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- प्रहलाद सबनानी
अमेरिकी में डोनाल्ड ट्रम्प के दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के साथ ही दुनिया के लगभग समस्त देशों के साथ अमेरिका द्वारा टैरिफ युद्ध की घोषणा कर दी गई है। किंतु अमेरिका विभिन्न देशों से होने वाले आयात पर भारी भरकम टैरिफ लगाकर एवं टैरिफ की दरों में बार-बार परिवर्तन कर इस टैरिफ युद्ध को किस दिशा में ले जाना चाह रहा है, इस सम्बंध में अब तक स्पष्टता का पूर्ण अभाव दिखाई देता है। इसे यदि भारत के संदर्भ में देखें तो ट्रम्प द्वारा कई बार यह घोषणा की गई है कि वह भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौता शीघ्र ही सम्पन्न करेगा। इसके लिए भारतीय प्रतिनिधिमंडल अमेरिका गया भी और निर्धारित समय सीमा से अधिक समय तक वहां रहकर द्विपक्षीय समझौते के अंतिम रूप को अमेरिकी राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करने में भी सफल रहा, परंतु अभी तक अमेरिका द्वारा इस द्विपक्षीय व्यापार समझौते की घोषणा नहीं की जा सकी है।
दूसरी ओर इस बीच अमेरिका ने कई देशों के विरुद्ध टैरिफ की दरों को बढ़ा दिया है। विशेष रूप से जापान एवं दक्षिणी कोरिया से अमेरिका को आयात होने वाली वस्तुओं पर 1 अगस्त 2025 से 25 प्रतिशत की दर से टैरिफ लगाया जाएगा। इसी प्रकार, 12 अन्य देशों से अमेरिका में होने वाले आयात पर भी टैरिफ की बढ़ी हुई नई दरें लागू किये जाने का प्रस्ताव किया गया है। इस सम्बंध में अमेरिकी राष्ट्रपति ने इन 14 देशों के राष्ट्राध्यक्षों को पत्र भी लिखा है। फिलहाल भारत इस सूची में शामिल नहीं है। पूर्व में अमेरिका द्वारा चीन से आयात होने वाले उत्पादों पर भारी भरकम टैरिफ की घोषणा की गई थी। चीन ने भी अमेरिका से होने वाली आयातित वस्तुओं पर लगभग उसी दर पर टैरिफ लागू करने की घोषणा कर दी थी। साथ ही, चीन ने विभिन्न देशों को दुर्लभ खनिज पदार्थों (रेयर अर्थ मिनरल) के निर्यात पर रोक लगा दी थी।
कहना होगा कि अमेरिका में चीन के इस निर्णय का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था। जिसके दबाव में अमेरिका ने चीन के साथ व्यापार समझौता करते हुए चीन से आयात होने वाली विभिन्न वस्तुओं पर टैरिफ की दरों को तुरंत कम कर दिया। अमेरिका द्वारा इसी प्रकार का एक द्विपक्षीय व्यापार समझौता ब्रिटेन के साथ भी सम्पन्न किया जा चुका है। पूर्व में, ट्रम्प प्रशासन ने 90 दिवस की अवधि में 90 देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते करने की बात कही थी तथा 90 दिवस की समयावधि 9 जुलाई को समाप्त होने के पश्चात भी केवल दो देशों ब्रिटेन एवं चीन के साथ ही द्विपक्षीय व्यापार समझौता सम्पन्न हो सका है।
वैश्विक स्तर पर अमेरिका द्वारा छेड़े गए इस टैरिफ युद्ध से निपटने के लिए भारत एक विशेष रणनीति के अंतर्गत कार्य करता हुआ दिखाई दे रहा है। भारत ने वैश्विक मंच पर न तो अमेरिका के टैरिफ की दरों में वृद्धि सम्बंधी निर्णयों की आलोचना की है और न ही भारत में अमेरिका से आयातित वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाने की धमकी दी है। बल्कि, भारत ने तो अमेरिका से आयात होने वाली कुछ विशेष वस्तुओं पर टैरिफ को कम कर दिया है।
दरअसल, भारत इस समय विकास के उस चक्र में पहुंच गया है जहां पर भारत को अपना पूरा ध्यान आर्थिक क्षेत्र को आगे बढ़ाने पर केंद्रित करने की आवश्यकता है। भारत को यदि वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में शामिल करना है तो आगे आने वाले लगभग 20 वर्षों तक लगातार लगभग 8 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर को बनाए रखना अति आवश्यक है। इसलिए भारत एक विशेष रणनीति के अंतर्गत अपने आर्थिक विकास पर अपना ध्यान केंद्रित करता हुआ दिखाई दे रहा है। भारत के रूस के साथ भी अच्छे सम्बंध हैं तो अमेरिका से भी अपने सम्बन्धों को सामान्य बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील है। भारत के इजरायल के साथ भी अच्छे सम्बंध हैं तो ईरान के साथ भी भारत के व्यापारिक सम्बंध हैं। रूस एवं यूक्रेन युद्ध के बीच भी भारत ने दोनों देशों के साथ अपना संतुलित व्यवहार बनाए रखा है। इसी कड़ी में, चीन के साथ भी आवश्यकता अनुसार बातचीत का दौर जारी रखा जा रहा है, बावजूद इसके कि कई बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीन अप्रत्यक्ष रूप से भारत के विरुद्ध कार्य करता हुआ दिखाई देता है।
अभी हाल ही में चीन ने भारत को दुर्लभ खनिज पदार्थों (रेयर अर्थ मिनरल) की आपूर्ति पूर्णत: रोक दी है। साथ ही, मानसून का मौसम भारत में प्रारम्भ हो चुका है एवं भारत में कृषि क्षेत्र में गतिविधियां अपने चरम स्तर पर पहुंच गई हैं, ऐसे अत्यंत महत्वपूर्ण समय पर चीन द्वारा भारत को उर्वरकों की आपूर्ति पर परेशनियां खड़ी की जा रही हैं। चीन द्वारा समय-समय पर भारत के लिए खड़ी की जा रही विभिन्न समस्याओं के हल हेतु भारत ने विश्व के पूर्वी देशों एवं विश्व के दक्षिणी भाग में स्थित देशों की ओर रूख किया है। अभी हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने घाना, नामीबिया, अर्जेंटीना, ब्राजील, त्रिनिदाद एवं टोबैगो जैसे देशों की यात्रा इस उद्देश्य से सम्पन्न की है ताकि दुर्लभ खनिज पदार्थों की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। इन देशों में दुर्लभ खनिज पदार्थ पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।
भारत में 140 करोड़ नागरिकों का विशाल बाजार उपलब्ध है, जिसे अमेरिका एवं चीन सहित विश्व का कोई भी देश नजरअन्दाज नहीं कर सकता है। यदि अमेरिका एवं चीन भारत के साथ अपने सम्बन्धों को किसी भी कारण से बिगाड़ने का प्रयास करते हैं तो लम्बी अवधि में इसका नुकसान इन्हीं देशों को अधिक है, क्योंकि ऐसी स्थिति में वे भारत के विशाल बाजार से वंचित हो जाएंगे। वैसे भारत आज फार्मा, ऑटो, कृषि, इंजीनीयरिंग, टेक्नॉलोजी, स्पेस तकनीकी, सूचना प्रौद्योगिकी, आदि क्षेत्रों में बहुत आगे निकल चुका है। देखा जाए तो आज भारत विकास के उस पड़ाव पर पहुंच चुका है, जिसकी अनदेखी विश्व का कोई भी देश नहीं कर सकता।
पूरे विश्व में आज केवल भारत ही युवा देश की श्रेणी में गिना जा रहा है क्योंकि भारत की 65 प्रतिशत से अधिक आबादी 35 वर्ष से कम आयुवर्ग में हैं तथा लगभग 40 प्रतिशत आबादी 15 से 35 वर्ष के आयुवर्ग में शामिल हैं। अतः एक तरह से भारत आज विश्व के लिए श्रम का आपूर्ति केंद्र बन गया है। लम्बे समय से रूस एवं यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के बाद जब इन देशों में आधारभूत सुविधाओं को पुनर्विकसित करने का कार्य प्रारम्भ होगा तो इन्हें भारतीय श्रमिकों एवं इंजीनियरों की आवश्यकता पड़ेगी ही। एक अनुमान के अनुसार अकेले रूस द्वारा में लगभग 10 लाख भारतीयों की मांग की जा सकती है। इसी प्रकार, इजरायल एवं हमास तथा ईरान के बीच युद्ध की समाप्ति के पश्चात इन देशों में भी बुनियादी ढांचे को पुनः मजबूत करने का कार्य जब प्रारम्भ होगा तो इन देशों को भी भारतीय नागरिकों की आवश्यकता पड़ेगी। इजरायल, जापान सिंगापुर एवं ताईवान आदि देशों द्वारा तो पूर्व में भी भारतीय इंजिनीयरों की मांग की जाती रही है। अमेरिका, ब्रिटेन एवं अन्य यूरोपीय देशों में तो डॉक्टर एवं इंजीनियरों की भारी मांग पूर्व से ही बनी हुई है।
अतः आज भारत पूरे विश्व में डॉक्टर, इंजीनियर तथा श्रमिक उपलब्ध कराने के मामले बहुत आगे है। भारत की इस ताकत की अनदेखी आज कोई भी देश नहीं कर सकता है। फिर भी अमेरिका के साथ अभी हम टैरिफ को लेकर इंतजार की स्थिति में है। यदि वह भारतीय संदर्भों को नजरअंदाज करता है, तो यह मान लीजिए कि उसे भविष्य में बड़ा नुकसान होना तय है।
(लेखक, आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं।)
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी