ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में मध्‍य प्रदेश सबसे ऊंचे पायदान पर
डॉ. मयंक चतुर्वेदी भोपाल, 18 जून (हि.स.)। स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम), भारत सरकार का ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करने और खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) गाँव बनाने के लिए शुरू किया गया एक देशव्यापी अभियान है। कार्यक्रम का उद्देश्य मासिक धर्म स्वास्थ्य प्
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में मध्‍य प्रदेश


डॉ. मयंक चतुर्वेदी

भोपाल, 18 जून (हि.स.)। स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम), भारत सरकार का ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करने और खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) गाँव बनाने के लिए शुरू किया गया एक देशव्यापी अभियान है। कार्यक्रम का उद्देश्य मासिक धर्म स्वास्थ्य प्रबंधन के बारे में जागरूकता बढ़ाना भी है। इसकी जब शुरूआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 को की थी, तब पहले दिन ही इसका उद्देश्‍य साफ कर दिया गया था कि भारत को एक ऐसे देश के रूप में स्‍थापित करना जहां स्‍वच्‍छता के पैमाने पर किसी भी विकसित देश की तुलना में वह कहीं पीछे न रहे, बल्‍कि हर स्‍तर पर उससे अन्‍य देश यह प्रेरणा ले सकें कि दुनिया की सबसे बड़ी जनंसख्‍या वाला देश (चीन के बाद दूसरा) जब अपने यहां हर स्‍तर का अपशिष्ट प्रबंधन कर सकता है, स्‍वच्‍छता के अन्‍य मानकों को भी ऊपर रख सकता है, तब हम क्‍यों पीछे रहें।

देखा जाए तो भारतीय शहरों में 2050 तक अनुमानित 435 मिलियन टन ठोस कचरा उत्पन्न होने की उम्मीद है। 2020 में भारत में पीएम2.5 उत्सर्जन में कचरा क्षेत्र ने प्रति वर्ष लगभग 1200 किलोटन (केटी/वाईआर) का योगदान दिया। बढ़ते अपशिष्ट उत्पादन के कारण 2050 तक ये उत्सर्जन लगभग दोगुना होने का अनुमान है। इसलिए एसबीएम अर्बन 2.0 के तहत, भारत का लक्ष्य 2026 तक अपने सभी शहरों को कचरा मुक्त बनाना है। ऐसे में अब देखते ही देखते इस मिशन को 11 साल पूरे होने जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व के 11 साल और इस मिशन के भी 11 साल। इन 11 सालों में वैसे देश के हर सेक्‍टर में बदलाव आया है, लेकिन जो परिवर्तन ‘स्‍वच्‍छता’ के स्‍तर पर आया, उसे हम अभूतपूर्व मान सकते हैं। वह इसलिए भी कि कहने को ‘निर्मल भारत अभियान’ भारत सरकार ने 2009 में लॉन्च किया था। दावे बड़े-बड़े हुए, पर जमीन पर क्‍या हुआ? भारत में कहीं स्‍वच्‍छता नजर नहीं आती थी, सिर्फ वीवीआईपी क्षेत्र को छोड़कर ।

यदि इससे पूर्व औपचारिक स्वच्छता कार्यक्रम की बात की जाए तो पहली बार देश में 1954 में इसकी शुरूआत की गई थी, इसके बाद 1986 में केंद्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम, 1999 में संपूर्ण स्वच्छता अभियान (टीएससी) का जोरशोर से हल्‍ला हुआ, पर परिणाम कभी भी वह नहीं आ सके जिसकी आवश्‍यकता इस देश को रही, लेकिन जैसे ही हाथ में झाड़ू थामें स्‍वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्‍वच्‍छता के लिए आगे आए, देश बदलता हुआ दिखा। हर राज्‍य ने अपने स्‍तर पर बढ़-चढ़कर हिस्‍सा लिया। हर संभव मदद के लिए केंद्र सरकार ने अपने हाथ बढ़ाए, कुल उद्देश्‍य यही कि भारत स्‍वच्‍छता के मामले में अग्रणी पंक्‍ति में खड़ा हो। अब इसमें सबसे अहम है राज्‍यों की भूमिका। स्‍वभाविक है, यदि राज्‍य अपने हिस्‍से का काम पूरा नहीं करेंगे तो भारत दुनिया के देशों के बीच कभी स्‍वच्‍छता में आगे नहीं आ सकता।

इस मामले में मध्‍य प्रदेश ने आज अपने सभी पुराने कीर्तिमान स्‍वयं से ही ध्‍वस्‍त कर दिए हैं। ‘विकसित मध्य प्रदेश कें लिए स्वच्छता’ के नारे के साथ डॉ. मोहन यादव की सरकार ने जो नवाचार किए हैं, वह वास्‍तव में देश के कई राज्‍यों के लिए सीखने और मप्र से प्रेरणा लेने की तमाम गुजाइश पैदा करते हैं। मप्र आज स्वच्छ भारत मिशन-शहरी के अंतर्गत ठोस अपशिष्ट प्रसंस्करण में सबसे अच्‍छा प्रदर्शन कर रहा है, जहां प्रतिदिन निकलने वाले अपशिष्ट का सबसे बेहतर उपचार किया जाता है।

दरअसल, 2021 में जब स्‍वच्‍छ भारत अभियान का दूसरा संस्करण शुरू हुआ था, तब किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि मध्‍य प्रदेश आनेवाले सालों में बहुत तेजी के साथ ठोस अपशिष्ट के 100 प्रतिशत दैनिक प्रसंस्करण की रिपोर्ट प्रस्‍तुत करेगा। लेकिन आज यह धरातल पर होता हुआ दिखाई देता है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव प्रदेश की स्‍वच्‍छता को लेकर कितने संवेदनशील हैं, वह उनकी आगामी वर्षों की एडवांस प्‍लानिंग से समझ आता है। अभी उनकी अध्यक्षता में इंदौर के राजवाड़ा में आयोजित कैबिनेट बैठक में महत्वपूर्ण निर्णयों में जो एक बड़ा निर्णय लिया गया, वह है शहरी स्वच्छता मिशन कार्यक्रम की वित्तीय वर्ष-2028-29 तक निरंतरता की स्वीकृति का दिया जाना। मोहन यादव की प्रदेश सरकार ने आज स्वच्छ भारत मिशन 2.0 (शहरी) में मध्य प्रदेश में संचालित योजनाओं के लिये करीब 4 हजार 914 करोड़ रूपये का प्रावधान किया है, जिसमें कि डबल इंजन की सरकार होने से करीब 2200 करोड़ रूपये की राशि केन्द्र सरकार की ओर से उपलब्‍ध रहनेवाली है। ।

स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के तहत प्रदेश में स्त्रोत पृथक्कीकरण, निर्माण एवं विध्वंस अपशिष्ट सहित कचरे के सभी भागों का पूर्ण प्रसंस्करण, प्लास्टिक अपशिष्‍ट और सिंगल यूज प्लास्टिक को चरणबद्ध रूप से कम करना और संपूर्ण लीगेसी वेस्ट को उपचारित करते हुए सभी शहरों को कचरा मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया है। राज्‍य की मोहन सरकार इस मिशन में इस बात पर विशेष ध्यान दे रही है कि सीवर्स, सेप्टिक टैंक की सफाई में मानव श्रम को सीधे रूप से रोका जाये और मशीनों के माध्यम से सफाई की व्यवस्था की जाये। शहरी क्षेत्रों में उपयोगी जल को जल संरचनाओं में जाने से पूर्व उपचार और पुर्न-उपयोग के लिये सीवेज ट्रीटमेंट इकाई, नालों में इंटरसेप्शन व डायवर्जन आदि सुविधाओं का विकास हो जाए।इसके लिए लगातार प्रदेश में नगरीय निकायों में कचरा संग्रहण, परिवहन एवं प्र-संस्करण सुविधाओं के विकास के लिये नगरीय निकायों को अनुदान दिया जा रहा है। इसके साथ ही केन्द्र सरकार ने प्रदेश के सभी शहरों को कचरा मुक्त बनाने के लिये 5 हजार 914 करोड़ रूपये की मंजूरी दी है।

आज प्रदेश के 405 नगरीय निकायों में कम्पोस्टिंग इकाइयों के माध्यम से गीले कचरे का और 360 मटेरियल रिकवरी फेसिलिटीज के माध्यम से सूखे कचरे का प्र-संस्करण किया जा रहा है। इंदौर के प्लांट से सीएनजी के अलावा प्रतिदिन 100 टन उच्च गुणवत्ता की खाद भी तैयार की जा रही है। इसी प्रकार के प्रयोग अन्‍य शहरों में हो रहे हैं। फिलहाल प्रदेश में स्वच्छ भारत मिशन शहरी 2.0 के अंतर्गत सभी शहरों को कचरा मुक्त बनाने तथा अपशिष्ट जल प्रबंधन के लिये आगामी 5 वर्षों में 4 हजार 914 करोड़ रूपये की योजनाओं की स्वीकृति भी प्राप्त की जा चुकी है। इस कार्य के लिये नगरीय विकास विभाग ने वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिये करीब 473 करोड़ रूपये का प्रावधान किया है। इसी तरह से इससे जुड़े कई अन्‍य कार्यों के लिए अलग राशि के खर्च का प्रावधान राज्‍य की मोहन सरकार ने किया है।

अब इसका सुखद परिणाम यह हुआ है कि एसबीएम-यू डैशबोर्ड पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, नागालैंड और मिजोरम में ठोस अपशिष्ट प्रसंस्करण अभी भी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है। अरुणाचल प्रदेश और बिहार ने भी खराब अपशिष्ट प्रसंस्करण दरों की सूचना दी है। अरुणाचल प्रदेश 177.78 टीपीडी उत्पन्न करता है और इसका केवल 22 प्रतिशत संसाधित करता है। बिहार, 6,638.19 टीपीडी की दैनिक पीढ़ी के साथ, केवल 32 प्रतिशत संसाधित करता है। डैशबोर्ड में बताया गया है कि पश्चिम बंगाल में प्रतिदिन 7,875.55 टन (टीपीडी) ठोस कचरा उत्पन्न होता है, लेकिन केवल 588.65 टीडीपी का ही प्रसंस्करण होता है। दूसरी ओर इन सभी राज्‍यों के बीच मध्‍य प्रदेश जैसे कुछ राज्‍य हैं, जिसके साथ नाम जुड़े हैं छत्तीसगढ़, चंडीगढ़, दमन और दीव तथा दादरा और नगर हवेली के जो इस कार्य में शतप्रतिशत सफलता हासिल कर रहे हैं। मध्य प्रदेश, ने ठोस अपशिष्ट के 100 प्रतिशत दैनिक प्रसंस्करण की रिपोर्ट दी है जो यह बताती है कि यहां डॉ. मोहन यादव की सरकार स्‍वच्‍छता के लिए बेहद संवेदनशील है और वह हर हाल में प्रदेश को देश का एक बेहतर राज्‍य बनाने के मीशन पर लगी हुई है।

उल्‍लेखनीय है कि स्वच्छ भारत मिशन-शहरी (एसबीएम-यू) के लिए डैशबोर्ड एक वेब-आधारित उपकरण है जो एसबीएम-यू के प्रदर्शन और प्रगति को ट्रैक करने के लिए राज्यों, जिलों और ब्लॉकों के लिए डेटा और जानकारी प्रदान करता है। यह डैशबोर्ड योजना के विभिन्न पहलुओं, जैसे कि खुले में शौच से मुक्ति, ठोस कचरा प्रबंधन और स्वच्छता के लिए शहर की तैयारी की निगरानी करने में मदद करता है। फिलहाल इसमें सबसे अच्‍छा प्रदर्शन करता हुआ हमारा राज्‍य मध्‍य प्रदेश दिखाई दे रहा है।

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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी