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नई दिल्ली, 19 जून (हि.स.)। अपने आवास से नकदी मिलने के बाद चर्चा में आए पहले दिल्ली हाई कोर्ट के जज और फिलहाल इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित जांच आयोग ने अपनी रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा को हटाने की सिफारिश की है। कमेटी ने कहा है कि जिस स्टोर रूम से बड़ी मात्रा में नकदी मिली थी, उस पर जस्टिस वर्मा के परिवार का नियंत्रण था।
इस जांच कमेटी में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस जीएस संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट के जज जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थे। कमेटी की 64 पेज की रिपोर्ट में कहा गया है कि जले हुई नकदी को 15 मार्च को सुबह-सुबह हटा दिया गया था। कमेटी ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक और प्रत्यक्ष साक्ष्यों को देखने के बाद जस्टिस वर्मा पर लगे आरोप सही प्रतीत होते हैं। कमेटी ने कहा है कि ये साक्ष्य जस्टिस वर्मा को पद से हटाने के लिए पर्याप्त हैं।
कमेटी ने अपनी जांच के दौरान जस्टिस वर्मा समेत 55 गवाहों के बयान दर्ज किए थे। कमेटी ने कहा है कि न्यायिक जीवन में उच्च नैतिक मूल्यों की अपेक्षा की गई है। न्यायिक जीवन दूसरे आम पदधारकों के जीवन से उच्च मूल्य के होने चाहिए। उच्च न्यायपालिका से आम लोगों की अपेक्षा काफी ज्यादा होती है। कोर्ट रुम के बाहर न्यायिक अधिकारी का व्यवहार उच्च दर्जे का होना चाहिए। न्यायिक अधिकारियों के चरित्र और व्यवहार में गिरावट आने से लोगों का विश्वास न्यायपालिका पर कम होता है।
तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने 8 मई को जांच आयोग की रिपोर्ट को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दिया था। जांच कमेटी ने 4 मई को सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास से 14 मार्च को नकदी मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 22 मार्च को इस मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय जांच कमेटी के गठन का आदेश दिया था। इस जांच कमेटी में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस जीएस संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट के जज जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थे।
हिन्दुस्थान समाचार/संजय
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हिन्दुस्थान समाचार / अमरेश द्विवेदी