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नई दिल्ली, 29 जुलाई (हि.स.)। बिहार में वोटर वेरिफिकेशन को चुनौती देने वाली याचिका पर उच्चतम न्यायालय 12 और 13 अगस्त को सुनवाई करेगा। उच्चतमन्यायालय ने कहा कि अगर बड़े पैमाने पर मतदाताओं का नाम वोटर लिस्ट से काटा जा रहा है तो हम तुरंत हस्तक्षेप करेंगे। इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने याचिकाकर्ता से कहा कि आप ऐसे 15 लोगों को लेकर आइए जो जीवित हैं और उनको मरा दिखाकर नाम काट दिया गया हो। दरअसल, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने निर्वाचन आयोग के उस बयान की ओर कोर्ट का ध्यान दिलाया, जिसमें कहा गया था कि 65 लाख लोगों ने एन्यूमरेशन फॉर्म जमा नहीं किया है। ये लोग या तो मर चुके हैं या स्थायी रुप से कहीं और शिफ्ट हो गए हैं। प्रशांत भूषण ने कहा कि इन लोगों को नये सिरे से वोटर लिस्ट में शामिल होने के लिए आवेदन करना होगा। तब कोर्ट ने कहा कि हम यहां बैठे हैं, इस मसले पर भी सुनवाई करेंगे। जस्टिस बागची ने कहा कि आप हमें 15 लोग बताइए जो जीवित हैं, हम इसमें हस्तक्षेप करेंगे।
उच्चतम न्यायालय ने 28 जुलाई को चुनाव आयोग को सुझाव दिया था कि वो आधार कार्ड और मतदाता पहचान पत्र को भी मतदाता लिस्ट में नाम शामिल के लिए मान्य दस्तावेज के रूप में स्वीकार करें। अगर इनमें कोई दस्तावेज फर्जी पाया जाता है तो उस पर कार्रवाई करें। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील गोपाल शंकर नारायणन ने उच्चतम न्यायालय से मांग कि थी वो इस दरम्यान ड्राफ्ट मतदाता सूची जारी करने पर रोक लगा दें। उच्चतम न्यायालय ने अभी ऐसा कोई आदेश देने से इनकार कर दिया था। उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि वो इस मामले में पूरी तरह सुनवाई कर ही फैसला देगा।
इस मामले में एडीआर ने कहा है कि निर्वाचन आयोग ने आधार और राशन कार्ड के दस्तावेज को वोटर लिस्ट में शामिल करने के लिए वैध दस्तावेज के रुप में शामिल नहीं करने का कोई पुख्ता कारण नहीं बताया है। एडीआर ने उच्चतम न्यायालय में दाखिल अपने जवाबी हलफनामे में ये बात कही है। एडीआर ने कहा है कि मतदाता सूची में शामिल करने के लिए जिन 11 वैध दस्तावेजों की सूची निर्वाचन आयोग ने दी है वे भी फर्जी और झूठे दस्तावेजों के जरिये हासिल किए जा सकते हैं। एडीआर ने कहा है कि स्थायी आवास प्रमाण पत्र, ओबीसी, एससी, एसटी प्रमाण पत्र औऱ पासपोर्ट तक के लिए आधार कार्ड की जरुरत होती है।
एडीआर ने कहा है कि निर्वाचन आयोग की ओर से आधार कार्ड को विशेष गहन पुनरीक्षण के लिए शामिल नहीं करना बेतुका है। निर्वाचन आयोग की ओर से विशेष गहन पुनरीक्षण के दौरान एन्यूमरेशन फॉर्म के साथ संलग्न दस्तावेजों की सत्यता प्रमाणित करने की कोई निश्चित प्रक्रिया नहीं बतायी गयी है। एडीआर ने कहा है कि इलेक्टोरल रजिट्रेशन आफिसर्स (ईआरओ) को दस्तावेजों को स्वीकार करने का इतना ज्यादा अधिकार दे दिया गया है कि इसका दुष्परिणाम बिहार की एक बड़ी आबादी को वोटर लिस्ट से बाहर करने के रुप में देखा जा सकता है। एडीआर ने कहा है कि एक ईआरओ को तीन लाख लोगों के एन्यूमरेशन फॉर्म को संभालने का जिम्मा दिया गया है। यहां तक कि एन्यूमरेशन फॉर्म वोटर की अनुपस्थिति में भी भरा जा रहा है।
इस मामले में निर्वाचन आयोग ने हलफमाना दायर कर कहा है कि मतदाता पहचान पत्र को वोटर लिस्ट में शामिल करने के लिए मान्य दस्तावेज के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाब में कहा है कि आधार कार्ड और राशन कार्ड को भी वैध दस्तावेज नहीं माना जा सकता है। निर्वाचन आयोग ने कहा है कि बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण कार्यक्रम जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 21(3) के तहत किया जा रहा है और मतदाता पहचान पत्र वर्तमान वोटर लिस्ट के मुताबिक बनाया गया है। आधार कार्ड को लेकर निर्वाचन आयोग ने कहा है कि ये नागरिकता का सबूत नहीं है। निर्वाचन आयोग ने कहा कि आधार कानून की धारा 9 में स्पष्ट कहा गया है कि ये नागरिकता का दस्तावेज नहीं है।
हिन्दुस्थान समाचार/संजय
हिन्दुस्थान समाचार / सुनीत निगम