ऑटो और ई-रिक्शा चालकों की कोई पहचान नहीं, दिन में कई बार बदल जाते हैं ड्रायवर
भिंड, 18 जून (हि.स.)। शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न मार्गो पर चलने वाले ऑटो और ई-रिक्शा चालकों के पास न तो कोई पहचान है और न ही कोई निर्धारित गणवेश। सर्ट पर नेमप्लेट भी नहीं होती है। ऐसे में कई बार आपराधिक घटनाएं हो जाने के बाद चालक का नाम
ऑटो और ई-रिक्शा चालकों की कोई पहचान नहीं, दिन में कई बार बदल जाते हैं ड्रायवर


भिंड, 18 जून (हि.स.)। शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न मार्गो पर चलने वाले ऑटो और ई-रिक्शा चालकों के पास न तो कोई पहचान है और न ही कोई निर्धारित गणवेश। सर्ट पर नेमप्लेट भी नहीं होती है। ऐसे में कई बार आपराधिक घटनाएं हो जाने के बाद चालक का नाम पता नहीं चल पाता। दूसरा चालक सामने कर दिया जाता है जिसकी पहचान कर पाना मुश्किल हो जाता है। पुलिस को चालक तथा आरोपी तक पहुंचने के लिए खासी कसरत करनी पड़ती है। ऐसी ही एक घटना पिछली 4 मई को घटित हुई समीर नगर निवासी रजनी भदौरिया पत्नी पीयूष भदौरिया एक टमटम पर सवार हई ।

सदर बाजार से उसके पर्स से सोने चांदी के करीब 1.25 लाख क जेवरात चेोरी हो गए। पीडि़ता को तब पता चला जब वह घर पहुंची। अब न तो टमटम चालक का उसे चेहरा याद था। न नाम। सिटी कोतवाली पुलिस ने इस मामले में करीब ३५ दिन बाद अपराध दर्ज किया है।

शहर में ऑटो और ई- रिक्शा की संख्या 3000-3500 के बीच पहुंच गई है। लेकिन इन पर किसी का नियंत्रण नहीं है। ई- रिक्शो पर तो बिल्कुल भी नहीं । पांच साल पूर्व चालकों के लिए खाकी बर्दी अनिवार्य की गई थी। न पहनने पर 500 रूपए के जुर्माने का प्रावधान भी किया गया था। योजना के कुछ दिनों तक तो चालक खाकी बर्दी में नजर आए लेकिन जैसे जैसे पुलिस का ध्यान हटता गया वैसे वैसे बर्दी भी गायब होती गई। वर्तमान में शत प्रतिशत चालक बर्दी का उपयोग नहीं कर रहे। ज्यादातर ऑटो और ई- रिक्शों का मालिक कोई और है, इन्हें चला कोई और रहा है। दिन में कई बार चालक बदल जाते हैं। कई नाबालिगों को भी उक्त वाहन चलाते हुए देखा जा सकता है।

वारदात होने पर चालकों पर ही संदेह जताया जाता है, महिलाएं ही होती है शिकार

कई बार बीच रास्ते से ऑटो या ई-रिक्शा में बैठी महिला का पर्स गायब हो जाता है या चैन स्नैचिंग की घटना हो जाती है।

बाईपास, अटेर रोड, फूप, मेहगंाव, गोरमी, गोहद में भी इस प्रकार की घटनाएं सामने आ चुकी है। इनमें से अधिकांश घटनाओं में चालकों पर ही संदेह जताया गया है। लेकिन फरियादी के पास नाम नहीं होता। कई बार तो चालक बदल कर पुलिस के सामने पेश कर दिया जाता है ताकि पहचान उजागर न हो सके। ऐसी घटनाओ में पुलिस को भी खाशी मशक्कत करनी पड़ती है।

40 किमी दूर दंदरौआ के लिए भी चलते हैं ऑटो, सवारियां भी ओवरलोड

ग्रामीण रूटों पर यातायात का कोई साधन उपलब्ध नहीं है। सिर्फ ऑटों सहारा है। लेकिन भिण्ड से ऊमरी, मेहगांव से गोरमी, दंदरौआ, भिण्ड से किशूपुरा, सुरपुरा, फूप, पिथनपुरा आदि दो दर्जन से अधिक रूटों पर ऑटों में 10 से 50 सवारियां बैठाई जा रही है। चालको ने सीटों का एक्शटेंशन भी कर लिया है। कईबार तो ऑटों की छतों पर भी सवारियों को बैठा देखा जा सकता है। किराया भी कोई निश्चित नहीं है। खास बात यह है कि फिटनेश सर्टिफिकेट नहीं है। ऐसे भी कभी भी बड़ी दुघर्टना की संभावना से इंकार नहीं किया जा रहा है।

भिण्ड प्रभारी यातायात राघवेंद्र भार्गव का कहना है कि चैकिंग के दौरान बिना बर्दी के पकड़े जाने पर चालकों पर जर्माने की कार्यवाही की जाएगी।

वहीं जिला अध्यक्ष उपभोक्ता मंच के बीडी दुबे का कहना है कि ऑटो -ई रिक्शा चालक बर्दी में नहीं रहते। आपराधिक घटना के बाद इनकी पहचान कर पाना मुश्किल हो जाता है। नेम प्लेट नहीं होने से और भी परेशानी आती है। ऑटो में यात्रा करने वाली अधिकांश महिलाएं होती है। इस लिए चालकों के ऐजेंटीफिकेशन की ज्यादा जरूरत है। पुलिस के लिए भी यह सहूलियत भरा हो सकता है।

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हिन्दुस्थान समाचार / राजू विश्वकर्मा