कल्याण के द्वार को खोल लेना ही जैनत्व है: आचार्य सौरभ सागर
देहरादून, 16 जुलाई (हि.स.)। ज्ञानयोगी जीवन आशा हॉस्पिटल प्रेरणा स्रोत आचार्य सौरभ सागर जी महामुनिराज के मंगल सानिध्य में विधानाचार्य संदीप जैन सजल के संगीतकार रामकुमार एंड पार्टी भोपाल द्वारा संगीतमय कल्याण मंदिर विधान का आयोजन किया जा रहा है। व
प्रवचन करते आचार्य सौरभ सागर


देहरादून, 16 जुलाई (हि.स.)। ज्ञानयोगी जीवन आशा हॉस्पिटल प्रेरणा स्रोत आचार्य सौरभ सागर जी महामुनिराज के मंगल सानिध्य में विधानाचार्य संदीप जैन सजल के संगीतकार रामकुमार एंड पार्टी भोपाल द्वारा संगीतमय कल्याण मंदिर विधान का आयोजन किया जा रहा है।

विधान मे उपस्थित भक्तो ने बड़े भक्ति भाव के साथ 23वे तीर्थंकर चिंतामणि भगवान पार्श्वनाथ की आराधना की। बुधवार के विधान के पुण्यार्जक जैन वीरांगना मंच रही। भगवान पार्श्वनाथ की भक्ति आराधना के पांचवे दिन आचार्य ने अपने प्रवचन मे कहा कि जैनत्व के आचरण को भीतर प्राप्त करके अपने कल्याण के द्वार को खोल लेना ही जैनत्व है।

उन्होंने कहा कि गुणो का नाम ही धर्म होता है। मिथ्यात्व से सदा मुक्त रहना चाहिए। अपने जीवन में भगवान महावीर का कायदा कानून लाना कठिन है। ऐसा नियम कानून अपने भीतर लाने से व्यवहार और आचरण झलकता है।

अधिकार के लिए तो सब लोगो मे होड़ है लेकिन व्यवहार और अध्यात्म के लिए नहीं। जिस प्रकार समुद्र में ऊपर तैरने पर सिर्फ महली ही मिलती है परन्तु यदि समुद्र के भीतर जाए तो मोती भी प्राप्त होते है। उसी प्रकार हम धर्म में सिर्फ ऊपर-ऊपर तैर रहे है। धर्म का मर्म रुपी मोती तो धर्म की गहराइयों से प्राप्त होता है जो मिलने पर सस्कार बन जाता है। ऐसा व्यक्ति कही पर भी हो वह अपने संस्कार को अपने आचरण को कदापि भूलता नही है।

हिन्दुस्थान समाचार / राम प्रताप मिश्र