सद्गुरु मधुपरमहंस जी का अखनूर में दिव्य प्रवचन : आत्मा की अमरता व सत्यलोक का रहस्य उजागर
सद्गुरु मधुपरमहंस जी का अखनूर में दिव्य प्रवचन : आत्मा की अमरता व सत्यलोक का रहस्य उजागर


जम्मू, 15 जून (हि.स.)। साहिब बंदगी के सद्गुरु श्री मधुपरमहंस जी महाराज ने आज अखनूर, जम्मू में अपने प्रवनचों की अमृतवर्षा से संगत को निहाल करते हुए कहा कि धर्म शास्त्रों में कुछ ऐसी चीजें हैं, जिनसे पता चलता है कि सुपर पावर है कुछ। आत्मा का कोई बनाने वाला नहीं है, आत्मा को कोई मिटाने वाला नहीं है, फिर यह कहाँ से आई है। कितनी अनोखी है यह आत्मा। किसी भी देश, काल, अवस्था में आत्मा का नाश नहीं होता है। जो आत्मा को सब कुछ मानते हैं, उनका यही तर्क होता है। पर आत्मा तो अंश है। पर आत्मा तो विभाजित नहीं होती। फिर परमात्मा से कैसे विभाजित होकर आ गयी। माथा ठनकेगा, जब आप विचार करेंगे। जैसे आपने पानी को उछाला कि इसकी कई बूँदें हो जाएँ। इसलिए कुछ आत्मा को परमात्मा भी बोलते हैं। क्योंकि परमात्मा भी अविभाजित है, न्यूनाधिक नहीं होता, अजर है, अमर है, कभी बना नहीं है, कभी मिटेगा भी नहीं।

उस सत्यलोक का वर्णन केवल साहिब ने किया है। बाकी किसी ने नहीं किया है। किसी ऋषि मुनि के मुँह से आपने चौथे लोक की बात नहीं सुनी होगी। केवल त्रिलोकी नाथ की बात सुनी होगी। तीन लोक की बात सुनी होगी। साहिब कह रहे हैं कि तीन लोक में यम का राज है। चौथे लोक में नाम है। इसलिए वहाँ काम नहीं है, वहाँ क्रोध नहीं है। वहाँ लोभ भी नहीं है, वहाँ मोह भी नहीं है। ये सब इस तीन लोक में हैं। ये निरंजन ने पैदा किये हैं। जब प्रेतात्माएँ शरीर छोड़ती हैं तो कई रूपों में मिलती हैं। पहला ऐसी आकृति में होंगी कि आप पहचान लेंगे। जब यह शरीर खत्म हो गया तो फिर वो कौन से शरीर में हैं। दूसरा वो ऐसे दिखेंगे कि दिखेंगे नहीं, केवल अनुभव होगा कि कोई है यहाँ। वो अनुभव आपको भयभीत करेगा।

जैसे काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार शूक्ष्म रूप में इंसान के शरीर में रहते हैं। जब भी चाहें आदमी पर छा जाते हैं। जब छा जाते हैं तो इंसान वैसा ही काम करता है, जैसा वो करवाते हैं। आपने देखा होगा कि जिनमें प्रेतात्मा आ जाती है, उतनी देर वो अपने को भूल जाते हैं। उतनी देर वो प्रेतात्मा बोलती है। यह सच है। लेकिन हकीकत यह है कि 90 प्रतिशत इसमें बनावट करते हैं। 1 प्रतिशत भी उसमें यथार्थ में किसी में वो चीज प्रवेश लेती है। लेकिन यह एक व्यापार है। हनुमान जी ने बड़े बड़े राक्षसों को मारा, रावण के कुल का नाश किया। लेकिन उनको विद्वान कहते हैं, कर्मठ कहते हैं, सेवक कहते हैं, ज्ञानी पुरुष कहते हैं। क्योंकि वो उदंड नहीं थे। पहले किसी को बिना कारण नहीं मारते थे। पहले बुरे इंसान को समझाते थे। यही बात रावण को सिखाई। यही बात मिहरावण के सिखाई। बाद में उसका वध किया। यही बात अन्य कई राक्षसों को सिखाई। बाद में जब वो नहीं सुधरे तो मारा।

जब हनुमान जी रावण को उपदेश दे रहे थे तो रावण क्रोध में आकर बोला कि चुप कर वानर। तेरे मुँह से उपदेश ठीक नहीं लगता है। मैं स्वंय ज्ञानी हूँ। हनुमान जी ने तो उसे यह भी कहा था कि आप स्वंय ब्राह्मण और ज्ञानी पुरुष हैं। दूसरे की स्त्री का हरण करना तो महापाप है। आप सीता जी को छोड़ दो। राम जी से क्षमा माँग लो। वो दयालु हैं। आपको क्षमा कर देंगे। यानी हनुमान जी अज्ञानी की तरह हमला नहीं करते थे। ज्ञान से समझाकर जब कोई नहीं मानता था तब भी नहीं मारते थे। फिर जब वो पहले क्रोधित होकर हनुमान जी पर हमला करता था, तब वो मारते थे। यह बात साहिब भी बोल रहे हैं कि जो आपको मारा, उसको मारने से दोष नहीं लगता है। तो काम, क्रोध आदि ने सबको भुलाया हुआ है। साहिब कह रहे हैं कि मैं किस किस को समझाऊँ। ये काल निरंजन की शक्तियाँ हैं। सबको नचा रही हैं। वेदव्यास जी पुत्र विछोह में पड़कर रोने लगे। यह मोह है। ये काल निरंजन की ताकतें हैं। आत्मा का किसी से कोई नाता नहीं है। वो तो अमर है। कोई मरा नहीं। इस तरह अनादि, अजर, अमर आत्मा को कोई शैतानी ताकत बाँधे हुए है। वो है मन

हिन्दुस्थान समाचार / राहुल शर्मा