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नई दिल्ली, 26 जून (हि.स.)। लोकतंत्र रक्षक सेनानियों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बहुत से राजनेता, छात्रनेता और स्वयंसेवक शामिल रहे, जिन्होंने आपातकाल का पुरजोर विरोध किया और इसमें अपनी अहम भूमिका निभाई। इसको लेकर उन पर जमकर अत्याचार किए गए। इन्हीं में से कुछ प्रमुख लोकतंत्र रक्षक सेनानियों की आपबीती उन्हीं की जुबानी प्रस्तुत है-
मेरठ निवासी 72 वर्षीय लोकतंत्र रक्षक सेनानी, छात्रनेता और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय सदस्य अरुण वशिष्ठ ने कहा कि आपातकाल का दाैर बहुत ही पीड़ादायी और यातना से भरा था। यह जुल्म व ज्यादती की इंतहा थी। इंदिरा गांधी ने सत्ता पर काबिज रहने के लिए पूरे विपक्ष काे कुचलने के लिए देश में आपातकाल लगाया था। इंदिरा ने दमनकारी, तानाशाही से राजनीतिक विरोधियों और आपातकाल की खिलाफत करने वालों को कुचलने के लिए यह फासिस्टवादी तरीका अपनाया था। जाे दुनिया के किसी भी बडे़ लाेकतंत्र में न कभी हुआ और न कभी हाेगा।
इसको याद कर आज भी अरुण जी को उस 'त्रासदी' की टीस गहरे तक महसूस होती है। जब बिना अपराध किए और सफाई का मौका दिए लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था। रातों-रात पुलिसकर्मी विपक्ष के लोगों को घरों से पकड़-पकड़ कर ले गए थे और जेलों में डाल दिया था। 25-26 जून 1975 की रात लोकतंत्र का यह 'काला अध्याय' शुरू हुआ था। जब किसी भारतीय के लिए अपनी ही चुनी सरकार का यह कदम किसी 'त्रासदी' से कम नहीं लग रहा था। उन्होंने बताया कि ना कोई अपील, ना कोई दलील। किसी काे भी गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया जाता था।
अरुण जी ने बताया कि पुलिस और प्रशासन के अत्याचार रुह कंपाने वाले थे। ना ठीक से भोजन दिया जाता था और ना ही कोई सुनवाई थी। ना किसी से उनको मिलने का अवसर दिया जाता था। ना ही परिवार के लोगों का ही उनसे मिलना आसान था। इसके लिए जिलाधिकारी से अनुमति लेनी होती थी क्योंकि उन पर मीसा भी लगाया गया था। उन्होंने बताया कि अन्य साथियों के परिवार लोगों के जेल में आने पर वह बहुत भावुक हो जाते थे। इससे उन्हें परिवार के दर्द और अपनी जिम्मेदारी का एहसास होता था लेकिन उनकी संघ के स्वयंसेवक के रूप में दृढ़ इच्छा शक्ति उन्हें अपने मुकाम के लिए तैयार रहने को बोलती थी।
उन्होंने कहा कि इस लडाई में माता-पिता का आशीर्वाद बहुत काम आया। उनकी माता जयंती देवी शिक्षिका थीं, जिन्हाेंने उन्हें कभी भी कमजाेर और संस्कार से डिगने नहीं दिया। तत्कालीन सरकार की ज्यादती का अंदाजा इस बात से आसानी ओ लगाया जा सकता है कि उनकाे अपनी दादी के अंतिम संस्कार में शामिल हाेने के लिए स्थानीय प्रशासन से ताे अनुमति तो मिल गई थी, लेकिन तत्कालीन उप्र सरकार ने उनकी पैराेल काे रद्द कर दिया था।
उन्होंने बताया कि 25-26 जून 1975 की रात काे बिना कुछ किए ही उन पर मेरठ शहर के अलग-अलग थानों में तीन मुकदमे दर्ज किए गए थे। उन पर पहला मुकदमा सिविल लाइंस थाने में दर्ज किया था, इसमें लिखा गया था कि वह शंकर आश्रम में संघ की बैठक में शामिल थे। दूसरा मुकदमा मेरठ कॉलेज में छात्रों को आपातकाल के विरोध में सभा कर उकसाने-भड़काने को लेकर दर्ज किया गया था। जबकि तीसरा मुकदमा दिल्ली गेट थाने में दर्ज किया गया था, इसमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने रामलीला मैदान में पूर्व शिक्षा मंत्री बाबू कैलाश और राधेश्याम के नेतृत्व में जनसभा की थी।
मेरठ कॉलेज में कानून की अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रहे और छात्र संघ के महामंत्री के रूप में अपनी जिम्मेदारी को निभाने के लिए 23 वर्षीय छात्र अरुण वशिष्ठ भी आपातकाल के खिलाफ आंदोलन में कूद पड़े। वह इस आंदोलन में पूरी तरह सक्रिय हो गए थे और संघ के स्वयंसेवक के रूप में उन्होंने अपनी भूमिका का पूरी जिम्मेदारी के साथ निर्वहन किया। वह विभाग प्रचारक ज्योति और नगर प्रचारक रामलाल जी के नेतृत्व में युवाओं की टोली को संदेश देने और साहित्य देने का काम कर रहे थे।
अरुण जी ने बताया कि देश में आपातकाल लगाए जाने और उन पर मुकदमे दर्ज हाेने के बाद उन्हाेंने मेरठ कॉलेज में सभा की, जिसमें वे लोकनायक जयप्रकाश को कॉलेज में लेकर आए थे। इसके बाद 5 जुलाई को उनके छिपी टैंक स्थित घर की कुर्की कर ली गई। पुलिसकर्मी इसमें उनके घर की झाड़ू तक उठा ले गए थे। इसके बाद भी उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया और भूमिगत होकर आपातकाल के विरोध में काम करते रहे। क्याेंकि संघ का उन्हें निर्देश था। उस समय अरुण जी के पिता राम प्रकाश वशिष्ठ दिल्ली में केंद्रीय विद्यालय में प्रधानाचार्य के पद पर कार्य थे, जब उनके पिता के दिल्ली आवास की कुर्की की नौबत आई तो फिर उन्होंने 16 जुलाई 1975 काे आत्मसमर्पण कर दिया और मेरठ जेल भेज दिए गए।
करीब साढ़े पांच महीने जेल में रहने के बाद वे जमानत पर रिहा हुए और फिर से संघ के निर्देश पर आपातकाल के खिलाफ सत्याग्रह शुरू किया और 27 जनवरी 1976 काे फिर से दस लाेगाें के साथ गिरफ्तार कर लिए गए और मेरठ जेल भेज दिए गए। जेल के अंदर उन पर बहुत अत्याचार किए गए। इसके बाद अरुण जी 08 मार्च 1977 काे रिहा हुए। इस तरह से कुल 21 महीने की इमरजेंसी में वे 19 महीने जेल में रहे थे।
उन्हाेंने बताया कि आपातकाल के विराेध में संघ ने देशव्यापी सत्याग्रह शुरू कर दिया था। लाेग समूह में जेल जा रहे थे। संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और तत्कालीन सरसंघचालक बालासाहब देवरस को गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया गया था। संघ के सत्याग्रह में देशभर से एक लाख लाेग जेल गए थे। इससे सरकार हिल गयी और उसे आपातकाल वापस लेना पड़ा था।
अरुण जी ने बताया कि उनके साथ रामलाल जी, माेहन लाल कपूर, जगत सिंह, ओम प्रकाश त्यागी, किठाैर विधायक रहे शखावत हुसैन, केसी त्यागी, राजेंद्र सिंह चाैधरी- समाजवादी पार्टी, कुंवर महमूद अली, पूर्व मेयर गाजियाबाद दिनेश गर्ग और पूर्व गवर्नर सत्यपाल मलिक आदि लाेग मेरठ जेल में रहे थे।
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हिन्दुस्थान समाचार / रामानुज शर्मा