सिविल वाद में अपील तक लगातार हारने के बाद उसी मामले में आपराधिक कार्यवाही कानूनी प्रक्रिया का दुरूपयोग : हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकाेर्ट


--सी जे एम सिद्धार्थ नगर के समक्ष आपराधिक केस कार्यवाही रद्द

प्रयागराज, 24 जुलाई (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सिविल मुकद्दमे में हाईकोर्ट तक लगातार हारने व इसी दरमियान दबाव डालने के लिए उसी मामले में कायम आपराधिक केस कार्यवाही को क़ानूनी प्रक्रिया का दुरूपयोग करार देते हुए रद्द कर दिया है।

कोर्ट ने कहा बैंक डेट से फर्जी वसीयत तैयार करने का आरोप लगाते हुए मृत सम्पत्ति स्वामी की अकेली लड़की ने निषेधाज्ञा वाद दायर किया, जो खारिज हो गया। इसके खिलाफ अपील व द्वितीय अपील भी खारिज हो गई। यह आदेश अंतिम हो गया। इसलिए उसी मामले में आपराधिक केस कार्यवाही नहीं चलाई जा सकती।

यह आदेश न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार ने सिद्धार्थनगर के परशुराम व अन्य की आपराधिक केस कार्यवाही को रद्द करने की मांग में दाखिल धारा 482 भारतीय दंड संहिता को स्वीकार करते हुए दिया।

मालूम हो कि 19 जून 2006 को विपक्षी ने इस्तगासा दायर किया कि वह कुन्नू की इकलौती पुत्री है। शादी के बाद वह नेपाल में रह रही है। उसके पिता कुन्नू की 3 फरवरी 5 को मौत हो गई। याची व अन्य आरोपियों ने बैंक डेट 28 अगस्त 88 से उनकी सम्पत्ति की फर्जी वसीयत तैयार कर पंजीकृत करा लिया। शिकायतकर्ता का बयान दर्ज करने के बाद सी जे एम सिद्धार्थ नगर ने आरोपी याचियों को सम्मन जारी किया। जिसे पूरी केस कार्यवाही के साथ रद्द करने की मांग में याचिका दायर की गई थी। याची का कहना था वहीं लोग मृत कुन्नू की सेवा कर रहे थे।वसीयत में बेटी को भी 1/5 शेयर दिया गया है।

इस पर निषेध के लिए विपक्षी पुत्री ने सिविल वाद दायर किया जो खारिज हो गया। इसके खिलाफ अपील भी खारिज हो गई,फिर द्वितीय अपील भी खारिज हो गई। आदेश फाइनल हो गया। सिविल वाद खारिज होने के बाद आपराधिक कार्यवाही कानूनी प्रक्रिया का दुरूपयोग है। याचियों के खिलाफ कोई आपराधिक केस नहीं बनता।

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हिन्दुस्थान समाचार / रामानंद पांडे