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श्रीनगर, 10 जुलाई (हि.स.)। जम्मू-कश्मीर के सांस्कृतिक समुदाय ने मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से विनम्र किन्तु सशक्त अपील की है कि वे सांस्कृतिक क्षेत्र के पुनरुद्धार के लिए ठोस और दूरदर्शी कदम उठाँ। एक स्पष्ट सांस्कृतिक पुनरुद्धार नीति तैयार करके संस्थानों को पुनर्जीवित करके, अकादमियों और कलाकार संघों को सशक्त बनाकर, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समारोहों में जम्मू-कश्मीर के कलाकारों का उचित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करके और कला एवं विरासत संरक्षण के लिए समर्पित धनराशि आवंटित करके।
उन्होंने कहा कि गहरी चिंता और अटूट आशा के साथ हम जम्मू-कश्मीर के संपूर्ण सांस्कृतिक समुदाय की ओर से मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष डॉ. फारूक अब्दुल्ला से यह तत्काल और भावनात्मक अपील करते हैं जिनका कला, संगीत और संस्कृति के प्रति आजीवन सम्मान और समर्थन रहा है।
एक दशक से भी अधिक समय से जम्मू-कश्मीर में सांस्कृतिक क्षेत्र को घोर उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है। कभी जीवंत रहे संस्थान अब मुरझा गए हैं रचनात्मक पहलों के लिए धन की कमी हो गई है और हज़ारों समर्पित कलाकार जिनमें संगीतकार, गायक, लेखक, लोक कलाकार, दृश्य कलाकार, तकनीशियन और फिल्म निर्माता शामिल हैं अपने काम और आजीविका को बनाए रखने के लिए समर्थन मान्यता या मंच के बिना रह गए हैं।
ये सांस्कृतिक पेशेवर जो कभी कश्मीरी पहचान शांति और आध्यात्मिक विरासत के दूत थे अब अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
कला और संस्कृति विलासिता नहीं हैं। ये किसी समाज के भावनात्मक आध्यात्मिक और बौद्धिक कल्याण के लिए आवश्यक हैं। जम्मू और कश्मीर जो अद्वितीय सांस्कृतिक विविधता और समृद्ध कलात्मक विरासत से संपन्न है रहस्यवादी सूफी परंपराओं और आत्मा को झकझोर देने वाले लोक संगीत से लेकर सूक्ष्म शास्त्रीय प्रदर्शनों और कहानी कहने तक अपने खजानों को गुमनामी में खोते हुए देख रहा है। हमारे पारंपरिक कला रूपों स्थानीय भाषाओं रीति-रिवाजों और स्वदेशी सौंदर्यशास्त्र का लुप्त होना न केवल एक सांस्कृतिक क्षति है बल्कि एक सभ्यतागत संकट भी है।
बार-बार ज्ञापनों और सार्वजनिक अपीलों के बावजूद हमारी चिंताओं पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है। जहाँ पर्यटन, उद्योग और बुनियादी ढाँचे जैसे अन्य क्षेत्रों को नियोजन और नीति में जगह मिल गई है वहीं संस्कृति को अभी भी एक गौण विषय माना जाता है, जिसके लिए कोई व्यापक दृष्टिकोण समर्पित बजट या प्रशासनिक ध्यान नहीं दिया जाता। जेके कला, संस्कृति और भाषा अकादमी जेके संस्कृति विभाग, आकाशवाणी श्रीनगर, दूरदर्शन केंद्र श्रीनगर जैसे संस्थानों के पुनरुद्धार और लोक सूफी और शास्त्रीय कलाओं को शामिल करने वाली एक मजबूत सांस्कृतिक नीति के बिना जम्मू और कश्मीर की आत्मा ही खतरे में है।
हिन्दुस्थान समाचार / राधा पंडिता