हाई कोर्ट ने मेरठ मस्जिद के पास जबरन ’हनुमान चालीसा’ पढ़ने के आरोपितों को दी जमानत
इलाहाबाद हाईकाेर्ट


प्रयागराज, 5 जून (हि.स.)। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मेरठ मस्जिद के पास जबरन हनुमान चालीसा पाठ करने के मामले में गिरफ्तार अखिल भारतीय हिंदू सुरक्षा समिति के एक नेता सहित दो लोगों की जमानत मंजूर कर ली है। आरोपितों को इस साल मार्च में गिरफ्तार किया गया था।

न्यायमूर्ति राज बीर सिंह की पीठ ने गुरुवार काे मस्जिद के पास जबरन हनुमान चालीसा पाठ करने के मामले में गिरफ्तार सचिन सिरोही और संजय समरवाल को जमानत दे दी है। इन लोगों के खिलाफ मेरठ पुलिस ने धारा 191(2) दंगा, 196 (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना और सद्भाव बनाए रखने के लिए हानिकारक कार्य करना), 197 (राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक आरोप, दावे) बीएनएस के तहत मामला दर्ज किया है।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपितों ने अपने साथियों के साथ एक मस्जिद के बाहर विरोध प्रदर्शन किया, धर्म विरोधी नारे लगाए और उसके बाद मस्जिद के पास हनुमान चालीसा का पाठ किया। जिससे धर्म के आधार पर दुश्मनी और नफरत को बढ़ावा मिला। उन पर मस्जिद को गिराने की धमकी देने का भी आरोप है, जिसके कारण क्षेत्र में तनाव फैल गया था।

काेर्ट में मामले में जमानत की मांग करते हुए आरोपितों के वकील ने कहा कि आवेदकों के खिलाफ लगाए गए आरोप पूरी तरह झूठे हैं और दावा किया कि उन्हें राजनीतिक कारणों से इस मामले में फंसाया गया है। यह भी तर्क दिया गया कि एफआईआर की विषय-वस्तु और गवाहों के बयान आवेदकों के खिलाफ कोई विश्वसनीय साक्ष्य नहीं देते हैं। इसलिए यह प्रार्थना की गई कि उन्हें जमानत दी जाए।

दूसरी ओर सरकारी वकील ने उनकी जमानत याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया कि सद्भाव बिगाड़ने के लिए आवेदकों ने एक धार्मिक स्थल पर ’हनुमान चालीसा’ का पाठ किया और इस तरह धर्म के आधार पर दुश्मनी को बढ़ावा दिया। हालांकि, पीठ ने इसे जमानत देने के लिए उपयुक्त मामला पाया, क्योंकि उसने कहा कि आरोप की गंभीरता या उसके समर्थन में सामग्री की उपलब्धता ही जमानत देने से इनकार करने के लिए एकमात्र आधार नहीं हैं।

कोर्ट ने दाेनाें पक्षाें काे सुनने के बाद कहा, “यह अच्छी तरह से स्थापित है कि दोषसिद्धि से पहले के चरण में निर्दोषता की धारणा होती है। किसी व्यक्ति को हिरासत में रखने का उद्देश्य मुकदमे का सामना करने और दी जाने वाली सज़ा को भुगतने के लिए उसकी उपलब्धता सुनिश्चित करना है। हिरासत को दंडात्मक या निवारक नहीं माना जाता है।“ इसके बाद काेर्ट ने दाे आराेपित की

जमानत मंजूर कर ली।

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हिन्दुस्थान समाचार / रामानंद पांडे