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प्रयागराज, 24 जुलाई (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा कि वरिष्ठ नागरिक अधिनियम, 2007 की धारा 7 के तहत भरण-पोषण न्यायाधिकरण को सम्पत्ति के स्वामित्व के दावों पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। विशेष रूप से तीसरे पक्ष के बीच विवाद मामले में ट्रिब्यूनल को कोई अधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के मामले में सिविल न्यायालयों के समक्ष निर्णय लिया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति अरिंदम सिन्हा और न्यायमूर्ति डॉ. योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने कहा कि वरिष्ठ नागरिक अधिनियम का उद्देश्य वरिष्ठ नागरिकों को भरण पोषण प्रदान करना और उनका कल्याण करना है।
हाईकोर्ट ने कहा कि अधिनियम के अंतर्गत गठित भरण-पोषण न्यायाधिकरणों को बच्चों के विरुद्ध भरण-पोषण के दावों से संबंधित आवेदनों पर विचार करने का अधिकार दिया गया है, या किसी निःसंतान वरिष्ठ नागरिक के मामले में, उसके उस रिश्तेदार के विरुद्ध, जो संपत्ति का उत्तराधिकारी होगा, आवेदनों पर विचार करने का अधिकार दिया गया है। सम्पत्ति और स्वामित्व अधिकारों से संबंधित प्रश्नों पर, विशेष रूप से जहां किसी तृतीय पक्ष के साथ कोई विवाद हो, न्यायाधिकरण को कोई अधिकार नहीं दिया गया है। इस संबंध में विवादों का निपटारा सक्षम अधिकार क्षेत्र वाले सिविल न्यायालयों के समक्ष किया जाना है।
याचिकाकर्ता इशाक ने उत्तर प्रदेश माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण एवं कल्याण नियम, 2014 के नियम 21 के तहत अपनी जान-माल की सुरक्षा की मांग की थी। दलील दी गई कि याची को प्राइवेट विपक्षियों द्वारा धमकी दी गई क्योंकि वह अपनी निजी संपत्ति पर गेट बनवाना चाहता था। कहा गया कि वरिष्ठ नागरिक अधिनियम और नियम उन्हें न केवल अपने बच्चों से, बल्कि तीसरे पक्ष से भी सुरक्षा प्रदान करते हैं।
न्यायालय ने कहा कि यह अधिनियम भारत में संयुक्त परिवारों की घटती संरचना के कारण उपेक्षित वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा के लिए लागू किया गया था। कोर्ट ने कहा कि अधिनियम की धारा 4 ऐसे वरिष्ठ नागरिकों को, जो अपना भरण-पोषण स्वयं करने में असमर्थ है, भरण-पोषण का अधिकार देती है। अधिनियम की धारा 5 ऐसे वरिष्ठ नागरिक को अधिनियम की धारा 7 के तहत गठित भरण-पोषण न्यायाधिकरण के समक्ष आवेदन करने का अधिकार देती है। न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता के पड़ोसी द्वारा उसकी सम्पत्ति पर गेट बनाने में बाधा डालना वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के दायरे में नहीं आता है और इसके तहत किसी कानूनी अधिकार का उल्लंघन नहीं किया गया है। कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
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हिन्दुस्थान समाचार / रामानंद पांडे