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नई दिल्ली, 2 जुलाई (हि.स.)। नए आपराधिक कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के लागू होने की पहली वर्षगांठ के उपलक्ष्य में भारत मंडपम में विशेष प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है। यह प्रदर्शनी जनता को नए कानूनों की विशेषताओं से अवगत कराने और आपराधिक न्याय प्रणाली के पांच मुख्य स्तंभों पुलिस, अस्पताल, फॉरेंसिक विभाग, अभियोजन पक्ष और न्यायालय के बीच तकनीकी एवं संस्थागत समन्वय को दर्शाने के लिए आयोजित की गई है। यह प्रदर्शनी छह जुलाई तक चलेगी।
पुलिस मुख्यालय की ओर से बुधवार को जारी एक बयान के अनुसार, प्रदर्शनी को बेहद रोचक और इंटरैक्टिव तरीके से प्रस्तुत किया गया है। जिसमें ऑडियो-विजुअल, ऐनिमेशन और लाइव नाट्य रूपांतर के माध्यम से एक आपराधिक मामले की पूरी प्रक्रिया को जीवंत रूप में दिखाया गया है। शुरुआती शिकायत कॉल से लेकर जांच, साक्ष्य संकलन, सुनवाई और अपील तक की पूरी न्यायिक यात्रा को विस्तार से दर्शाया गया है।
प्रदर्शनी को 9 अलग-अलग थीमैटिक स्टेशनों में विभाजित किया गया है, जो नए कानूनों द्वारा लाई गई क्रांतिकारी बदलावों और डिजिटल टूल्स के उपयोग को दर्शाते हैं।इसमें प्रमुख आकर्षण : सात वर्ष से अधिक सजा वाले मामलों में अपराध स्थल पर फॉरेंसिक विशेषज्ञों का दौरा अब अनिवार्य कर दिया गया है। डिजिटल माध्यम से साक्ष्य संकलन एवं सुरक्षित भंडारण, जिससे साक्ष्य की प्रामाणिकता सुनिश्चित होती है। सीसीटीएनएस के माध्यम से डिजिटल रूप में फॉरेंसिक प्रयोगशालाओं को सबूत भेजे जाते हैं, जिससे प्रक्रिया में तेजी आती है। अस्पताल अब एमएलसी और पोस्टमार्टम रिपोर्ट को सीधे सीसीटीएनएस के जरिये जांच एजेंसियों को भेज सकते हैं। अब जांच अधिकारी गिरफ्तारी के 60 दिनों के भीतर कभी भी पुलिस रिमांड मांग सकते हैं। बड़ी फाइलें अब ‘ऑब्जेक्ट स्टोरेज’ के जरिये अभियोजन पक्ष को भेजी जा सकती हैं। गवाह अब वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से गवाही दे सकते हैं। नफीस और चित्रखोजी तकनीक से दोहराव वाले अपराधियों की पहचान आसान हुई है। नए कानूनों के तहत अनुपस्थित अभियुक्तों पर मुकदमा चलाने का प्रावधान किया गया है। जो विचाराधीन कैदी अपनी सजा की 1/3 अवधि जेल में काट चुके हैं, उनके लिए अब जेल अधीक्षक खुद बेल याचिका लगाएंगे।
क्राइम ब्रांच के संयुक्त पुलिस आयुक्त सुरेन्द्र कुमार ने बताया कि यह प्रदर्शनी देश की न्यायिक प्रणाली में आए महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक बदलावों को आम जनता, कानून प्रवर्तन एजेंसियों, विधि विशेषज्ञों, शिक्षाविदों और नागरिक समाज के सामने प्रस्तुत करती है। यह दर्शाती है कि कैसे नई कानूनी व्यवस्था पीड़ित-केंद्रित, प्रमाण-आधारित और डिजिटल रूप से सशक्त बन रही है।
सभी नागरिकों से अनुरोध है कि वे इस ऐतिहासिक पहल का हिस्सा बनें और भारत की न्यायिक प्रणाली के इस परिवर्तनकारी चरण को साक्षात अनुभव करें।
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हिन्दुस्थान समाचार / कुमार अश्वनी