शिव को साधने का माह है सावन
प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल सावन का महीना भारतीय जीवन एवं लोक परंपरा में अत्यंत पवित्र एवं उल्लासकारी है। यह लोक मंगल का आधार अन्नोत्पादन का आधार माह तो है ही लोकोत्तर की प्राप्ति एवं परम लौकिक देवता देवों के देव महादेव की उपासना का भी महीना है। वर्षा ऋ
प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल


प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल

सावन का महीना भारतीय जीवन एवं लोक परंपरा में अत्यंत पवित्र एवं उल्लासकारी है। यह लोक मंगल का आधार अन्नोत्पादन का आधार माह तो है ही लोकोत्तर की प्राप्ति एवं परम लौकिक देवता देवों के देव महादेव की उपासना का भी महीना है। वर्षा ऋतु का मध्य काल जब हिन्दू धर्मशास्त्र यात्रा का निषेध करते हैं यहां तक कि बौद्ध मत भी इस महीने में वर्षावास का आदेश देता है। उस काल विशेष में गेरुआ या केसरिया कपड़े पहने,कंधे पर कांवर लिए पवित्र नदी या तालाब से जल भरकर शिव का अभिषेक करने के लिए आकुल नर नारी हर शिवालय की ओर दिखने लगते हैं। यह प्रत्येक व्यक्ति के मन में सवाल तो खड़ा करता ही हैं कि कारण क्या है कि इस महीने में धान की रोपाई और निराई का काम छोड़कर कृषक समाज नंगे पांव निकल पड़ता है बोल-बम बोल-बम। का निवाद करते हुए। एक ऐसा दृश्य जिसमें कंटक, कंकड़, कीचड़ और बरसात ये सब भी मानो स्वागती हों इस शिव साधना में बौराए हुए जन समूह के।

सावन को शिव का प्रिय मास माना जाता है। अर्धनारीश्वर को, प्रकृति का श्रेष्ठ श्रृंगार करने वाला यह महीना अपनी नैसर्गिक हरीतिमा के कारण प्रिय तो है ही, इसलिए भी अत्यंत प्रिय है कि सती के दाह के बाद उन्मत्त क्रुद्ध योगी और वैरागी शिव को पार्वती ने इसी महीने में तपपूर्वक पाया था। कहा जाता है कि श्रावण भगवान शिव का अत्यंत प्रिय महीना होता है। इसके पीछे की मान्यता यह है कि प्रजापति दक्ष की पुत्री माता सती ने अपने जीवन को त्याग दिया था और कई वर्षों तक शापित जीवन व्यतीत किया। इसके बाद उन्होंने पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए पूरे श्रावण महीने में कठोर तप किया, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनकी मनोकामना पूरी की। अपनी भार्या से पुनर्मिलन के कारण भगवान शिव को श्रावण का यह महीना अत्यंत प्रिय है।

श्रावण मास में ही महायोगी शिव का महादेवी से साक्षात्कार हुआ था। इसी माह में योगनिद्रा त्याग कर महायोगी धूर्जटि शिव महागौरी के तप के प्रभाव से नटराज बने थे। यही कारण है कि प्रकृति भी सावनके महीने में नर्तन करती है। अपने चारों ओर हरितिमा का आवरण लपेट विरागी मन में भी राग उत्पन्न करती हैं। धान में रस आता है और इस रस का परिपाक होकर वह धान्य बनता है। इसीलिए शिव को भाता है। यह महीना रस के परिपाक का महीना है इसलिए भी सावन रसेश्वर शिव को प्रिय है।

हिन्दू मन मिथकों को नहीं मानता है। वह तो भगवान का भी लौकिकीकरण करता है। इसीलिए हर ऋतु और हर माह का कोई न कोई देवता है। श्रावण के देवता शिव हैं। त्रिपथगा गंगा के स्रोत हैं, अर्थात जल के स्रोत हैं, हिम से भी शीतल है पर अंदर छिपा रखा है कालकूट हलाहल। इस हलाहल के कारण शिव को चंद्रमा की शीतलता भी कम पड़ती है। निरंतर प्रवाहित जल धारा से ही सुख मिलता है और जलधार चढ़ाने वालों पर उनका प्रसन्न होना स्वाभाविक है।

यही कारण है कि सावन में जब स्वयं प्रकृति आदिपुरुष महायोगी विषपायी वैरागी महादेव का जलधारा से अभिषेक करती है तो वैरागी भोले नाथ भी रसासिक्त हो जाते हैं। यह भी मान्यता है कि श्रावण के महीने में भगवान शिव धरती पर अपने ससुराल आए थे, जहाँ उनका अभिषेक कर स्वागत हुआ था। इसलिए इस माह में शिव अभिषेक का विशेष महत्व बताया गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, श्रावण मास में ही समुद्र मंथन हुआ था, जिसमें निकले हलाहल विष को भगवान शिव ने ग्रहण किया, जिसके चलते उन्हें नीलकंठ का नाम मिला। इस प्रकार उन्होंने सृष्टि को उस विष से बचाया। सभी देवताओं ने विषाग्नि को शांत करने के लिए उन पर जल डाला, इसी कारण शिव अभिषेक में जल का विशेष स्थान है।

इस रसबोध का कारण मूल प्रकृति आदि शक्ति देवी पार्वती का अपर्णा रूप है। जब हरे भरे सावन में देवी ने शिव के लिए पत्तों का भी त्याग कर दिया और तब शिव को आना ही पड़ा। भगवान शंकर दो अतियों के बीच के देवता है। क्रोधातिरेक में वे संपूर्ण संसार का संहार करते हैं। तो करुणातिरेक में भोले भंडारी भस्मासुर भी बना देते हैं। इन दोनों अतियों के बीच जो कल्याण का भाव मन में लेकर धूनी रमाता है वही शिव है। सावन शिव से शोभन के सायुज्य का महीना है। शिव और शोभन अर्थात आदि पुरुष और मूल प्रकृति के मिलन का महीना है। इसलिए इस महीने में आकुल-माकुल हो वैरागी बन जाना बौराया हुआ वैरागी बन जाना सहज है।

सावन सत् के भास्वर रूप शिव और सौंदर्य की एकाकारिता का महीना है। इसलिए इस महीने में मन का वैरागी हो जाना और जन का बौराया हुआ बैरागी बन जाना सहज है। सावन अपनी फुहारों से प्रकृति को संवारता है। सत्य को शिवमय बनाता है शिव और सुंदर दोनों को सरस करता है।इसीलिए सावन शिव को प्रिय है। अपर्णा को भी प्रिय है क्योंकि इसी महीने में महागौरी कर्पुरगौरांग शिव को प्राप्त करती है। इसलिए सावन अपर्णा व अपर्णेश दोनों का महीना है। यह अपर्णेश में पर्णोदय का मास है। यह पर्णोदय है मूल प्रकृति में सृष्टि के विस्तार का अव्यक्त प्रजातंतु को व्यक्त रूप देने का।

धर्मशास्त्रीय मान्यता यह भी है कि वर्षा ऋतु के चौमासे (चार माह) में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं, और हरि के शयन से हरि के जागरण या प्रबोधन तक पूरी सृष्टि भगवान शिव के अधीन हो जाती है। अतः चौमासे में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए मानव जाति कई प्रकार के धार्मिक कार्य, दान, उपवास आदि करती है। पर विशेष है कीचड़ से लथपथ कंटकाकीर्ण ऊबड़ खाबड़ रास्तों से बोल-बम बोल-बम का निनाद करते हुए भीगते हुए जलधार से।

(लेखक, तुलनात्मक धर्म दर्शन के आचार्य एवं पूर्व कुलगुरु हैं।)

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हिन्दुस्थान समाचार / मुकुंद