आपातकाल के 50 वर्ष : आपातकाल के खिलाफ युवाओं में था जबरदस्त आक्रोश- कृष्ण मुरारी
जयपुर, 24 जून (हि.स.)। आपातकाल में सरकार के खिलाफ आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक कृष्ण मुरारी ने बताया कि देश में आपातकाल के खिलाफ युवाओं और विद्यार्थियों में जबरदस्त आक्रोश था। मैं वर्ष 1975 कोटा में ल
कृष्ण मुरारी


जयपुर, 24 जून (हि.स.)। आपातकाल में सरकार के खिलाफ आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक कृष्ण मुरारी ने बताया कि देश में आपातकाल के खिलाफ युवाओं और विद्यार्थियों में जबरदस्त आक्रोश था। मैं वर्ष 1975 कोटा में लॉ कॉलेज से एलएलबी की पढ़ाई कर रहा था। हमारा 14 लोगों को ग्रुप था। देशभर में आपातकाल लग चुका था। आपातकाल के खिलाफ आवाज उठाने वालों को एक एक कर जेल में बंद किया जा रहा था। सरकार के दमनामत्क रवैये के चलते आग भड़कती जा रही था। मैं कॉलेज में शाखा लगाया करता था।

हमनें सत्याग्रह करने की योजना बनाई। रात में कॉलेज की दीवारों पर सरकार के खिलाफ नारे लिखे, पूरे कॉलेज की दीवारों की पुताई कर डाली। सत्याग्रह के दौरान पुलिस नहीं पहुंचे, इसके लिए टेलीफोन की लाईन काट दी। दूसरे दिन सुबह जब सभी छात्र कॉलेज पहुंचे, तो कॉलेज का नजारा देखकर चकित रह गए। सभी छात्रों के बीच आपातकाल को लेकर भाषण हुआ, पर्चे बांटे गए। वहां से छात्रों का हजूम जिला शेषन न्यायालय की तरफ बढ़ा। हम नयापुरा थाना इलाके से भीममंडी थाना इलाके में आ गए। कोर्ट परिसर में भाषण हुआ और पर्चे बांटे गए। यहां से कलेक्ट्रेट गए। सभी युवा पूरे जोश में पर्चे बांट रहे थे और परिसर में घूमते हुए जमकर नारे लगा रहे थे। यह पूरा घटनाक्रम पूरे तीन चार घंटे तक चलता रहा।

संयोग से उस दिन कोटा में गृह सचिव आया हुआ था, और पूरा पुलिस बल उधर लगा हुआ था, इसलिए हमें विरोध करने का ज्यादा मौका मिल गया। कलेक्टर कार्यालय पर हमारी गिरफ्तारी हुई। रिमांड पर लिया गया। सभी की जमकर पिटाई हुई। इस बीच सभी के सामान की तलाशी ली गई, एक मित्र ने बैग में कई सारी हिरोइन के चित्र इकट्ठे कर रखे थे, जब पुलिस ने पूछा कि यह कौन है, तब उसने जवाब दिया यह तो मेरी फ्रेंड है, यह सुनकर पुलिस वाले भी अपनी हंसी नहीं रोक पाई।

उन्होंने बताया कि हमें रेलवे मजिस्ट्रेट के यहां हथकड़ी लगाकर पैदल ही पेशी पर लाया जाता था, हम रास्ते में नारे लगाते हुए आते थे। शहर की जनता के लिए हम कौतुहल का विषय बन जाते थे। पुलिस को परेशानी होती थी। हमारी इस हरकत की वजह से हमें पेशी पर गाड़ी से लाया जाने लगा। बाद में हथकड़ी लगाने से छूट मिल गई थी, लेकिन कोर्ट में पेशी के दौरान पुलिस और दूसरे लोगों को परेशानी होती थी। इसलिए जेल परिसर में ही कोर्ट लगना शुरू हो गई थी।

उन्होंने बताया कि पुलिस ने सत्याग्रहियों को फंसाने के लिए कॉमन गवाह बना रखे थे। एक गवाह कई कई मामलों में गवाही देता था। इस बात से तंग आकर एक बार एक गवाह की जमकर धुनाई कर दी। तब गवाह ने परेशान होकर जज से कहा कि मेरी तो पिटाई कर दी मैं कहां कहां गवाही दूं। इस पर जज ने कहा कि दस जगह गवाही दोगे तो यही हाल होगा।

करीब चार महिने तक जेल में रहने के बाद व्यापारियों को तो बरी कर दिया लेकिन छात्रों को राजनीतिक लाभ मिल सकता है यह सोचकर चार माह की सजा सुना दी गई। जेल से बाहर आने के बाद भी भूमिगत रहते हुए आपातकाल के खिलाफ जंग में लगे रहे।

जेल में लगती शाखा

कृष्ण मुरारी ने बताया कि जेल में दोनों समय शाखा लगती थी। उस दौरान कोटा विभाग के विभाग प्रचारक ठाकुरदास टंडन भी जेल में बंद थे। स्वयंसेवकों के लिए जो भी सामान आता था, उसे मिल-बांटकर खाते थे। यहां तक की समाजवादियों और कम्यूनिस्टों को भी देते थे। लेकिन ये लोग अपना सामान छुपाकर रखते थे। उन्होंने बताया कि समाजवादियों और कम्यूनिस्ट यह कहते हुए हमें डराते थे कि तुम संघ वालों के चक्कर में कहां फस गए। जेल से जिंदगीभर नहीं निकल पाओगे। जेल में बंद हो जाने के बाद ये लोग बहुत दुखी रहते थे। जबकि संघ के स्वयंसेवकों में जबरदस्त उत्साह रहता था।

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हिन्दुस्थान समाचार / ईश्वर