / रामानंद पांडे