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देहरादून, 16 जुलाई (हि.स.)। प्रकृति पर्व हरेला प्रकृति को हरा भरा बनाने और उसे समृद्ध करने का ऐसा अभियान है जिसे धार्मिक रूप से मान्यता दी गई है ताकि प्रतिवर्ष हरेला के अवसर पर हम सब मिलकर धरती का श्रृंगार करें। इसके पीछे धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ सामाजिक मान्यताएं और प्रकृति को सजाने संवारने की वह परिकल्पना है जो हमें हम प्रकार से सक्षम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
विश्व संवाद केंद्र के प्रमुख संजय ने कहा कि हरेला पर्व वर्तमान संदर्भों में इसीलिए और महत्वपूर्ण हो गया है कि पिछले कुछ वर्षों से प्रकृति का काफी विनाश हुआ है। चाहे प्राकृतिक आपदा के नाम पर हुआ या विकास की योजनाओं के नाम पर। हमें इसी क्षति को पूरा करने के लिए प्रकृति को पूरी तरह सजाना और संवारना है। जहां प्रदेश सरकार ने पांच लाख वृक्ष लगाने का निर्णय लिया है वहीं विभिन्न सामाजिक संगठनों ने भी अपने-अपने ढंग से प्रकृति का श्रृंगार करने का लक्ष्य लिया है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने समाज जागरण की दृष्टि से इस काम को अपने हाथ में लिया है ताकि मानवता की रक्षा के लिए वृक्षों का अधिकाधिक रोपण और उनका संवर्धन और संरक्षण किया जाएए ताकि प्रकृति मानव के लिए वरदान साबित हो।
उन्होंने वैश्विक गर्मी का उदाहरण देते हुए कहा कि हम सबने बरगद, नीम, पीपल, पाकड़ जैसे वृक्षों का लगाना छोड़ दिया। इससे जहां पशु पक्षियों को समस्या हो रही है मान्वता को भी प्राकृतिक त्रासदी झेलनी पड़ रही है।
संजय जी ने कहा कि पहले मार्गों के किनारे कुुंए, विशालकाय वृक्ष मिला करते थे जो प्रकृति को श्रेष्ठ बनाते ही थे, मानवता के रक्षण का भी कार्य करते थे, लेकिन आधुनिकता की दौड़ में हमने पूर्वजों की परंपरा को छोड़ दिया, जिसके कारण लगातार समस्याएं बढ़ रही है। एक बार फिर हमकों इस दिशा में सार्थक प्रयास करना होगा ताकि प्रकृति अपने मूल स्वरूप में आकर मानवता के लिए वरदान साबित हो। उन्होंने कहा कि हम सब मिलकर जो स्थान रिक्त है और जहां वृक्षारोपण कियाजा सकता है, ऐसे स्थानों पर वृक्षारोपण करें। केवल वृक्षारोपण ही नहीं उन वृक्षों को संवर्धित और संरक्षित भी करें ताकि वह हमारे लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके। इसी व्यवस्था को हरेला पर्व संपादित करने की प्रेरणा देता है।
हिन्दुस्थान समाचार / राम प्रताप मिश्र