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देहरादून, 16 जुलाई (हि.स.)। उत्तराखंड सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत भारतीय ज्ञान परंपरा को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाया है। प्रदेश के सरकारी स्कूलों में शैक्षिक सत्र 2026-27 से श्रीमद्भगवद्गीता और रामायण को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाएगा। साथ ही, नैतिक शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए स्कूलों में गीता के श्लोकों का वाचन शुरू हो गया है।
दरअसल, 6 मई 2025 को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शिक्षा विभाग की समीक्षा बैठक में अधिकारियों को इस बाबत निर्देश दिए थे की नई शिक्षा नीति में जो भारतीय ज्ञान परंपरा का प्रावधान किया गया है। उसके तहत बच्चों के पाठ्यक्रम में श्रीमद्भगवद् गीता और रामायण को शामिल किया जाए। जिससे चलते शिक्षा विभाग ने एक और कदम आगे बढ़ते हुए 15 जुलाई से प्रदेश के सभी स्कूलों में श्रीमद्भगवद् गीता के श्लोक के वाचन शुरू कर दिया गया है।
माध्यमिक शिक्षा विभाग के निदेशक डॉ. मुकुल कुमार सती ने बताया कि सभी मुख्य शिक्षा अधिकारियों को आदेश जारी कर दिए हैं। जारी आदेश के अनुसार, स्कूलों में श्रीमद्भगवद्गीता के कुछ श्लोकों को लेकर बच्चों को भारतीय ज्ञानपरंपरा और जीवन मूल्यों की जानकारी दें।
शिक्षा विभाग की ओर से जारी आदेश
-प्रार्थना सभा में रोजाना श्रीमद्भगवद्गीता के कम से कम एक श्लोक को अर्थ सहित छात्र-छात्राओं को सुनाया जाए।
- श्लोक के वैज्ञानिक दृष्टिकोण की जानकारी छात्र-छात्राओं को दी जाय।
- हर सप्ताह एक मूल्य आधारित श्लोक को 'सप्ताह का श्लोक' घोषित कर उसे सूचना पट्ट पर अर्थ सहित लिखा जाय।
- जिसका बच्चे अभ्यास करें और हफ्ते के अन्तिम दिन इस श्लोक पर चर्चा की जाय।
- शिक्षक समय-समय पर श्लोकों की व्याख्या करें और बच्चों को जानकारी दें।
- श्रीमद्भगवद्गीता के सिद्धांत किस प्रकार मानवीय मूल्य, व्यवहार, नेतृत्व कौशल, निर्णय क्षमता, भावनात्मक संतुलन और वैज्ञानिक सोच विकसित करते हैं।
- छात्र-छात्राओं को ये भी जानकारी दी जाय कि श्रीमद्भगवद्गीता में दिए गए उपदेश सांख्य, मनोविज्ञान, तर्कशास्त्र, व्यवहार विज्ञान एवं नैतिक दर्शन पर आधारित हैं जो कि धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण से सम्पूर्ण मानवता के लिए उपयोगी हैं।
- छात्र-छात्राओं को श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोक केवल विषय या पठन सामग्री के रूप में न पढ़ाए जाएं।
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हिन्दुस्थान समाचार / विनोद पोखरियाल