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राजीव कुमार ‘राज‘
भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीन एवं सर्वाधिक समृद्ध संस्कृति है। यद्यपि विश्व में सभी धर्मों एवं संस्कृतियों में नारी को उच्च स्थान दिया गया है फिर भी अन्य देशों की तुलना में भारत में पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन में ‘नारी’ की स्थिति अत्यंत गौरवप्रद है। ‘नारी’ की स्थिति से किसी देश और समाज के सांस्कृतिक और बौद्धिक स्तर का पता चलता है। जिस देश में धर्म, समाज और पुरुष के नियमों में नारी को बांधकर रखा जाता है उस देश और समाज की स्थिति बदतर मानी जाती है। ‘नारी’ सम्पूर्ण मानवता की भी जन्मदात्री है क्योंकि मानवता के आधार के रूप में प्रतिष्ठित सम्पूर्ण सदगुणों की वही जननी है। संसार को आगे चलाने के लिए ‘नारी’ का आदर्श होना अत्यंत आवश्यक है।
‘अर्थववेद’ में कहा गया है -‘यस्य नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:‘ अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं। यही कारण है कि भारत में प्राचीन काल से ही नर का यह प्रयास रहा कि वह ‘नारी’ की गरिमा को अक्षुण बनाए रखे। वह जानता है कि यदि दवाया-सताया ना जाए और समान रूप से विकसित होने का अवसर प्राप्त हो तो मानवीय सत्ता के दोनों पक्ष (नर और नारी) समान रूप से समुन्नत होंगे। यद्यपि प्राकृतिक रूप से नर और नारी के मध्य कुछ शारीरिक और मानसिक भिन्नताएं हैंI किन्तु यह केवल एक-दूसरे के पक्ष की कमी को पूरा करने के लिए हैं। इसके कारण किसी पक्ष को छोटा या बड़ा नहीं ठहराया जा सकता। ‘शतपथ ब्राह्मण’ में कहा गया है कि ‘नारी’, नर की आत्मा का आधा भाग है’ अर्थात दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। नारी की संरचना उदारता, करुणा, ममता, श्रद्धा, सेवा जैसे महान आध्यात्मिक तत्वों की बहुलता सहित हुई है जिसके कारण उसे देवी की संज्ञा दी गई है। यही कारण है की प्राचीन काल से लेकर कुछ वर्ष पहले तक भारत में नारी के नाम के साथ ‘देवी’ शब्द जोड़ने का प्रचलन था, जिससे नारी सत्ता की गरिमा का सहज बोध होता था। किन्तु आज यह आधुनिकता की भेंट चढ़ गया है।
ऐतिहासिक दृष्टि से, प्रत्येक कालखंड में प्राचीन काल से लेकर, मध्यकाल होते हुए आधुनिक काल तक भारत में एक लम्बी श्रंखला के रूप में महान विदूषी नारियाँ अपनी विशेषताओं के कारण विश्वविख्यात रही हैंI यदि हम वर्तमान समय की ‘नारी’ की बात करें तो ‘आज की नारी’ हर क्षेत्र में अपना सर्वोच्च दे रही है। आज प्रशासन, शिक्षा, साहित्य, संगीत, कला, विज्ञान, चिकित्सा, कृषि, व्यवसाय, राजनीति, खेल, मीडिया और युद्ध सहित विविध विधाओं में अपनी कुशलता एवं गुणवत्ता सिद्ध करते हुए, प्रत्येक प्राप्त दायित्व एवं पद को संभालकर उसे सुशोभित कर रही है। परिवार व कैरियर, दोनों के मध्य तालमेल बैठाती आज की नारी से हर क्षेत्र प्रकाशवान हो रहा है। परंपरागत रूप से प्राप्त माँ, बहिन, बेटी, गृहणी, पत्नी, साध्वी आदि आयामों के साथ ही भाभी, सखी और शिक्षिका जैसे नए आयाम इसके साथ और जुड़े हैं।
निश्चित रूप से नारी ही संस्कृति की सच्ची संवाहिका का होती है। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में अचार-विचार, रीति-रिवाज, खान-पान, आध्यात्मिकता, मानवीय मूल्य, संस्कार, पहनावा, अच्छी आदतें आदि नारी के माध्यम से ही हस्तांतरित होते हैं। विरासत से सीखी-समझी, संस्कारों का अद्भुत ढंग से अनुपालन करने वाली अनेक सुशील और उच्च पदों पर आसीन नारियों को हम आज विविध स्थानों पर देख सकते हैं; उनसे आदर्श ग्रहण कर सकते हैं।
इसके साथ ही यत्र-तत्र ऐसी नारियों की भी कमी नहीं है जो विदेशी संस्कृति का अंधानुकरण करते हुए, पतित होती हुई, अपनी संस्कृति का हनन करने पर तुली हुई हैं। पाश्चात्य संस्कृति के मोहपाश में अपना विवेक खो बैठीं यह तथाकथित आधुनिक नारियां समस्त नारी लोक में कलंकित हैं। जैसे–मेरठ की मुस्कान, गढ़वा (झारखंड) की सुनीता देवी, गिरीहीड की सोनिया खातून, अलवर (राजस्थान) की अनीता राज, मेरठ की कविता राज और इंदौर की सोनम रघुवंशी इत्यादि। जिन्होंने अपने पति को मारने में किसी गैर-मर्द यानी प्रेमी या अन्य का सहारा लिया। यदि हम अपुष्ट आंकड़ों की बात करें तो प्रतिवर्ष देशभर में औसतन 225 पतियों की हत्या, उनकी पत्नियों द्वारा कर दी जाती है। परिणामस्वरूप आज का युवा ‘विवाह’ नामक पवित्र संस्था को शंका की दृष्टि से देखने लगा हैI उसके अंतःकरण में एक अनजाना-सा भय व्याप्त रहने लगा है। दुर्भाग्य से नारी का यह रूप देश के उच्च संभ्रांत परिवारों से लेकर मध्य एवं निम्न वर्गीय परिवारों में भी देखने को मिल रहा हैI यह आधुनिक नारी की, स्वयं की उपादेयता पर आज एक बड़ा प्रश्न चिह्न है।
अंत में, ‘नारी‘ शब्द में इतनी ऊर्जा है कि इसका उच्चारण मात्र ही मन-मस्तिष्क को झंकृत कर देता है। मातृत्व का गौरव प्राप्त इसकी अनूठी प्राकृतिक रचना अपने लाल रक्त को श्वेत दूध के रूप में बदलकर परिपुष्ट करने की है। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में ‘नर’ की तुलना में तत्त्व दर्शियों ने ‘नारी’ को अत्यंत उच्च स्थान दिया है। इतिहास-पुराणों का प्रत्येक पृष्ठ इसका साक्षी है। आज का युग परिवर्तन का युग है। अतः नारी की दशा एवं दिशा में भी बहुत अधिक परिवर्तन हुआ है। आज आधुनिक शिक्षा एवं विदेशी संस्कृति के बहकावे में आकर नारी को अपने ‘नारीत्व के बलिदान’ से बचना होगा। आज यदि मानव और मानवता का अस्तित्व बचाना है तो पूर्व की भांति केंद्रीय भूमिका में नारी की गौरवमयी प्रतिष्ठा पुनः स्थापित करनी होगी और इसके लिए नारी को ही स्वयं आगे आकर, इस चुनौती को सहर्ष स्वीकार करना होगा अर्थात भारतीय नारी को आज के चुनौतीपूर्ण वातावरण में अपनी सभ्यता और संस्कृति की परिधि में, समाधान की ओर अग्रसर होना होगा। और यही भारतीय संस्कृति तथा समय की मांग हैI
(लेखख, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
हिन्दुस्थान समाचार / निमित कुमार जायसवाल